हाल ही में, अमेरिकी एजेंसी USAID द्वारा भारत में “मतदाता भागीदारी” बढ़ाने के लिए $21 मिलियन की निधि आवंटित करने का खुलासा हुआ है, जिससे भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में तीव्र बहस छिड़ गई है। इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, जिसमें विदेशी फंडिंग, राष्ट्रवाद, और दोहरे मापदंड जैसे विषय प्रमुखता से उभरकर सामने आए हैं।
USAID फंडिंग का विवाद
DOGE (Department of Government Efficiency) द्वारा किए गए इस खुलासे के बाद, भाजपा ने USAID की इस फंडिंग को भारत के चुनावी प्रक्रिया में “बाहरी हस्तक्षेप” करार देते हुए इसकी जांच की मांग की है। भाजपा सांसद महेश जेठमलानी ने सोशल मीडिया पर कहा, “DOGE ने पाया है कि USAID ने भारत में ‘मतदाता भागीदारी’ के लिए $21 मिलियन आवंटित किए हैं, जो मतदाताओं को प्रभावित करने और सत्ता परिवर्तन के लिए है।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि यह धनराशि किसे और कैसे वितरित की गई।
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने USAID को “मानव इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला” बताते हुए इस फंडिंग की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “मैं जानना चाहूंगा कि यह $21 मिलियन किसे मिले, साथ ही बांग्लादेश और नेपाल में खर्च की गई अन्य धनराशि का भी हिसाब चाहिए।”
कांग्रेस का प्रतिवाद
कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के इन आरोपों को खारिज करते हुए पलटवार किया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने बताया कि 2012 में, जब यह फंडिंग कथित रूप से हुई, तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने सवाल किया, “क्या कांग्रेस अपनी ही चुनावी संभावनाओं को कमजोर करने के लिए बाहरी हस्तक्षेप की मांग करेगी?” उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि 2014 के चुनावों में भाजपा की जीत हुई, जो इन आरोपों को निराधार साबित करता है।
इसके अतिरिक्त, कांग्रेस ने भाजपा नेता स्मृति ईरानी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह USAID की “गुडविल एंबेसडर” रह चुकी हैं। कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खड़गे ने सोशल मीडिया पर कहा, “सरकारी वेबसाइट के अनुसार, स्मृति ईरानी ने USAID की ‘गुडविल एंबेसडर’ के रूप में सेवा दी है।” इस पर भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने स्पष्ट किया कि ईरानी 2002 से 2005 तक WHO के ORS गुडविल ब्रांड एंबेसडर थीं, न कि USAID की।
अगर USAID इतना ही घातक था, तो BJP के नेता वर्षों तक उसका झंडा क्यों लहराते रहे? सत्ता में रहते हुए यह स्वीकार्य है, लेकिन अब इसे राजनीतिक हथियार बना रहे हो ?
अगर USAID भारत के लिए हानिकारक था, तो BJP सरकार लगातार उससे फंडिंग क्यों लेती रही? क्या तब राष्ट्रवाद पर कोई आंच नहीं आई… pic.twitter.com/OxzLtRTECQ
— Nighat Abbass🇮🇳 (@abbas_nighat) February 19, 2025
RSS और विदेशी फंडिंग का मुद्दा
इस विवाद के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उससे जुड़े संगठनों की विदेशी फंडिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। हिंदू स्वयंसवेक संघ (HSS), जो RSS से प्रेरित है, अमेरिका सहित 40 से अधिक देशों में सक्रिय है। हालांकि, HSS ने हमेशा अपने को एक सांस्कृतिक और शैक्षिक संगठन बताया है, लेकिन इसके RSS के साथ घनिष्ठ संबंधों पर चर्चा होती रही है।
इसके अलावा, 2002 में, इंडिया डेवलपमेंट एंड रिलीफ फंड (IDRF) पर आरोप लगे थे कि वह अमेरिका से धन एकत्रित कर भारत में RSS से जुड़े संगठनों को भेजता है। हालांकि, IDRF ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि उनका उद्देश्य केवल विकास और राहत कार्यों में सहायता करना है।
दोहरा मापदंड और राष्ट्रवाद
इस पूरे प्रकरण में, दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों पर दोहरे मापदंड अपनाने के आरोप लग रहे हैं। भाजपा, जो USAID की फंडिंग को बाहरी हस्तक्षेप बता रही है, उसी पर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि उसके नेता स्वयं विदेशी संगठनों से जुड़े रहे हैं। वहीं, कांग्रेस पर आरोप है कि उसने अपने शासनकाल में विदेशी फंडिंग को प्रोत्साहित किया। इस संदर्भ में, राष्ट्रवाद की परिभाषा और उसकी आड़ में राजनीतिक लाभ उठाने के प्रयासों पर भी सवाल उठ रहे हैं।
USAID की फंडिंग को लेकर उठा यह विवाद भारतीय राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप, राष्ट्रवाद, और पारदर्शिता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करता है। दोनों प्रमुख दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप से यह स्पष्ट होता है कि विदेशी फंडिंग और उससे जुड़े मुद्दों पर एक स्पष्ट और पारदर्शी नीति की आवश्यकता है, ताकि राष्ट्रहित सर्वोपरि रहे और राजनीतिक दलों के बीच विश्वास बना रहे।