हाइलाइट्स
- दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कॉलेज में Cow Dung Plaster का वीडियो वायरल, विवाद तेज़
- प्रिंसिपल प्रत्यूष वत्सला ने दीवारों पर गोबर का लेप लगाकर गर्मी से राहत का दावा किया
- छात्रों ने कॉलेज में AC की मांग की, मिला Cow Dung Plaster से ठंडक का सुझाव
- DUSU अध्यक्ष रौनक खत्री ने विरोध में प्रिंसिपल ऑफिस पर गोबर का लेप किया
- सोशल मीडिया पर दोनों पक्षों के कदमों को लेकर तीखी बहस, शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल
Cow Dung Plaster से क्लासरूम ठंडा करने का प्रयोग: विवाद की जड़ क्या है?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल प्रत्यूष वत्सला इन दिनों देशभर की सुर्खियों में हैं। वजह है उनका वायरल वीडियो जिसमें वह खुद कॉलेज की क्लासरूम दीवारों पर Cow Dung Plaster कर रही हैं। इस कदम को गर्मी से निपटने का पारंपरिक और प्राकृतिक उपाय बताया गया है, लेकिन यह प्रयोग कॉलेज के छात्रों और छात्रसंघ को रास नहीं आया।
प्रिंसिपल का तर्क है कि उन्होंने यह प्रयोग बढ़ती गर्मी को देखते हुए किया और इसके पीछे पर्यावरण-अनुकूल सोच थी। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक रिसर्च यह सिद्ध करते हैं कि गाय के गोबर से दीवारों पर लेप करने से कमरे ठंडे रहते हैं। लेकिन सवाल यह उठा कि क्या छात्रों की सहमति लिए बिना ऐसा प्रयोग शैक्षणिक संस्थानों में किया जा सकता है?
छात्राओं की मांग थी AC, मिला Cow Dung Plaster
लक्ष्मीबाई कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं ने कॉलेज प्रशासन से गर्मी के मौसम को देखते हुए कक्षा में एयर कंडीशनर (AC) की मांग की थी। लेकिन उन्हें जवाब मिला कि गोबर से दीवारें लीप दी जाएंगी, जिससे कमरे ठंडे रहेंगे। इसी के तहत Cow Dung Plaster का प्रयोग शुरू हुआ।
छात्राएं इस प्रयोग से आक्रोशित हो गईं। उन्होंने इसे न केवल अव्यवहारिक बताया, बल्कि अपमानजनक भी माना। “2025 में जब पूरी दुनिया स्मार्ट क्लासरूम की ओर बढ़ रही है, हमें गोबर से ठंडक सिखाई जा रही है,” एक छात्रा ने नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा।
DUSU अध्यक्ष रौनक खत्री का तीखा विरोध
दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष रौनक खत्री ने इस पूरे मामले में बड़ा कदम उठाया। उन्होंने प्रिंसिपल प्रत्यूष वत्सला के कार्यालय की दीवारों पर भी Cow Dung Plaster कर दिया, यह कहते हुए कि अगर छात्राओं के लिए गोबर काफी है, तो प्रिंसिपल के लिए क्यों नहीं?
रौनक ने सोशल मीडिया पर व्यंग्यात्मक पोस्ट करते हुए लिखा – “मैडम अब AC हटवाकर गोबर से सना प्राकृतिक ठंडक वाला ऑफिस बना लेंगी और छात्रों को भी यही सलाह देंगी।”
उनका कहना था कि किसी भी प्रकार का प्रयोग छात्रों की सहमति के बिना नहीं होना चाहिए। “अगर आप प्रयोग करना चाहती हैं, तो अपने घर पर कीजिए, कॉलेज में नहीं,” उन्होंने कॉलेज की एक फैकल्टी सदस्य से बहस करते हुए कहा।
वीडियो वायरल होते ही मचा बवाल
Cow Dung Plaster का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही कॉलेज प्रशासन पर सवालों की बौछार शुरू हो गई। वीडियो में प्रिंसिपल खुद दीवारों को गोबर से लीपते हुए नजर आ रही हैं और कह रही हैं कि इससे पर्यावरण को लाभ होगा।
इस वीडियो को कॉलेज के अंदर फैकल्टी मेंबर्स के लिए बनाया गया था, लेकिन किसी ने इसे लीक कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया, जिसके बाद पूरे देश में यह मामला चर्चा का विषय बन गया।
क्या Cow Dung Plaster से वाकई ठंडक मिलती है?
Cow Dung Plaster को लेकर विज्ञान में भी कई दृष्टिकोण हैं। ग्रामीण भारत में सदियों से गोबर से घरों की दीवारें और ज़मीन लीपने की परंपरा रही है। इसका उद्देश्य घर को ठंडा और कीटाणुरहित रखना रहा है।
कुछ अध्ययनों में यह भी बताया गया है कि Cow Dung Plaster से तापमान में मामूली गिरावट देखी जा सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या शहरी उच्च शिक्षा संस्थानों में इसे लागू करना व्यावहारिक और सम्मानजनक है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाम आधुनिक शिक्षा प्रणाली
Cow Dung Plaster की यह घटना आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक सोच के बीच टकराव को दर्शाती है। जहां एक ओर प्रशासन इसे टिकाऊ और पारंपरिक समाधान बता रहा है, वहीं दूसरी ओर छात्र इसे अव्यवहारिक और अपमानजनक मानते हैं।
क्या कॉलेजों में पारंपरिक समाधानों को आजमाना जरूरी है? या फिर तकनीक और सुविधाएं छात्रों का हक हैं? इस बहस के दोनों पक्षों में तर्क हैं, लेकिन छात्रों की भागीदारी और सहमति किसी भी प्रयोग की पूर्व शर्त होनी चाहिए।
शिक्षा व्यवस्था और नेतृत्व पर उठे सवाल
Cow Dung Plaster विवाद ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि जब नेतृत्व संवेदनशीलता खो देता है, तब छात्र संघर्ष करते हैं। DUSU अध्यक्ष का कदम एक प्रतीकात्मक विरोध था, लेकिन इसके पीछे गहरी सामाजिक नाराजगी छुपी हुई है।
छात्र अब पूछ रहे हैं कि क्या उनकी जरूरतों को हास्य का विषय बना दिया गया है? क्या शैक्षणिक संस्थान छात्रों की मूलभूत आवश्यकताओं की उपेक्षा कर सकते हैं?
Cow Dung Plaster से आगे की सोच जरूरी
Cow Dung Plaster एक सांस्कृतिक और पारंपरिक उपाय हो सकता है, लेकिन इसे जबरन छात्रों पर थोपना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता। लक्ष्मीबाई कॉलेज की घटना यह दिखाती है कि संवादहीनता और सहमति की कमी किसी भी प्रयोग को विवाद में बदल सकती है।
शिक्षा केवल ज्ञान देने का माध्यम नहीं है, बल्कि छात्रों की गरिमा और जरूरतों को समझने का भी नाम है। Cow Dung Plaster का यह प्रयोग चाहे जितना वैज्ञानिक हो, जब तक उसमें छात्रों की भागीदारी और सहमति नहीं होगी, वह न तो स्वीकार्य होगा और न ही सम्मानजनक।