Gujarat Model

Gujarat Model: दिल्ली में केजरीवाल और अखिलेश यादव ने शिक्षा पर उठाए सवाल, गुजरात के 157 स्कूलों में एक भी छात्र पास नहीं – शिक्षा व्यवस्था पर मंडरा रहा है खतरा?

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हाइलाइट्स:

  • Gujarat Model को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और अखिलेश यादव ने किया तीखा हमला।
  • Gujarat Board के 157 स्कूलों में 10वीं कक्षा में एक भी छात्र पास नहीं हो पाया।
  • Akhilesh Yadav ने Gujarat Model को पूरी तरह फेल करार दिया।
  • Basic Mathematics में 1.96 लाख और Gujarati विषय में 96,000 छात्र फेल हुए।
  • केजरीवाल ने कहा – अब BJP दिल्ली में भी Gujarat Model लागू कर शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करना चाहती है।

Gujarat Model के खिलाफ राजनीतिक भूचाल

हाल ही में गुजरात माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (GSEB) द्वारा घोषित 10वीं बोर्ड परीक्षा 2023 के नतीजों ने न केवल गुजरात की शिक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा किया, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी हलचल मचा दी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि यह वही Gujarat Model है जिसे बीजेपी पूरे देश पर थोपना चाहती है।

उन्होंने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “ये Gujarat Model है। ये BJP का मॉडल है जिसे पूरे देश में लागू करने की कोशिश की जा रही है। बताइए एक भी ऐसा राज्य जहां इनकी सरकार हो और वहां शिक्षा व्यवस्था का सत्यानाश न हुआ हो?”

Gujarat Model में 157 स्कूलों का शून्य परिणाम: आंकड़े चौंकाने वाले

2023 के 10वीं बोर्ड परीक्षा परिणामों में Gujarat Model के अंतर्गत जो आंकड़े सामने आए हैं, वे गंभीर चिंता का विषय हैं:

  • कुल पास प्रतिशत: 64.62%
  • सबसे अच्छा प्रदर्शन: सूरत (76%)
  • सबसे खराब प्रदर्शन: दाहोद (40.75%)
  • 157 स्कूलों में शून्य पास प्रतिशत
  • 1084 स्कूलों में 30% से कम पास रेट
  • 1.96 लाख छात्र गणित में फेल
  • 96,000 छात्र गुजराती विषय में फेल
  • Repeater छात्रों में से 1.65 लाख में केवल 27,446 पास

ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि जिस Gujarat Model को बीजेपी शिक्षा का आदर्श बताती रही है, वह खुद ही चरमराता नजर आ रहा है।

क्या Gujarat Model वाकई फेल हो चुका है?

Gujarat Model की शुरुआत एक सफल प्रशासनिक प्रणाली के तौर पर हुई थी, लेकिन समय के साथ यह शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में लड़खड़ाता नजर आ रहा है। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस मॉडल में निजीकरण को प्राथमिकता देने, शिक्षकों की कमी, और सरकारी स्कूलों में संसाधनों की भारी किल्लत के कारण यह स्थिति बनी है।

हाल के वर्षों में Gujarat Model को केवल विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर आँका गया है, लेकिन जब शिक्षा के असली आंकड़े सामने आते हैं तो तस्वीर डरावनी हो जाती है।

Akhilesh Yadav ने भी Gujarat Model पर कसा तंज

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने X पर पोस्ट किया –
“Gujarat Model ही फ़ेल हो गया… 157 स्कूलों में एक भी छात्र पास नहीं हुआ। BJP हटाएंगे, भविष्य बचाएंगे!”

उनका यह बयान केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक चेतावनी भी है कि अगर यही Gujarat Model देशभर में लागू हुआ, तो लाखों छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

दिल्ली की शिक्षा पर भी मंडरा रहा है Gujarat Model का साया?

केजरीवाल का दावा है कि BJP अब दिल्ली में भी Gujarat Model को लागू करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि “दिल्ली में हमने शिक्षा को एक मॉडल बनाया, लेकिन अब BJP उसी पर हमला बोल रही है और Gujarat Model जैसी असफल नीतियाँ थोपने की कोशिश कर रही है।”

यह एक गंभीर आरोप है, क्योंकि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है और उसके सरकारी स्कूलों को एक आदर्श के रूप में देखा गया है।

Gujarat Model: निजीकरण और गिरते सरकारी मानदंड

विशेषज्ञों का कहना है कि Gujarat Model की सबसे बड़ी खामी इसकी शिक्षा नीति में निजीकरण को प्राथमिकता देना है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, और शिक्षण की गुणवत्ता में भारी गिरावट इस मॉडल की असलियत को उजागर करते हैं।

यदि यही Gujarat Model अन्य राज्यों में भी लागू किया गया, तो शिक्षा एक सामाजिक अधिकार न होकर सिर्फ एक व्यापार बन जाएगा।

समाधान क्या है?

Gujarat Model की असफलता यह बताती है कि शिक्षा व्यवस्था केवल आंकड़ों और ग्राफ़ से नहीं चलती। इसके लिए ज़मीनी हकीकत, शिक्षकों का प्रशिक्षण, संसाधनों की उपलब्धता और छात्रों की ज़रूरतों के अनुरूप नीति निर्माण की आवश्यकता है।

देश को ऐसे मॉडल की जरूरत है जो शिक्षा को सुलभ, गुणवत्तापूर्ण और समावेशी बना सके – न कि ऐसा Gujarat Model जो केवल खोखले वादों पर आधारित हो।

Gujarat Model पर उठते सवाल अब केवल राजनीतिक विरोध का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक चिंता बन चुके हैं। अगर समय रहते इस मॉडल की समीक्षा नहीं की गई और सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो न सिर्फ गुजरात, बल्कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था संकट में पड़ सकती है।

राजनीतिक बयानबाज़ी से परे, अब समय आ गया है कि Gujarat Model की वास्तविकता को स्वीकार कर देश के बच्चों के भविष्य को बचाया जाए।

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