मुगल सम्राट औरंगज़ेब के बारे में यह दावा किया जाता है कि वह प्रतिदिन सवा मन (लगभग 50 किलोग्राम) जनेऊ देखकर ही भोजन करता था। यदि एक जनेऊ का वजन 5 ग्राम माना जाए, तो इसका अर्थ होगा कि प्रतिदिन 10,000 ब्राह्मणों की हत्या की जाती थी। औरंगज़ेब ने 49 वर्षों तक शासन किया, जिससे यह संख्या 20 करोड़ हत्याओं तक पहुँचती है, जबकि उस समय भारत की कुल जनसंख्या 15 करोड़ थी। इस प्रकार के दावों की सत्यता पर प्रश्न उठते हैं, और यह आवश्यक है कि हम ऐतिहासिक तथ्यों का विश्लेषण करके सच्चाई तक पहुँचें।
ऐतिहासिक साक्ष्यों का अभाव
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और प्रमाणों में कहीं भी यह उल्लेख नहीं मिलता कि औरंगज़ेब प्रतिदिन सवा मन जनेऊ देखकर भोजन करता था या उसने प्रतिदिन 10,000 ब्राह्मणों की हत्या करवाई। इतिहासकारों के अनुसार, इस प्रकार के दावे मिथक और अफवाहों पर आधारित हैं, जिनका उद्देश्य औरंगज़ेब की छवि को विकृत करना हो सकता है। इतिहासकारों का मानना है कि इस प्रकार के दावे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।
जनसंख्या और हत्याओं का असंगत गणित
यदि औरंगज़ेब के शासनकाल में भारत की जनसंख्या लगभग 15 करोड़ थी, तो 20 करोड़ लोगों की हत्या का दावा स्पष्ट रूप से असंभव है। यह गणितीय असंगति इस प्रकार के दावों की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न करती है। इतिहासकारों के अनुसार, इस प्रकार के दावे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।
ऐसे दावों का प्रसार क्यों?
ऐतिहासिक मिथकों और अफवाहों का प्रसार अक्सर सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होता है। औरंगज़ेब के बारे में इस प्रकार के दावे संभवतः धार्मिक भावनाओं को भड़काने या विशेष समुदायों के प्रति द्वेष फैलाने के लिए गढ़े गए हो सकते हैं। ऐसे दावों का उद्देश्य समाज में विभाजन और तनाव उत्पन्न करना हो सकता है।
इतिहास का वस्तुनिष्ठ अध्ययन आवश्यक
इतिहास का अध्ययन करते समय हमें तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित निष्कर्षों पर ही विश्वास करना चाहिए। मिथकों और अफवाहों के आधार पर धारणा बनाना न केवल ऐतिहासिक सच्चाई के प्रति अन्याय है, बल्कि यह समाज में भ्रांतियों और पूर्वाग्रहों को भी बढ़ावा देता है। इसलिए, ऐतिहासिक घटनाओं का वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष विश्लेषण आवश्यक है।
औरंगज़ेब के बारे में प्रतिदिन सवा मन जनेऊ देखकर भोजन करने और 20 करोड़ हत्याओं के दावे ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित नहीं हैं। ऐसे मिथकों का प्रसार समाज में विभाजन और तनाव को बढ़ावा देता है। हमें इतिहास का अध्ययन करते समय तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित निष्कर्षों पर ही विश्वास करना चाहिए, ताकि समाज में भ्रांतियों और पूर्वाग्रहों को रोका जा सके।