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ट्रंप का दावा: प्रधानमंत्री मोदी को USAID ने वोटर टर्नआउट के लिए दिए 21 मिलियन डॉलर, उठे राजनीतिक सवाल

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नई दिल्ली, 23 फरवरी 2025 – अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बड़ा दावा करते हुए कहा कि अमेरिकी सहायता एजेंसी USAID ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “वोटर टर्नआउट बढ़ाने” के लिए 21 मिलियन डॉलर दिए। ट्रंप के इस बयान ने अमेरिका और भारत दोनों में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। हालांकि, जांच में सामने आया कि यह धनराशि भारत नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए थी।

ट्रंप के आरोप और विवाद

डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक गवर्नर्स वर्किंग सेशन के दौरान कहा, “हम 21 मिलियन डॉलर भारत में वोटर टर्नआउट के लिए दे रहे हैं। लेकिन हमारे देश में क्या हो रहा है? मैं भी चाहता हूं कि हमारे देश में भी वोटर टर्नआउट बढ़े।”

ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया कि यह एक “किकबैक स्कीम” हो सकती है, जिससे विदेशी सरकारों को लाभ पहुंचाया जाता है। हालांकि, उन्होंने इस दावे का कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया कि यह धन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भारत सरकार को दिया गया।

USAID के फंडिंग का असली सच

भारतीय समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह 21 मिलियन डॉलर की राशि दरअसल बांग्लादेश के चुनावी कार्यक्रम के लिए दी गई थी, न कि भारत को। USAID द्वारा यह फंडिंग अमर वोट, अमार (मेरा वोट, मेरा) नामक एक अभियान के तहत दी गई थी, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश में लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा देना था। बाद में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर नागरिक (Citizen) कर दिया गया।

रिकॉर्ड के अनुसार, भारत को 2008 के बाद से USAID द्वारा इस तरह की कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली है। इसके बावजूद ट्रंप के दावे ने भारत में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है।

भारत में राजनीतिक प्रतिक्रिया

बीजेपी की प्रतिक्रिया

बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ट्रंप के इस बयान का हवाला देते हुए कहा कि यह कांग्रेस के विदेशी संबंधों और फंडिंग पर सवाल उठाने का एक और प्रमाण है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह तीसरे दिन है जब ट्रंप ने USAID फंडिंग पर सवाल उठाया है। यह कांग्रेस की विदेशी संलिप्तता को उजागर करता है।”

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री मोदी से मांग की कि वे ट्रंप से इस मुद्दे पर बात करें और इस आरोप को स्पष्ट रूप से खारिज करें। उन्होंने कहा, “अगर अमेरिका 21 मिलियन डॉलर भारत को दे रहा था, तो वह पैसा कहां गया? मोदी सरकार को इस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।”

खेड़ा ने यह भी याद दिलाया कि USAID ने 2012-13 में भी Democratic Participation and Civil Society के नाम पर $3,65,000 की फंडिंग दी थी, जब अन्ना हजारे आंदोलन अपने चरम पर था और अरविंद केजरीवाल नई पार्टी बना रहे थे।

भारत-अमेरिका संबंधों पर असर

इस विवाद ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक नई बहस छेड़ दी है। भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने इस विषय पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत अपने आंतरिक मामलों में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा।

उन्होंने कहा, “हमने अमेरिका द्वारा जारी कुछ जानकारियों को देखा है। यह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है। हम इस पर जांच कर रहे हैं और उचित कदम उठाएंगे।”

डोनाल्ड ट्रंप के इस दावे ने भारत की राजनीति में हलचल मचा दी है। हालांकि, जांच में स्पष्ट हुआ कि यह राशि भारत के लिए नहीं थी, बल्कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को समर्थन देने के लिए थी। इसके बावजूद, यह मामला यह दर्शाता है कि किसी भी विदेशी फंडिंग को लेकर पारदर्शिता बनाए रखना कितना जरूरी है। यह विवाद भविष्य में भारत-अमेरिका संबंधों पर क्या प्रभाव डालेगा, यह देखने वाली बात होगी।

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