Mental Cruelty

Mental Cruelty: शादी के बाद पति बना सन्यासी! पत्नी का आरोप- ‘नहीं चाहता था सेक्स, सिर्फ मंदिर में बिताता था समय’… केरल हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला!

Latest News

हाइलाइट्स:

– केरल हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में ‘Mental Cruelty’ को परिभाषित करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
– पत्नी ने आरोप लगाया कि पति ने शारीरिक संबंध और पारिवारिक जिम्मेदारियों से पूरी तरह इनकार कर दिया था।
– पति का ज्यादातर समय मंदिरों और आश्रमों में बीतता था, जिससे वैवाहिक जीवन प्रभावित हुआ।
– अदालत ने कहा कि किसी को ‘Spiritual Lifestyle’ अपनाने के लिए मजबूर करना ‘Mental Cruelty’ है।
– फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा, जिससे महिला को न्याय मिला।

केरल हाईकोर्ट का Landmark Judgment

मामले की Background

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक तलाक केस में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें ‘Mental Cruelty’ को लेकर महत्वपूर्ण व्याख्या की गई। यह मामला एक ऐसे विवाद से जुड़ा है जहां पत्नी ने पति के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे। उसने अदालत में बताया कि उसका पति न तो शारीरिक संबंध बनाने में रुचि रखता था और न ही बच्चे पैदा करने में। इसके अलावा, उसने यह भी कहा कि पति का अधिकांश समय मंदिरों और आश्रमों में बीतता था और वह उसे भी अपने जैसा ‘**Spiritual Lifestyle’ अपनाने के लिए मजबूर करता था।

यह मामला केरल के एक मध्यमवर्गीय परिवार से जुड़ा है जहां शादी के कुछ साल बाद ही पति का व्यवहार बदलने लगा। पत्नी ने अदालत में बताया कि उसके पति ने धीरे-धीरे सांसारिक जिम्मेदारियों से खुद को अलग कर लिया था। वह दिन का अधिकांश समय धार्मिक गतिविधियों में बिताने लगा और पत्नी को भी इसी रास्ते पर चलने के लिए दबाव डालने लगा।

Marital Discord का मुख्य कारण

महिला ने अपनी याचिका में विस्तार से बताया कि शादी के बाद से ही पति का व्यवहार धीरे-धीरे बदलता गया। शुरुआत में उसने सोचा कि यह सिर्फ एक अवस्था है जो जल्दी ठीक हो जाएगी, लेकिन समय बीतने के साथ स्थिति और खराब होती गई। पति ने न केवल शारीरिक संबंध बनाने से मना कर दिया बल्कि बच्चे पैदा करने के विचार को भी पूरी तरह से नकार दिया।

इसके अलावा, पति ने उसे अपनी तरह का ‘Spiritual Lifestyle’ जीने के लिए लगातार दबाव डाला। वह उसे मंदिरों और आश्रमों में ले जाता और उसकी पढ़ाई में भी बाधा डालता। महिला ने बताया कि वह पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी लेकिन पति ने उसकी पढ़ाई को बीच में ही छुड़वा दिया। 2019 में हालात इतने खराब हो गए कि महिला ने तलाक के लिए अर्जी दायर कर दी। हालांकि, पति ने व्यवहार सुधारने का वादा किया जिसके बाद उसने याचिका वापस ले ली।

लेकिन 2022 तक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। पति का व्यवहार वैसा का वैसा ही रहा और महिला ने फिर से तलाक की अर्जी दायर कर दी। इस बार फैमिली कोर्ट ने उसकी याचिका को स्वीकार करते हुए तलाक का आदेश दिया। पति ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जहां उसने दावा किया कि उसकी ‘Spiritual Practices’ को गलत समझा गया है।

केरल हाईकोर्ट का Decisive Verdict

केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एमबी स्नेलता शामिल थे, ने इस मामले में अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि “किसी भी पति या पत्नी को दूसरे पर अपनी ‘Personal Beliefs’ थोपने का अधिकार नहीं है।”

अदालत ने कहा कि पति का अपनी पत्नी को ‘Spiritual Lifestyle’ अपनाने के लिए मजबूर करना स्पष्ट रूप से ‘Mental Cruelty’ की श्रेणी में आता है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि विवाहित जीवन में दोनों साथियों की समान जिम्मेदारियां होती हैं और किसी एक का अपने निजी विश्वासों को दूसरे पर लादना वैवाहिक संबंधों के लिए हानिकारक हो सकता है।

अदालत ने यह भी कहा कि पति का व्यवहार ‘Marital Responsibilities’ की अनदेखी का स्पष्ट उदाहरण है। उसने न केवल पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार किया बल्कि उसकी शिक्षा और व्यक्तिगत विकास में भी बाधा डाली। यह सभी बिंदु ‘Mental Cruelty’ की परिभाषा में आते हैं।

Divorce Decree को बरकरार रखा गया

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि महिला के आरोपों में कोई झूठ नहीं था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पति द्वारा अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं को थोपने का प्रयास वैवाहिक जीवन के लिए हानिकारक था। इस तरह, महिला और उसके पति के बीच तलाक की प्रक्रिया पूरी हो गई।

Mental Cruelty :Legal Implications और Social Impact

केरल हाईकोर्ट के इस फैसले का कानूनी और सामाजिक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है। कानूनी दृष्टि से यह फैसला ‘Mental Cruelty‘ की परिभाषा को और स्पष्ट करता है। अब तक भारतीय अदालतों में ‘Mental Cruelty’ के मामलों में मुख्य रूप से शारीरिक हिंसा, अपशब्द या भावनात्मक दुर्व्यवहार को ही शामिल किया जाता था। लेकिन इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि किसी को अपने निजी विश्वासों या जीवनशैली को अपनाने के लिए मजबूर करना भी ‘Mental Cruelty’ की श्रेणी में आता है।

सामाजिक स्तर पर यह फैसला उन महिलाओं के लिए एक आशा की किरण है जो अपने पतियों द्वारा धार्मिक या आध्यात्मिक दबाव का सामना कर रही हैं। अक्सर देखा गया है कि कुछ पुरुष अपनी पत्नियों को अपने धार्मिक विश्वासों को मानने के लिए मजबूर करते हैं और अगर वह ऐसा नहीं करतीं तो उन्हें मानसिक यातना दी जाती है। इस फैसले के बाद ऐसी महिलाएं कानूनी रूप से अपने अधिकारों की मांग कर सकती हैं।

केरल हाईकोर्ट का यह फैसला ‘Marital Rights’ और ‘Personal Freedom’ के बीच संतुलन स्थापित करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “धार्मिक या आध्यात्मिक मान्यताएं व्यक्तिगत होती हैं और उन्हें जबरन थोपना ‘Mental Cruelty’ की श्रेणी में आता है।” यह फैसला न सिर्फ महिला के लिए न्याय सुनिश्चित करता है, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक ‘Legal Precedent’ भी बन गया है।

इस फैसले से यह संदेश भी मिलता है कि विवाहित जीवन में दोनों साथियों को एक-दूसरे की भावनाओं और विश्वासों का सम्मान करना चाहिए। किसी को अपने विश्वासों को मानने के लिए मजबूर करना न केवल गलत है बल्कि कानूनी रूप से दंडनीय भी हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *