Dalit Discrimination

Dalit Discrimination: सांसद होते हुए भी नहीं मिला सम्मान, राम मंदिर में दर्शन से पहले ही जाति देखकर रोक दिया गया, VIDEO

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हाइलाइट्स:

  • Dalit Discrimination का मामला राम मंदिर जैसे पवित्र स्थल पर उजागर
  • अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद को दर्शन से पहले ही रोक दिया गया
  • अनुसूचित जाति से होने के कारण उन्हें भगवान के दर्शन तक की अनुमति नहीं मिली
  • पूरा घटनाक्रम कैमरे में कैद, सोशल मीडिया पर वायरल
  • PM मोदी को टैग कर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाए गंभीर सवाल

जातिवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं?

अयोध्या में मंदिर का दर्शन और Dalit Discrimination

अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण पूरे देश के लिए गर्व की बात रही है। लेकिन हाल ही में घटी एक घटना ने न केवल मंदिर की गरिमा को, बल्कि सामाजिक समरसता के दावे को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद, जो कि पासी समुदाय से हैं, जब मंदिर में भगवान राम के दर्शन करने पहुंचे तो उन्हें मूर्ति से काफी दूर ही रोक दिया गया।

यह Dalit Discrimination का एक ज्वलंत उदाहरण है। एक लोकतांत्रिक देश में जहां एक दलित व्यक्ति सांसद के पद तक पहुंच सकता है, वहां भी उसे जाति के नाम पर अपमानित किया जाता है।

वीडियो वायरल और जनता का गुस्सा

घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि सांसद अवधेश प्रसाद को मुख्य मूर्ति के पास जाने की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें दूर से ही दर्शन कराकर वापस भेज दिया गया।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विलास खरात ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा—

“भाजपा, RSS के ब्राह्मण जिन्हें आज भी अछूत मान रही है। यह है राम मंदिर की असलियत। ऐसे सांसद मर क्यों नहीं जाते?”

यह प्रतिक्रिया जितनी आक्रोशजनक है, उतनी ही समाज की उस मानसिकता को भी उजागर करती है जो Dalit Discrimination को आज भी जीवित रखे हुए है।

सांसद अवधेश प्रसाद कौन हैं?

अवधेश प्रसाद उत्तर प्रदेश के अयोध्या से सांसद हैं और अनुसूचित जाति के पासी समुदाय से आते हैं। समाजवादी पार्टी से सांसद बनने वाले अवधेश प्रसाद एक वरिष्ठ नेता हैं जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा सामाजिक न्याय और दलितों के अधिकारों की आवाज उठाई है।

फिर भी, उनके साथ इस प्रकार का भेदभाव यह दर्शाता है कि भारत में Dalit Discrimination केवल आम जनमानस की समस्या नहीं, बल्कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों के साथ भी होता है।

क्या मंदिर सिर्फ उच्च जातियों के लिए है?

श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है — जिन्होंने शबरी जैसे निम्नवर्गीय महिला के झूठे बेर खाए, लेकिन आज उन्हीं राम के मंदिर में एक दलित को भीतर तक नहीं जाने दिया गया।

क्या यह हमारे समाज का दोहरा मापदंड नहीं है?

क्या यह दर्शाता नहीं कि Dalit Discrimination हमारे आस्था स्थलों तक फैला हुआ है?

राजनीति, धर्म और जातिवाद का खतरनाक त्रिकोण

इस मामले पर विपक्षी दलों ने भाजपा और RSS पर सीधा निशाना साधा है। कई नेताओं ने इसे धर्म के नाम पर ब्राह्मणवाद थोपने का प्रयास बताया। वहीं भाजपा समर्थकों ने सफाई देते हुए कहा कि यह “सुरक्षा कारणों” से हुआ था।

लेकिन सवाल यह उठता है — जब सांसद के लिए सुरक्षा इतनी बड़ी समस्या बन जाती है कि उसे मंदिर में प्रवेश से रोका जाए, तो आम दलित नागरिक का क्या होगा?

कानूनी स्थिति और सामाजिक उत्तरदायित्व

हालांकि उन्नाव पुलिस ने स्पष्ट किया कि घटना 2022 की है और आरोपी हेड कांस्टेबल के खिलाफ कार्यवाही की जा चुकी है, लेकिन Dalit Discrimination जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति यह बताती है कि केवल FIR दर्ज करना ही पर्याप्त नहीं है।

सभी मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों में जातिगत भेदभाव के विरुद्ध सख्त दिशा-निर्देश और निगरानी तंत्र की आवश्यकता है।

क्या सच में बदल रहा है भारत?

हम 21वीं सदी के भारत में हैं, जहां चंद्रयान चाँद पर पहुंच चुका है, लेकिन एक दलित सांसद भगवान के दर्शन तक नहीं कर सकता। यह घटना केवल अवधेश प्रसाद की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जिसे जाति के नाम पर नीचा दिखाया जाता है।

Dalit Discrimination एक सामाजिक अभिशाप है जिसे केवल कानून नहीं, बल्कि जन-जागरूकता और आत्मचिंतन से मिटाया जा सकता है।

अंत में एक सवाल:

क्या हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकते हैं जहां Dalit Discrimination का कोई नामोनिशान न हो?

अगर हाँ, तो शुरुआत आज और अभी से करनी होगी।

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