हाइलाइट्स:
- सपा प्रमुख अखिलेश यादव का Hitler comparison वाला बयान बना चर्चा का विषय
- करणी सेना को बताया बीजेपी समर्थक संगठन, सेना नहीं
- बयान में हिटलर के ट्रूपर का जिक्र कर साधा बीजेपी पर निशाना
- विपक्ष ने किया बयान का समर्थन, जबकि बीजेपी ने बताया अशोभनीय
- चुनावी माहौल में बढ़ सकती है बयान की संवेदनशीलता और राजनीतिक गर्मी
अखिलेश यादव का बयान: करणी सेना की तुलना हिटलर की सेना से, मचा सियासी बवाल
उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने एक जनसभा के दौरान करणी सेना को लेकर दिया ऐसा बयान, जिसने देश की सियासत में नई बहस को जन्म दे दिया है। अपने बयान में अखिलेश यादव ने करणी सेना की तुलना हिटलर के ट्रूपर्स से की, जिसे लेकर भाजपा और करणी सेना के समर्थकों में तीव्र नाराजगी देखी जा रही है।
क्या कहा अखिलेश यादव ने?
जनसभा को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा,
“ये कोई सेना वेना नहीं है, ये सभी बीजेपी वाले हैं। हिटलर ने भी ट्रूपर रखे थे, वह भी अपने कार्यकर्ताओं को पुलिस की वर्दी पहना देता था। ये सेना नहीं है, ये बीजेपी के ही लोग हैं।”
अखिलेश यादव का Hitler comparison वाला यह बयान तुरंत वायरल हो गया और राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गईं।
करणी सेना कौन है, और क्यों विवादों में रहती है?
करणी सेना का गठन और उद्देश्य
राजपूत समाज की सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान को लेकर बनी करणी सेना पिछले कई वर्षों से राष्ट्रव्यापी चर्चाओं में रही है। इसका गठन राजपूत हितों की रक्षा और इतिहास से जुड़े मुद्दों को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से किया गया था।
हालांकि, समय-समय पर इसके कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए उग्र विरोध, खासकर फ़िल्म ‘पद्मावत’ के विरोध के दौरान, करणी सेना की छवि एक उग्रवादी संगठन की बन गई।
बीजेपी से कथित संबंध
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि करणी सेना के कुछ हिस्सों में बीजेपी के प्रति झुकाव देखा गया है। हाल ही में कई मौकों पर करणी सेना ने बीजेपी के एजेंडे का समर्थन किया है, जिससे विपक्ष का यह आरोप बल पकड़ता है कि करणी सेना वस्तुतः एक राजनीतिक मोहरा है।
अखिलेश यादव के Hitler comparison वाले बयान का मकसद शायद इसी मुद्दे को उजागर करना था।
बयान के पीछे की मंशा और राजनीतिक रणनीति
समाजवादी पार्टी की सियासी गणना
अखिलेश यादव का यह बयान सिर्फ एक आवेश में दिया गया भाषण नहीं था, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति है। यूपी में अगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए यादव ने यह मुद्दा उठाया है, जिससे भाजपा और उससे जुड़े संगठनों की “सांस्कृतिक राजनीति” को निशाना बनाया जा सके।
Hitler comparison जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके अखिलेश ने न केवल करणी सेना की वैधता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि बीजेपी की कार्यशैली को भी कठघरे में खड़ा किया है।
क्या यह बयान मुस्लिम और दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बयान से अखिलेश यादव ने अल्पसंख्यक और दलित समुदाय के बीच बीजेपी के खिलाफ डर और असंतोष को और अधिक उभारने की कोशिश की है। Hitler comparison का प्रयोग कर के उन्होंने बीजेपी को ‘तानाशाही’ और ‘साम्प्रदायिक’ ताकतों के रूप में चित्रित करने की कोशिश की है।
किसने क्या कहा?
बीजेपी की प्रतिक्रिया
भाजपा प्रवक्ता ने अखिलेश यादव के Hitler comparison वाले बयान को बेहद आपत्तिजनक और अलोकतांत्रिक बताया। उन्होंने कहा:
“यह बयान केवल नफरत फैलाने और समाज को बांटने की राजनीति का हिस्सा है। करणी सेना की तुलना हिटलर से करना न केवल संगठन का अपमान है बल्कि भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं का भी।”
करणी सेना की तीखी प्रतिक्रिया
करणी सेना के प्रवक्ता ने अखिलेश यादव से माफी की मांग की है। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी प्रमुख का यह बयान न केवल करणी सेना बल्कि पूरे राजपूत समाज का अपमान है।
“अगर अखिलेश यादव ने माफी नहीं मांगी तो हम पूरे प्रदेश में उनके खिलाफ प्रदर्शन करेंगे।”
सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बड़ा ब्यान- ये कोई सेना वेना नहीं है ये बीजेपी वाले हैं,
हिटलर ने भी रखे थे ट्रूपर हिटलर ने भी एक सेना रखी थी…हिटलर भी अपने कार्यकर्ताओं को पुलिस की वर्दी पहना देता था pic.twitter.com/Kb5HKcCYaT— Millat Times (@Millat_Times) April 12, 2025
जनमानस की राय
सोशल मीडिया पर यह मुद्दा गर्माया हुआ है। कुछ लोग अखिलेश यादव के Hitler comparison वाले बयान को सच का आईना बता रहे हैं, तो कुछ इसे अतिशयोक्ति और चुनावी हथकंडा मानते हैं।
चुनावी रणनीति या जनहित?
यह स्पष्ट है कि इस बयान का उद्देश्य केवल करणी सेना पर निशाना साधना नहीं था। यह बयान एक बड़ी चुनावी रणनीति का हिस्सा है, जहां अखिलेश यादव भाजपा को एक “तानाशाही सत्ता” के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं। Hitler comparison शब्द से उन्होंने जनता को यह संकेत देने की कोशिश की है कि भाजपा लोकतंत्र को कमजोर कर रही है।
सियासी तूफान की आहट
अखिलेश यादव का Hitler comparison वाला बयान आगामी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। इस बयान से एक तरफ सपा को अल्पसंख्यक और उदारवादी वर्ग का समर्थन मिल सकता है, वहीं भाजपा इस बयान को अपने खिलाफ साजिश बताकर आक्रामक हो सकती है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बयान किसकी सियासी ज़मीन को मज़बूत करता है और किसके लिए राजनीतिक जोखिम बन जाता है।