हाइलाइट्स:
- cow dung plaster तकनीक को अपनाकर क्लासरूम में प्राकृतिक ठंडक बनाए रखने की पहल
- कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. प्रत्युष वत्सला खुद कर रही हैं गोबर से पुताई
- पक्की दीवारों पर गोबर से लेप कर तैयार हो रहे हैं “eco-friendly” क्लासरूम
- सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो, हो रही है तारीफ और आलोचना
- पर्यावरण और परंपरा के मेल की अनोखी मिसाल पेश कर रहा है यह प्रयोग
रानी लक्ष्मीबाई कॉलेज में cow dung plaster का अनोखा प्रयोग
दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले रानी लक्ष्मीबाई कॉलेज ने शिक्षा जगत में एक अनोखी मिसाल पेश की है। कॉलेज में क्लासरूम की दीवारों पर cow dung plaster किया जा रहा है, और यह कार्य खुद कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. प्रत्युष वत्सला की निगरानी में हो रहा है। दिलचस्प बात यह है कि डॉ. वत्सला खुद दीवारों पर गोबर से लेप करते हुए नजर आईं। सोशल मीडिया पर इस पूरी प्रक्रिया का वीडियो वायरल हो चुका है।
क्यों अपनाई गई cow dung plaster तकनीक?
पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक जरूरतों का संगम
डॉ. वत्सला ने बताया कि इस पहल का उद्देश्य कक्षाओं को गर्मी में प्राकृतिक रूप से ठंडा बनाए रखना है। उन्होंने कहा, “हमारे यहां की पारंपरिक तकनीकें आज भी पर्यावरण और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद उपयोगी हैं। Cow dung plaster न सिर्फ गर्मी से राहत देता है, बल्कि यह दीवारों को संक्रमण से भी बचाता है।”
आधुनिक इमारतों में प्राकृतिक उपाय
कंक्रीट और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी दीवारें अक्सर गर्मियों में अत्यधिक गर्मी सोख लेती हैं। इसके विपरीत, cow dung plaster दीवारों की तापीय क्षमता को नियंत्रित करता है। गोबर में प्राकृतिक ठंडक और कीटाणुनाशक गुण होते हैं, जो कक्षाओं को ठंडा और स्वच्छ बनाए रखने में मददगार हैं।
सोशल मीडिया पर मिली मिली-जुली प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर जैसे ही कॉलेज की प्रिंसिपल का वीडियो वायरल हुआ, लोगों की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं। कुछ लोगों ने इसे “भारत की परंपरा और प्रकृति का सम्मान” बताया, तो कुछ ने इसे “विज्ञान और स्वच्छता के खिलाफ” कदम माना।
छात्रों और शिक्षकों की राय
छात्रों का कहना है कि शुरुआत में उन्हें आश्चर्य हुआ, लेकिन जब उन्होंने देखा कि cow dung plaster के बाद कक्षा अधिक ठंडी और सुकूनदायक लग रही है, तो उनकी सोच बदल गई। एक छात्रा ने कहा, “पहले अजीब लगा लेकिन अब लगता है कि इसमें वाकई फायदा है।”
पर्यावरण के लिए कितना उपयोगी है cow dung plaster?
प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग
गोबर सदियों से भारतीय ग्रामीण जीवन का हिस्सा रहा है। ईंधन, खाद और अब cow dung plaster जैसी तकनीकों में इसका उपयोग बढ़ रहा है। यह एक सस्ता, सुलभ और टिकाऊ संसाधन है जो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।
कार्बन फुटप्रिंट में कमी
प्लास्टिक पेंट्स और रासायनिक पुट्टियों के स्थान पर जब cow dung plaster किया जाता है, तो न केवल ऊर्जा की बचत होती है बल्कि प्रदूषण भी कम होता है। यह पहल कार्बन उत्सर्जन घटाने की दिशा में एक छोटा लेकिन प्रभावशाली कदम है।
क्या यह कदम पूरे विश्वविद्यालय में लागू हो सकता है?
नीति निर्धारण की दिशा में एक पहल
रानी लक्ष्मीबाई कॉलेज की यह पहल पूरे दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए एक मॉडल बन सकती है। अगर cow dung plaster से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं, तो अन्य कॉलेजों में भी यह तकनीक अपनाई जा सकती है।
स्वास्थ्य मानकों की जरूरत
हालांकि cow dung plaster के लाभ अनेक हैं, लेकिन इसे अपनाने से पहले कुछ महत्वपूर्ण स्वास्थ्य और स्वच्छता मानकों का पालन करना आवश्यक है। गोबर की शुद्धता, गंध नियंत्रण, और एलर्जी जैसे पहलुओं पर ध्यान देना होगा।
परंपरा और नवाचार का अद्भुत संगम
डॉ. प्रत्युष वत्सला द्वारा की गई यह पहल न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि भारतीय परंपरा और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के बीच एक पुल का कार्य करती है। Cow dung plaster का उपयोग एक उदाहरण है कि कैसे हम अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी आधुनिक जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में दिल्ली यूनिवर्सिटी के अन्य कॉलेज भी इस पहल से प्रेरित होते हैं या नहीं। फिलहाल, यह प्रयास निश्चित रूप से सोचने पर मजबूर करता है कि “प्रगति” का अर्थ केवल तकनीकी नवाचार नहीं, बल्कि परंपरा के पुनर्परिभाषण में भी छिपा हो सकता है।