हाइलाइट्स
- Private Hospital Negligence का बड़ा मामला लखनऊ के दुबग्गा में उजागर।
- बिना पथरी निकाले ऑपरेशन कर परिजनों से वसूले गए ₹80,000।
- इलाज के एक सप्ताह बाद पेशाब में खून आने से खुला मामला।
- दोबारा जांच में सामने आया – पथरी अब भी किडनी में मौजूद।
- पीड़ित की शिकायत पर सीएमओ कार्यालय ने की जांच कमेटी गठित।
मामला जिसने स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए
लखनऊ में Private Hospital Negligence का सनसनीखेज मामला सामने आया है जिसने न सिर्फ चिकित्सा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि आमजन में निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर अविश्वास भी पैदा कर दिया है। सीतापुर निवासी जितेंद्र पांडेय अपने नौ वर्षीय बेटे आर्यन की किडनी में पथरी की शिकायत लेकर लखनऊ के दुबग्गा क्षेत्र स्थित एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे थे। एक बिचौलिए अनूप के माध्यम से उन्हें इस अस्पताल में लाया गया।
हस्पताल में डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी और कहा गया कि किडनी की पथरी निकाल दी जाएगी। 20 फरवरी को ऑपरेशन किया गया और इस प्रक्रिया के बदले ₹80,000 की भारी रकम वसूल ली गई। परिजनों को बताया गया कि ऑपरेशन सफल रहा और पथरी निकाल दी गई है। बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और नली 40 दिन बाद निकालने की बात कही गई।
लापरवाही का पर्दाफाश: जब बच्चे को फिर हुई परेशानी
लगभग एक सप्ताह बाद आर्यन को पेट में दर्द होने लगा और पेशाब में खून आने लगा। घबराए परिजनों ने दोबारा उसी अस्पताल से संपर्क किया तो उन्हें कहा गया कि नली निकालने के लिए ₹20,000 और देने होंगे। इस बात से आहत जितेंद्र बेटे को लेकर रिंग रोड स्थित एक अन्य निजी अस्पताल ले गए।
यहाँ एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड जांच के बाद जो रिपोर्ट आई, उसने उनके होश उड़ा दिए। रिपोर्ट में साफ तौर पर दिखा कि आर्यन की किडनी में 5.7 मिमी की पथरी अब भी मौजूद है। यानि पहले जिस ऑपरेशन के नाम पर ₹80,000 लिए गए थे, वह मात्र दिखावा था। यही नहीं, पहले अस्पताल द्वारा कोई रिपोर्ट या मेडिकल रिकॉर्ड भी देने से साफ इनकार कर दिया गया।
दस्तावेज माँगने पर किया गया दुर्व्यवहार
जब जितेंद्र ने इलाज से संबंधित दस्तावेज माँगे, तो अस्पताल संचालक ने उन्हें अस्पताल से भगा दिया। न तो ऑपरेशन की कोई रिपोर्ट दी गई, न ही कोई बिल या रसीद। यह हरकत Private Hospital Negligence की एक मिसाल बन गई, जहाँ मरीज के जीवन और अधिकारों के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया गया।
पीड़ित की गुहार: मंत्री और प्रशासन से लगाई न्याय की पुकार
न्याय की आस में पीड़ित जितेंद्र पांडेय अपने बेटे को लेकर पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह से मिले। मंत्री ने मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर प्रभावी कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
इसके बाद जितेंद्र अपने बेटे को लेकर सीएमओ कार्यालय पहुंचे और लिखित शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने मांग की कि अस्पताल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए और ₹80,000 की वसूली राशि वापस कराई जाए।
प्रशासन का एक्शन: जांच कमेटी गठित
सीएमओ कार्यालय ने मामले को गंभीरता से लिया और तत्काल एक जांच कमेटी गठित कर दी गई। अस्पताल संचालक को दस्तावेजों सहित तलब किया गया है। लापरवाही साबित होने पर कठोर कार्रवाई का आश्वासन दिया गया है।
नोडल अफसर डॉ. एपी सिंह के अनुसार, “पीड़ित की शिकायत पर जांच कमेटी बनाई गई है। अस्पताल संचालक को दस्तावेजों सहित बुलाया गया है। लापरवाही साबित हुई तो नियमानुसार कार्रवाई होगी।”
लखनऊ में बढ़ते Private Hospital Negligence के मामले
यह पहली बार नहीं है कि लखनऊ में Private Hospital Negligence का मामला सामने आया है। बीते एक वर्ष में ऐसे कई मामले उजागर हो चुके हैं, जिनमें मरीजों से मोटी रकम वसूली गई पर इलाज अधूरा या झूठा निकला।
हाल ही में, आलमबाग स्थित एक अस्पताल में बुज़ुर्ग महिला के कूल्हे की सर्जरी के नाम पर तीन बार ऑपरेशन किया गया, जिससे महिला की स्थिति और खराब हो गई। एक अन्य अस्पताल में मृतक को वेंटिलेटर पर रखकर दो दिन तक चार्ज वसूला गया।
इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि निजी अस्पतालों में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है। हर साल हजारों मरीज इनके शिकार बनते हैं, लेकिन शिकायतों पर कार्रवाई बहुत सीमित होती है।
क्या कहता है कानून?
भारतीय मेडिकल परिषद अधिनियम और क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के अनुसार, किसी भी निजी अस्पताल को पारदर्शिता से उपचार देना अनिवार्य है। यदि कोई मरीज ऑपरेशन करवाता है तो उसकी मेडिकल रिपोर्ट, बिल और प्रक्रिया का पूरा ब्योरा देना अस्पताल की जिम्मेदारी होती है।
Private Hospital Negligence साबित होने पर संबंधित अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है और दोषियों पर फौजदारी मुकदमा चलाया जा सकता है।
चिकित्सा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता
यह मामला केवल एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है। अगर आज कोई गरीब या मध्यमवर्गीय परिवार मेडिकल माफियाओं के चंगुल में फंस जाता है, तो उसके पास न्याय पाने के सीमित साधन होते हैं।
स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि निजी अस्पतालों की समय-समय पर ऑडिट कराई जाए, इलाज की प्रक्रिया को रिकॉर्ड किया जाए और मरीजों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जाए। साथ ही, बिचौलियों पर भी लगाम लगाने की आवश्यकता है जो मरीजों को भ्रमित कर गलत अस्पतालों की ओर भेजते हैं।
Private Hospital Negligence के इस मामले ने न सिर्फ लखनऊ की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल दी है, बल्कि यह भी दर्शाया कि आम आदमी आज भी न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है। प्रशासन से उम्मीद की जाती है कि वह पीड़ित को न्याय दिलाएगा और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएगा।
मरीज केवल ग्राहक नहीं हैं — उनका जीवन हर अस्पताल की नैतिक ज़िम्मेदारी है।