Buddhist monks have been on a hunger strike for seven days in Bodh Gaya

बोधगया में बौद्ध भिक्षुओं का सात दिनों से जारी आमरण अनशन, कई बौद्ध भिक्षुओं की हालत गंभीर: मुख्यधारा मीडिया की चुप्पी क्यों?

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बोधगया, बिहार—बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल बोधगया में पिछले सात दिनों से बौद्ध भिक्षु आमरण अनशन पर बैठे हैं, लेकिन यह मुद्दा मुख्यधारा मीडिया की सुर्खियों में नहीं आ पाया है। इस आंदोलन के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जिनमें बौद्ध धार्मिक स्थलों की सुरक्षा, प्रशासनिक अनदेखी, अवैध अतिक्रमण और सरकार की निष्क्रियता शामिल हैं।

बोधगया: बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल

बोधगया न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। यही वह स्थान है जहां भगवान गौतम बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। यहां स्थित महाबोधि मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध है और हर साल लाखों श्रद्धालु व पर्यटक यहां आते हैं।

इसके बावजूद, बोधगया की ऐतिहासिक विरासत को लेकर प्रशासन और सरकार की बेरुखी चिंताजनक है। बौद्ध भिक्षु लगातार इस बात की मांग कर रहे हैं कि बोधगया के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, लेकिन उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है।

क्यों कर रहे हैं बौद्ध भिक्षु आमरण अनशन?

बोधगया में आमरण अनशन कर रहे बौद्ध भिक्षुओं की मुख्य मांगें निम्नलिखित हैं:

  1. बौद्ध धार्मिक स्थलों की सुरक्षा: भिक्षुओं का कहना है कि बोधगया में कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल प्रशासन की लापरवाही के कारण उपेक्षित हो गए हैं।
  2. अवैध अतिक्रमण रोकने की मांग: बोधगया के आसपास के इलाकों में अवैध कब्जे और व्यावसायिक निर्माण तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे इस पवित्र भूमि का स्वरूप बदलता जा रहा है।
  3. सरकार और प्रशासन की निष्क्रियता: भिक्षुओं का आरोप है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस महत्वपूर्ण स्थल की सुरक्षा और संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।
  4. धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा: वे यह भी चाहते हैं कि बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों को उनके धार्मिक अधिकार और स्वतंत्रता दी जाए, ताकि वे बिना किसी बाधा के अपने धर्म का पालन कर सकें।

मुख्यधारा मीडिया की चुप्पी पर सवाल

यह चौंकाने वाली बात है कि मुख्यधारा मीडिया इस आंदोलन को पर्याप्त कवरेज नहीं दे रही है। भारत में जब भी कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन या आंदोलन होता है, मीडिया उसे प्रमुखता से दिखाती है, लेकिन बोधगया में सात दिनों से जारी इस आमरण अनशन की खबरें टीवी चैनलों और राष्ट्रीय अखबारों में जगह नहीं बना पाई हैं।

इसका मुख्य कारण यह हो सकता है कि बौद्ध भिक्षु राजनीतिक दलों से जुड़े नहीं हैं और उनका यह आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण है। मुख्यधारा मीडिया आमतौर पर उन्हीं मुद्दों को तवज्जो देती है, जो राजनीतिक विवाद से जुड़े होते हैं या जिनमें हिंसा की संभावना होती है।

समर्थन में आगे आया सोशल मीडिया

हालांकि मुख्यधारा मीडिया इस आंदोलन को कवर नहीं कर रही है, लेकिन सोशल मीडिया पर इस आंदोलन को लोगों का समर्थन मिल रहा है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर कई एक्टिविस्ट, बौद्ध धर्मगुरु और स्थानीय नागरिक इस मुद्दे को उठा रहे हैं।

कुछ प्रमुख बौद्ध संगठनों ने भी इस आंदोलन के समर्थन में बयान जारी किए हैं और सरकार से तुरंत कार्रवाई की मांग की है। सोशल मीडिया पर #SaveBodhGaya और #BuddhistRights जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।

स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया

जब प्रशासन से इस मुद्दे पर सवाल किया गया, तो अधिकारियों का कहना था कि वे भिक्षुओं की मांगों पर विचार कर रहे हैं और जल्द ही समाधान निकालने की कोशिश करेंगे। लेकिन भिक्षुओं का आरोप है कि प्रशासन सिर्फ आश्वासन दे रहा है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा

बौद्ध धर्मगुरुओं की अपील

बोधगया में आमरण अनशन कर रहे बौद्ध भिक्षुओं ने भारत सरकार, बिहार सरकार और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संगठनों से अपील की है कि वे इस पवित्र स्थल की रक्षा के लिए आगे आएं और अवैध अतिक्रमण को रोका जाए

इसके अलावा, उन्होंने बौद्ध समुदाय से इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उठाने की अपील की है, ताकि दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों को इस संघर्ष के बारे में पता चले और वे इसका समर्थन करें।

क्या होगा आगे?

अगर प्रशासन जल्द ही इस मुद्दे को हल नहीं करता, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संगठनों ने भी चेतावनी दी है कि यदि बोधगया के धार्मिक स्थलों की उपेक्षा जारी रही, तो वे वैश्विक स्तर पर भारत सरकार के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं।

बोधगया में चल रहा बौद्ध भिक्षुओं का आमरण अनशन न केवल एक धार्मिक मुद्दा है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है

  • मुख्यधारा मीडिया की चुप्पी यह सवाल खड़ा करती है कि क्या धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की रक्षा उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी राजनीतिक घटनाएं?
  • स्थानीय प्रशासन को अवैध अतिक्रमण और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है
  • सोशल मीडिया के जरिए यह मुद्दा तेजी से फैल रहा है और सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है

अगर यह आंदोलन लंबा खिंचता है, तो यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा मुद्दा बन सकता है। बौद्ध भिक्षुओं की मांगें न केवल बोधगया बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। सरकार और प्रशासन को जल्द से जल्द इस मुद्दे का समाधान निकालना चाहिए, ताकि इस पवित्र स्थल की गरिमा बनी रहे।

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