Mahakumbh 2025 Ganga-Yamuna Sangam water is not suitable for bathing

महाकुंभ 2025: गंगा-यमुना संगम का जल स्नान योग्य नहीं, CPCB रिपोर्ट का बड़ा खुलासा

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प्रयागराज महाकुंभ में जल की गुणवत्ता पर गंभीर चिंता

महाकुंभ 2025 का आयोजन जोरों पर है, लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की ताजा रिपोर्ट ने श्रद्धालुओं की चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, गंगा और यमुना के संगम का जल स्नान के लिए उपयुक्त नहीं है। यह खुलासा जल में मौजूद उच्च फेकल कोलीफॉर्म (Fecal Coliform) बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक तत्वों की उपस्थिति के कारण हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रयागराज में संगम का जल निर्धारित मानकों को पूरा नहीं कर रहा है, जिससे लाखों श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।

CPCB रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

CPCB की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रयागराज में संगम सहित विभिन्न स्थानों से लिए गए जल के नमूने स्नान योग्य नहीं पाए गए। 9 से 21 जनवरी 2025 के बीच लिए गए नमूनों की जांच में पाया गया कि जल में फेकल कोलीफॉर्म की मात्रा निर्धारित सीमा से काफी अधिक है। आमतौर पर स्नान योग्य जल में फेकल कोलीफॉर्म की सीमा 2,500 यूनिट प्रति 100 मिलीलीटर होती है, लेकिन संगम में यह स्तर अत्यधिक बढ़ा हुआ पाया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार:

  • गंगा और यमुना का जल उच्च जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) स्तर दर्शाता है, जो प्रदूषण का संकेत है।
  • पानी में घुलित ऑक्सीजन (DO) का स्तर कम पाया गया है, जो जलीय जीवन के लिए घातक है।
  • संगम क्षेत्र में घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट के सीधे प्रवाह से जल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

प्रदूषित जल में स्नान करने से त्वचा संक्रमण, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारियाँ, आंखों में संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जल में फेकल कोलीफॉर्म की अधिकता यह दर्शाती है कि मल-जल का प्रवाह बिना किसी शोधन के नदी में मिल रहा है। यह स्थिति विशेष रूप से उन श्रद्धालुओं के लिए खतरनाक हो सकती है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है।

प्रदूषण के संभावित कारण

CPCB और पर्यावरणविदों के अनुसार, संगम के जल में प्रदूषण बढ़ने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं:

  1. सीवेज का असंशोधित प्रवाह – कई स्थानों पर मल-जल सीधे गंगा और यमुना में प्रवाहित हो रहा है।
  2. औद्योगिक कचरा – इलाहाबाद और उसके आसपास स्थित उद्योगों से निकलने वाला रसायनिक कचरा बिना शोधन के नदी में छोड़ा जा रहा है।
  3. श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या – महाकुंभ के दौरान लाखों लोग संगम में स्नान करते हैं, जिससे मानवजनित कचरा बढ़ जाता है।
  4. घाटों की अपर्याप्त सफाई – प्रशासन की ओर से घाटों की नियमित सफाई नहीं हो पा रही, जिससे गंदगी बढ़ रही है।

एनजीटी और सरकार की प्रतिक्रिया

CPCB की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) को कड़ी फटकार लगाई है। NGT ने जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए तत्काल उपाय करने के निर्देश दिए हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस रिपोर्ट के बाद 1,600 करोड़ रुपये के विशेष बजट की घोषणा की है, जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) का उन्नयन, गंगा सफाई अभियान को तेज करने और घाटों की सफाई सुनिश्चित करने की योजनाएँ शामिल हैं। हालाँकि, रिपोर्ट यह दर्शाती है कि अभी भी जल की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है।

विशेषज्ञों की राय

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के पर्यावरण विज्ञान विशेषज्ञ प्रो. बी.डी. त्रिपाठी के अनुसार, “यदि जल में फेकल कोलीफॉर्म की मात्रा इतनी अधिक है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि अपशिष्ट जल का शोधन सही से नहीं किया जा रहा है। प्रशासन को तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे, अन्यथा यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।”

श्रद्धालुओं की प्रतिक्रिया

महाकुंभ में पहुंचे कई श्रद्धालुओं ने संगम के जल की गुणवत्ता पर चिंता जताई है। वाराणसी से आए एक श्रद्धालु रमेश तिवारी ने कहा, “हम हर बार महाकुंभ में गंगा स्नान के लिए आते हैं, लेकिन इस बार पानी की स्थिति देखकर चिंता हो रही है। सरकार को इस दिशा में तेजी से काम करना चाहिए।”

समाधान और आगे की राह

सरकार और प्रशासन को निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है:

  • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को जल्द से जल्द अपग्रेड किया जाए।
  • औद्योगिक अपशिष्ट के निष्कासन पर सख्ती से रोक लगाई जाए।
  • श्रद्धालुओं को जागरूक किया जाए कि वे स्नान के दौरान साबुन और अन्य रसायनों का उपयोग न करें।
  • गंगा और यमुना के जल की गुणवत्ता पर निरंतर निगरानी रखी जाए।

महाकुंभ 2025 में संगम के जल की गुणवत्ता को लेकर सामने आई यह रिपोर्ट श्रद्धालुओं के लिए चिंता का विषय है। प्रशासन को इस चुनौती से निपटने के लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाने होंगे ताकि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और स्वास्थ्य दोनों की रक्षा हो सके। गंगा और यमुना की पवित्रता बनाए रखना केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज का भी कर्तव्य है।

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