हाइलाइट्स
- Anti-Corruption Law के नए प्रस्ताव से जुड़ा विधि आयोग का तर्क विवादों में
- सही काम के लिए रिश्वत लेने पर नहीं होगा दंड – प्रस्ताव ने खड़े किए कई सवाल
- मौजूदा कानून में ‘सेक्सुअल फेवर’ को भी रिश्वत की श्रेणी में रखा गया है
- भारत की जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर सकता है नया प्रस्ताव
- संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन अगेंस्ट करप्शन के मानकों से मेल नहीं खाता प्रस्तावित Anti-Corruption Law
विधि आयोग का नया प्रस्ताव: सही काम के लिए ली गई रिश्वत नहीं मानी जाएगी अपराध
भारत में भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा रहा है जो दशकों से शासन और समाज दोनों के लिए चुनौती बना हुआ है। अब जबकि केंद्र सरकार Anti-Corruption Law को लेकर सख्त रुख अपनाने का दावा करती रही है, विधि आयोग द्वारा सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी “सही और वैध” कार्य के लिए रिश्वत लेता है, तो उसे भ्रष्टाचार के अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।
यह प्रस्ताव जितना कानूनी रूप से जटिल है, उतना ही सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से विवादास्पद भी है।
क्या है Anti-Corruption Law का यह प्रस्ताव?
मौजूदा कानून की स्थिति
वर्तमान में, Prevention of Corruption Act, 1988 के तहत कोई भी भुगतान, चाहे वह नगद हो या किसी अन्य रूप में, यदि वह सरकारी काम को प्रभावित करने के इरादे से दिया गया हो, तो वह रिश्वत माना जाता है। इसमें वैध सेवा शुल्क के अलावा किसी भी तरह का फेवर रिश्वत की श्रेणी में आता है।
प्रस्तावित बदलाव
विधि आयोग ने जो प्रस्ताव सरकार को सौंपा है, उसमें यह कहा गया है कि:
- अगर सरकारी कर्मचारी ने कोई गलत या अनुचित काम करने के बदले में रिश्वत ली है, तभी वह दंडनीय होगा।
- अगर वह कर्मचारी किसी सही और वैध काम को समय पर और ठीक तरह से करने के लिए रिश्वत लेता है, तो उसे भ्रष्टाचार नहीं माना जाएगा।
यह प्रस्ताव सीधे तौर पर Anti-Corruption Law के मूल उद्देश्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
क्या है विधि आयोग की दलील?
विधि आयोग का कहना है कि भारत में कई बार आम जनता को अपने वैध काम कराने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। उदाहरण के लिए:
- राशन कार्ड बनवाना
- पासपोर्ट सत्यापन
- बिजली कनेक्शन
- ड्राइविंग लाइसेंस
- पेंशन प्रक्रिया
आयोग का तर्क है कि इस तरह के मामलों में रिश्वत लेने वाले अधिकारियों को अपराधी ठहराना, भारत की “ग्राउंड रियलिटी” को नजरअंदाज करना होगा। उनके अनुसार, नए Anti-Corruption Law में इस अंतर को स्पष्ट करना जरूरी है।
विवाद क्यों?
जनता की नजर में विश्वास का संकट
इस प्रस्ताव के सामने आते ही आम नागरिकों, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे भ्रष्टाचार को वैधता देने वाला कदम बताया है। अगर यह प्रस्ताव कानून का रूप लेता है, तो कई सवाल खड़े होंगे:
- क्या रिश्वत लेना अब सामान्य बात मानी जाएगी?
- क्या इससे भ्रष्टाचार को और बल नहीं मिलेगा?
- क्या इससे जनता का सरकारी तंत्र पर से विश्वास नहीं उठ जाएगा?
न्यायिक दृष्टिकोण
कानूनविदों का मानना है कि यह प्रस्ताव Anti-Corruption Law के मौलिक उद्देश्य को कमजोर कर सकता है। उनका कहना है कि रिश्वत, चाहे किसी भी काम के लिए हो, एक नैतिक अपराध है। जब यह सामान्य हो जाएगा, तो भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना असंभव हो जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय मानकों से तुलना
भारत ने United Nations Convention Against Corruption (UNCAC) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें भ्रष्टाचार की व्यापक परिभाषा दी गई है। UNCAC के अनुसार, कोई भी लाभ — चाहे वह नगद, वस्तु, सेवा या यौन फेवर हो — अगर काम को प्रभावित करने के उद्देश्य से दिया गया है, तो वह रिश्वत है।
ब्रिटेन के Bribery Act, 2010 की तरह वहां सरकारी और निजी कर्मचारियों में अंतर नहीं किया गया है। लेकिन भारत का प्रस्तावित Anti-Corruption Law केवल सरकारी अधिकारियों पर केंद्रित है।
क्या सेक्सुअल फेवर भी रिश्वत है?
मौजूदा Prevention of Corruption Act में आर्थिक लाभ के साथ-साथ “अन्य लाभों” की भी बात की गई है, जिससे यौन लाभ (सेक्सुअल फेवर) को भी रिश्वत के दायरे में लाया जा सकता है। लेकिन विधि आयोग ने इस विषय पर कोई स्पष्टता नहीं दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून की शब्दावली यदि व्यापक न हो, तो कई प्रकार के “अन्य लाभ” — जैसे कि यौन सुख — कानून के दायरे से बाहर रह सकते हैं।
आगे क्या?
अब यह सरकार पर निर्भर करेगा कि वह विधि आयोग की सिफारिशों को कितनी गंभीरता से लेती है। अगर यह प्रस्ताव Anti-Corruption Law का हिस्सा बनता है, तो भारत में भ्रष्टाचार की परिभाषा ही बदल जाएगी।
लेकिन साथ ही, इससे एक ऐसा संदेश भी जा सकता है कि सरकार भ्रष्टाचार को सामान्य और अनिवार्य बुराई के रूप में स्वीकार कर रही है — जो लोकतंत्र की आत्मा के लिए एक खतरा हो सकता है।
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए मजबूत और स्पष्ट कानूनों की आवश्यकता है। यदि Anti-Corruption Law को ढीला कर दिया गया, तो यह न केवल सरकारी संस्थाओं में पारदर्शिता को प्रभावित करेगा, बल्कि नागरिकों की आस्था भी डगमगा सकती है।
भारत जैसे विकासशील देश में, जहां पहले से ही प्रशासनिक प्रक्रियाएं जटिल और सुस्त हैं, इस तरह का प्रस्ताव भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला कदम बन सकता है।