कश्मीर का इतिहास वैदिक काल से ही समृद्ध और जटिल रहा है। प्रारंभिक समय में यहां मुख्यतः हिंदू धर्म का प्रभाव था। नीलमत पुराण और राजतरंगिणी जैसे ग्रंथ कश्मीर के हिंदू शासकों और धार्मिक परंपराओं का उल्लेख करते हैं। शिव पूजा, विशेषकर शैव दर्शन, कश्मीर की सांस्कृतिक पहचान का मुख्य हिस्सा थी। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व, अशोक के शासनकाल में, बौद्ध धर्म ने भी यहां अपनी गहरी छाप छोड़ी। कश्मीर बौद्ध विद्वानों और विश्वविद्यालयों का केंद्र बन गया और यहां से बौद्ध धर्म एशिया के अन्य भागों में फैला।
इस्लाम का आगमन और समाज में परिवर्तन
13वीं शताब्दी के बाद, इस्लाम ने सूफी संतों और सैय्यदों के माध्यम से कश्मीर में प्रवेश किया। मीर सैय्यद अली हमदानी जैसे सूफी संतों ने यहां इस्लाम के प्रचार में अहम भूमिका निभाई। धीरे-धीरे, सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों से बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया।
कश्मीरी मुसलमानों और "पंडित" सरनेम का संबंध
इस्लाम अपनाने के बाद भी, कुछ ब्राह्मण परिवारों ने "पंडित" उपनाम को बनाए रखा। मोहम्मद देन फ़ौक़ ने अपनी पुस्तक "कश्मीर क़ौम का इतिहास" में उल्लेख किया है कि ब्राह्मण परिवार, जिनका पारंपरिक पेशा पढ़ाई-लिखाई था, "पंडित" कहलाते थे। इस्लाम अपनाने के बावजूद, इस वर्ग ने अपने सरनेम को सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के रूप में बनाए रखा।
कश्मीरी समाज में जातीय परिवर्तन
ऐतिहासिक घटनाओं, विशेष रूप से 14वीं शताब्दी में सुल्तान सिकंदर बुतसिकान के शासनकाल के दौरान, कई कश्मीरी हिंदुओं ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया। जो परिवार इस्लाम धर्म अपना चुके थे, वे अक्सर अपने नाम के साथ "पंडित", "भट", "लोन" और "गनी" जैसे उपनाम जोड़ते रहे।
कश्मीरी पंडितों के विभिन्न वर्ग
कश्मीरी पंडितों के इतिहास में उनके समाज में कई उपविभाग रहे हैं:
- बनवासी कश्मीरी पंडित: जो दमन के कारण अन्य क्षेत्रों में चले गए।
- मलमासी पंडित: जो अपने मूल स्थान पर डटे रहे।
- बुहिर कश्मीरी पंडित: व्यापार से जुड़े पंडित।
- मुस्लिम कश्मीरी पंडित: वे लोग जिन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार किया लेकिन अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखी।
सांस्कृतिक एकता और पहचान
कश्मीर की सांस्कृतिक विविधता उसकी पहचान रही है। यहां की विशिष्ट सांस्कृतिक धारा में हिंदू, बौद्ध और इस्लामी परंपराएं आपस में घुल-मिल गईं। भले ही धर्म के आधार पर समाज में बदलाव हुआ हो, लेकिन कश्मीर की सांस्कृतिक जड़ें आज भी विविधता और सहिष्णुता में गहराई से निहित हैं।
यह इतिहास कश्मीर के समाज में धर्म, संस्कृति और परंपरा के अद्वितीय संगम को दर्शाता है।