Interfaith Marriage

Interfaith Marriage: बुर्का छोड़ अपनाया सनातन! मुस्लिम युवती ने हिंदू प्रेमी संग आश्रम में लिए सात फेरे, शादी से पहले हुआ शुद्धिकरण

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हाइलाइट्स

अलीगढ़ की युवती ने अपनाया सनातन धर्म, बरेली के युवक से Interfaith Marriage कर रचाई नई पहचान

घटना का विवरण: धर्म और प्रेम के संगम की कहानी

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले की एक मुस्लिम युवती ने अपनी पसंद और मर्जी से Interfaith Marriage करते हुए बरेली के हिंदू युवक से विवाह रचाया है। युवती ने अपने धर्म को छोड़कर सनातन धर्म अपनाया और हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह के सात फेरे लिए। यह विवाह बरेली स्थित अगस्त्य मुनि आश्रम में संपन्न हुआ, जहां धार्मिक विधियों के साथ शुद्धिकरण कर विवाह समारोह सम्पन्न हुआ।

इस घटना ने न सिर्फ समाज में चर्चा का विषय बना दिया है, बल्कि Interfaith Marriage की जटिलताओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर भी नए सिरे से विमर्श शुरू कर दिया है।

सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो और तस्वीरें

शादी की तस्वीरें और वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनमें युवती रूबी, जो पहले मुस्लिम थी, अपने नए जीवनसाथी राजेश के साथ विवाह की रस्में निभाती नजर आ रही है। वीडियो में वह स्पष्ट रूप से कहती हैं कि यह Interfaith Marriage उनकी अपनी इच्छा से हुई है और इस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं था।

रूबी ने कहा, “मैं लंबे समय से सनातन धर्म को पसंद करती हूं। मुझे हलाला, तीन तलाक और बुर्का जैसी परंपराएं स्वीकार नहीं। मैंने अपनी मर्जी से हिंदू धर्म अपनाया है।”

शपथ पत्र देकर सुरक्षा की मांग

विवाह के बाद दोनों ने प्रशासन को एक शपथ पत्र भी सौंपा है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि यह Interfaith Marriage दोनों की आपसी सहमति से हुई है। साथ ही, रूबी और राजेश ने प्रशासन से अपनी सुरक्षा की भी मांग की है, ताकि किसी प्रकार का सामाजिक या पारिवारिक दबाव उन पर न पड़े।

पहली मुलाकात और प्रेम की शुरुआत

राजेश अक्सर अलीगढ़ जिले के इगलास थाना क्षेत्र स्थित गांव में अपने एक दोस्त से मिलने जाया करता था। वहीं पहली बार रूबी और राजेश की मुलाकात हुई। धीरे-धीरे बातचीत बढ़ी और फोन नंबरों का आदान-प्रदान हुआ। फिर, ये मुलाकातें दोस्ती में और दोस्ती प्यार में बदल गईं।

रूबी बताती हैं, “राजेश ने मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाया। उसने साफ-साफ बताया कि वह मुझसे शादी करना चाहता है। मैंने भी पूरी सोच-समझ के साथ निर्णय लिया और Interfaith Marriage का रास्ता अपनाया।”

आश्रम में हुआ विवाह, संतों ने दिया आशीर्वाद

बरेली के अगस्त्य मुनि आश्रम में संतों की उपस्थिति में धार्मिक विधि-विधान से यह Interfaith Marriage सम्पन्न हुई। सबसे पहले युवती का शुद्धिकरण कराया गया, फिर मंत्रोच्चार के बीच सात फेरे लिए गए।

आश्रम के महंत केके शंखधार ने विवाह संपन्न करवाया और नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा, “धर्म आत्मा का विषय है। अगर कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन कर रहा है, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”

सामाजिक प्रतिक्रिया और बहस

यह Interfaith Marriage केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संदर्भों में एक बड़ी बहस का विषय बन गई है। कुछ लोगों ने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान के तहत प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उदाहरण माना है, तो कुछ लोगों ने इसे परंपराओं के खिलाफ बताया।

धर्म परिवर्तन से जुड़े कई सामाजिक पहलू इस विवाह से उजागर हुए हैं—विशेषकर तब, जब युवती ने स्पष्ट शब्दों में उन परंपराओं को नकारा, जो उसे रूढ़िवादी लगती थीं।

विशेषज्ञों की राय

मानवाधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक विश्लेषक इस Interfaith Marriage को एक सकारात्मक सामाजिक संकेत मानते हैं। वरिष्ठ समाजशास्त्री डॉ. वीरेन्द्र शर्मा का कहना है, “हमारे संविधान में हर व्यक्ति को धर्म चुनने और जीवन साथी का चयन करने की स्वतंत्रता है। यह विवाह उसी अधिकार की अभिव्यक्ति है। ऐसे उदाहरण समाज को सोचने पर मजबूर करते हैं कि व्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि है।”

 एक नई सोच की शुरुआत

रूबी और राजेश की यह Interfaith Marriage केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि धार्मिक और सामाजिक सीमाओं को पार कर एक नए युग की शुरुआत है। जहां एक ओर यह विवाह धार्मिक सहिष्णुता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मिसाल बनता है, वहीं दूसरी ओर यह समाज के उन रूढ़िवादी हिस्सों को चुनौती देता है जो अब भी धर्म के नाम पर महिलाओं की आजादी को नियंत्रित करना चाहते हैं।

इस विवाह के जरिए रूबी ने न केवल अपने लिए नई पहचान बनाई है, बल्कि उन अनगिनत युवाओं को भी संदेश दिया है जो समाज की दीवारों के बीच अपने फैसलों से डरते हैं।

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