Increasing number of missing children in India

भारत में लापता बच्चों की बढ़ती संख्या: एक गंभीर चिंता

Latest News

भारत में लापता बच्चों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जो समाज और सरकार दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 47,000 से अधिक बच्चे लापता हुए, जिनमें से 71.4% नाबालिग लड़कियां थीं। यह प्रवृत्ति पिछले कुछ वर्षों से बढ़ती जा रही है, जो एक गंभीर सामाजिक समस्या की ओर संकेत करती है।

लापता बच्चों के आंकड़े: एक विस्तृत विश्लेषण

NCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2021 की तुलना में 2022 में लापता बच्चों की संख्या में 7.5% की वृद्धि हुई। इससे पहले, 2020 में यह वृद्धि 30.8%, 2019 में 19.8%, और 2018 में 8.9% थी। यह दर्शाता है कि लापता बच्चों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

लापता लड़कियों की उच्च संख्या

2022 में लापता हुए बच्चों में से 71.4% नाबालिग लड़कियां थीं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि लड़कियां विशेष रूप से असुरक्षित हैं और उन्हें विशेष सुरक्षा की आवश्यकता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच 18 साल से ऊपर की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हुईं। यह स्थिति महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

सरकारी प्रयास और उनकी प्रभावशीलता

सरकार ने लापता बच्चों की खोज और पुनर्वास के लिए कई पहल की हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सितंबर 2023 में बताया कि 2015 से अब तक 4.46 लाख लापता बच्चों में से 3.97 लाख को उनके परिवारों के पास वापस भेजा गया है। यह उपलब्धि मिशन वात्सल्य जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से संभव हुई है। हालांकि, लापता बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि अभी और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।

लापता बच्चों के पीछे के कारण

बच्चों के लापता होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें अपहरण, मानव तस्करी, अवैध गोद लेना, प्राकृतिक आपदाएं, और बच्चों का घर से भागना शामिल हैं। बचपन बचाओ आंदोलन के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 96,000 बच्चे लापता होते हैं, जो प्रति दिन लगभग 151.2 बच्चों के बराबर है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।

क्षेत्रीय विश्लेषण

कुछ राज्यों में लापता बच्चों की संख्या विशेष रूप से अधिक है। पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 44,095 बच्चे लापता हुए, जिनमें से 36,055 को बरामद किया गयाउत्तर प्रदेश में 26,008 बच्चे लापता हुए, जिनमें से केवल 14,646 को ही ढूंढा जा सका। यह दर्शाता है कि कुछ राज्यों में लापता बच्चों की समस्या अधिक गंभीर है और वहां विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

सरकारी पोर्टल और उनकी भूमिका

लापता बच्चों की जानकारी और उन्हें खोजने के लिए सरकार ने ‘ट्रैक चाइल्ड’ और ‘खोया-पाया’ जैसे वेब पोर्टल शुरू किए हैं। हालांकि, 2012 से 2016 के बीच लापता हुए 60,000 से अधिक बच्चों का अभी तक पता नहीं चल पाया है, जो इन पोर्टल्स की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े करता है। यह आवश्यक है कि इन पोर्टल्स की कार्यप्रणाली में सुधार किया जाए ताकि लापता बच्चों की खोज में तेजी लाई जा सके।

लापता बच्चों की बढ़ती संख्या एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जो तत्काल ध्यान और कार्रवाई की मांग करती है। सरकार ने कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अभी और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। समाज, सरकार, और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और लापता बच्चों की संख्या में कमी लाई जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *