हाइलाइट्स:
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Congress President को लेकर विपक्ष पर तीखा हमला बोला
- मुस्लिम समर्थन की राजनीति पर कांग्रेस की दोहरी नीति पर उठाए सवाल
- बीजेपी की चुनावी रैली में पीएम मोदी ने विपक्ष को घेरा
- कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र और नेतृत्व चयन की पारदर्शिता पर उठे सवाल
- राजनीतिक विश्लेषकों ने बयान को मुसलमानों को लुभाने और ध्रुवीकरण की रणनीति बताया
Congress President पर बयान से गरमाई सियासत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपने बेबाक अंदाज़ में कांग्रेस पार्टी पर हमला बोला है। एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने सवाल उठाया कि “अगर कांग्रेस को मुसलमानों से इतनी हमदर्दी है, तो उसने आज तक किसी मुसलमान को Congress President क्यों नहीं बनाया?” यह बयान आते ही सियासी हलकों में हलचल तेज़ हो गई है।
मुस्लिम समर्थन बनाम नेतृत्व का प्रतिनिधित्व
कांग्रेस पार्टी लंबे समय से मुस्लिम समुदाय को अपना परंपरागत वोट बैंक मानती रही है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान ने इस नीति को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि केवल वोट के समय मुसलमानों को याद करना और फिर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से उन्हें दूर रखना दोहरी मानसिकता को दर्शाता है।
क्या कांग्रेस पार्टी नेतृत्व में अल्पसंख्यकों को स्थान देने से कतराती है?
इस सवाल का उत्तर तलाशना बेहद अहम है। कांग्रेस पार्टी में मुस्लिम नेताओं की मौजूदगी तो है, लेकिन क्या उन्हें शीर्ष नेतृत्व यानी Congress President पद तक पहुँचने का अवसर मिला है? आज़ादी के बाद से अब तक कांग्रेस के कई अध्यक्ष बने हैं, लेकिन उनमें से केवल एक – मौलाना अबुल कलाम आज़ाद – ही मुस्लिम थे, और वह भी शुरुआती वर्षों में।
कांग्रेस की नेतृत्व नीति और आंतरिक लोकतंत्र
कांग्रेस पार्टी हमेशा से लोकतांत्रिक मूल्यों की पक्षधर रही है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से पार्टी पर ‘एक परिवार’ तक सीमित होने के आरोप लगते रहे हैं। Congress President का चयन भी कई बार औपचारिकता बनकर रह गया है। गांधी परिवार का वर्चस्व इस बात की पुष्टि करता है।
सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अब मल्लिकार्जुन खड़गे
सोनिया गांधी के लंबे कार्यकाल के बाद राहुल गांधी पार्टी के अनौपचारिक नेता बने। हालांकि, मल्लिकार्जुन खड़गे को Congress President बनाया गया, जो एक दलित नेता हैं, लेकिन यह फैसला भी सवालों के घेरे में रहा – क्या यह चुनाव वाकई स्वतंत्र था? और क्या इसमें मुस्लिम समुदाय के किसी प्रभावशाली नेता को भी मौका दिया गया?
प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान केवल कांग्रेस की आलोचना भर नहीं है, बल्कि यह एक सोची-समझी चुनावी रणनीति का हिस्सा है। एक ओर वे कांग्रेस के मुस्लिम समर्थन की पोल खोलना चाहते हैं, तो दूसरी ओर वे मुसलमानों को यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस उन्हें केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती है।
ध्रुवीकरण की राजनीति?
हालांकि विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी के बयान को ध्रुवीकरण की कोशिश बताया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, “मोदी जी अब भी 2024 की हार को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं।”
मुस्लिम नेताओं की भूमिका और भविष्य
आज कांग्रेस में शशि थरूर, गुलाम नबी आज़ाद (अब पार्टी छोड़ चुके), सलमान खुर्शीद, नसीम अहमद जैसे कई वरिष्ठ मुस्लिम नेता रहे हैं या हैं, लेकिन इन्हें कभी Congress President पद के लिए गंभीरता से नहीं लिया गया। यह सवाल अब और प्रासंगिक हो गया है कि क्या कांग्रेस पार्टी अपने मुस्लिम नेताओं को सिर्फ मंच पर दिखाने तक सीमित रखना चाहती है?
क्या कांग्रेस को अपने ढांचे में बदलाव की ज़रूरत है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कांग्रेस को अपनी साख बचानी है तो उसे अपने नेतृत्व चयन की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और प्रतिनिधित्वशील बनाना होगा। Congress President पद को केवल प्रतीकात्मक न बनाते हुए इसे एक लोकतांत्रिक और सर्वसमावेशी प्रक्रिया से निर्धारित करना ज़रूरी है।
जनमानस की प्रतिक्रिया
पीएम मोदी के बयान पर जनता की भी मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई है। कुछ लोगों ने इसे सही सवाल बताया, जबकि कुछ ने इसे चुनावी स्टंट कहा। लेकिन एक बात तय है कि यह मुद्दा चुनावी विमर्श में केंद्र में आ चुका है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान केवल एक राजनीतिक तंज नहीं बल्कि भारतीय राजनीति में नेतृत्व, प्रतिनिधित्व और वोट बैंक की राजनीति पर गहरी चोट है। Congress President पद को लेकर उठाया गया यह सवाल कांग्रेस पार्टी के लिए आत्ममंथन का विषय बन सकता है। क्या कांग्रेस वाकई मुसलमानों की हितैषी है, या केवल वोटों के लिए हमदर्दी जताती है – यह बहस अब और तेज़ हो चुकी है।