हाइलाइट्स:
- Supreme Court में Waqf Amendment Bill के खिलाफ याचिका, मौलाना ने उठाई याचिकाकर्ताओं की जांच की मांग
- मौलाना इब्राहिम हुसैन चौधरी ने Supreme Court को लिखा पत्र, ओवैसी की भूमिका पर संदेह
- असदुद्दीन ओवैसी और अन्य नेताओं ने बिल को Supreme Court में दी चुनौती
- मुस्लिम नेतृत्व की ईमानदारी और नीयत पर मौलाना का बड़ा बयान
- Supreme Court में सुनवाई से पहले याचिकाकर्ताओं की छानबीन की मांग
संसद से पारित Waqf Amendment Bill 2025 और अब Supreme Court में चुनौती
हाल ही में संसद द्वारा पारित Waqf Amendment Bill 2025 को लेकर देशभर में चर्चा और विवाद का माहौल बन गया है। इस बिल को मुस्लिम समुदाय से जुड़े कई संगठनों और नेताओं ने संविधान विरोधी बताते हुए Supreme Court में चुनौती दी है। इन्हीं याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और अन्य मुस्लिम समाज के नेता।
लेकिन इस पूरे प्रकरण में नया मोड़ तब आया जब प्रसिद्ध मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इब्राहिम हुसैन चौधरी ने Supreme Court को एक औपचारिक पत्र भेजते हुए याचिकाकर्ताओं की विश्वसनीयता की जांच की मांग कर दी।
मौलाना का पत्र: “Supreme Court को जानना चाहिए कौन बोल रहा है मुसलमानों के नाम पर”
मौलाना इब्राहिम हुसैन चौधरी ने अपने पत्र में लिखा है कि Supreme Court को इस मामले में सुनवाई करने से पहले यह जरूर देखना चाहिए कि याचिकाकर्ता सचमुच मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि हैं या केवल राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित होकर बोल रहे हैं।
उन्होंने कहा:
“Supreme Court देश की सबसे बड़ी अदालत है, और जब कोई समुदाय की ओर से आवाज उठाई जाती है, तो अदालत को यह जानने का अधिकार है कि वह आवाज सच्ची है या बनावटी।”
ओवैसी की भूमिका पर मौलाना का सीधा हमला
पत्र में मौलाना ने असदुद्दीन ओवैसी की राजनीतिक शैली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ओवैसी बार-बार मुस्लिमों के हितैषी बनकर Supreme Court में याचिकाएं दायर करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनके कार्य मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए कम और अपने वोट बैंक के लिए अधिक होते हैं।
मौलाना ने कहा कि Supreme Court को ऐसे लोगों के पीछे की मंशा की भी जांच करनी चाहिए।
Supreme Court में याचिकाएं और संभावित सुनवाई
अब तक Supreme Court को इस मामले में कई याचिकाएं प्राप्त हो चुकी हैं। इन याचिकाओं में यह दावा किया गया है कि Waqf Amendment Bill 2025 मुस्लिमों की धार्मिक संपत्तियों के अधिकारों को प्रभावित करता है और संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है।
Supreme Court ने इन याचिकाओं को सूचीबद्ध किया है और जल्द ही इसपर सुनवाई की उम्मीद है।
वक्फ संपत्ति विवाद और बिल का सार
Waqf Amendment Bill 2025 में सरकार ने वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कटौती करते हुए केंद्रीय निगरानी तंत्र को मजबूत किया है। इसके तहत वक्फ संपत्तियों की निगरानी, रजिस्ट्रेशन और विवादों के समाधान में पारदर्शिता लाने का दावा किया गया है।
लेकिन कुछ संगठनों का कहना है कि यह बिल मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है और यही बात Supreme Court के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
मुस्लिम समाज में मतभेद
मौलाना इब्राहिम हुसैन चौधरी के बयान के बाद मुस्लिम समुदाय दो भागों में बंटा दिख रहा है। एक पक्ष का कहना है कि मौलाना ने सही सवाल उठाए हैं क्योंकि सभी मुस्लिम नेताओं की नीयत पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वहीं, दूसरा पक्ष इसे ओवैसी और अन्य नेताओं की छवि खराब करने की कोशिश मान रहा है।
इस विवाद के चलते Supreme Court पर एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है कि वह न केवल कानूनी पहलुओं को देखे, बल्कि याचिकाकर्ताओं की प्रामाणिकता की भी जांच करे।
क्या कहता है संविधान और Supreme Court की भूमिका
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 Supreme Court को यह अधिकार देता है कि वह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में सीधे सुनवाई करे। ऐसे में जब मुस्लिम समुदाय के मौलिक धार्मिक अधिकारों की बात की जा रही हो, तो Supreme Court की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।
लेकिन, जैसा कि मौलाना का कहना है, यदि याचिका किसी राजनीतिक फायदे के उद्देश्य से दायर की गई हो, तो Supreme Court को यह भी देखना होगा कि उसका उपयोग किसी के राजनीतिक हित में तो नहीं हो रहा।
Supreme Court के सामने अब चुनौती दोहरी है
एक तरफ Supreme Court को यह तय करना है कि Waqf Amendment Bill 2025 संविधान सम्मत है या नहीं, वहीं दूसरी ओर यह भी देखना होगा कि जिन लोगों ने बिल को चुनौती दी है, वे वास्तव में मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि हैं या नहीं।
मौलाना इब्राहिम हुसैन चौधरी के पत्र ने इस मुद्दे को केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक विमर्श का भी विषय बना दिया है। अब सबकी निगाहें Supreme Court पर टिकी हैं कि वह इस विवादास्पद मुद्दे पर क्या निर्णय देता है।