भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस को गद्दार दिवस ट्विटर पर ट्रेंड कराना: गलत या सही?

कोरेगांव, महाराष्ट्र: भीमा कोरेगांव की शौर्य दिवस को गद्दार दिवस के रूप में ट्विटर पर ट्रेंड कराने की कोशिश ने सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छेड़ दी है। यह दिवस, जो 1 जनवरी को मनाया जाता है, उस ऐतिहासिक लड़ाई की याद दिलाता है जिसमें दलित सैनिकों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ वीरता का परिचय दिया था। हाल ही में, इस महत्वपूर्ण दिन को लेकर ट्विटर पर गद्दार दिवस के रूप में प्रचारित करने की गतिविधियों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

इतिहास की दृष्टि से शौर्य दिवस

भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1818 में हुई थी, जिसमें दलितों ने मिलकर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया था। यह लड़ाई महाराष्ट्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानी जाती है, जिसने बाद में सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों को प्रेरित किया। शौर्य दिवस का उद्देश्य इस वीरता को सम्मानित करना और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करना है।

गद्दार दिवस की धारणा

ट्विटर पर कुछ उपयोगकर्ताओं ने भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस को "गद्दार दिवस" के रूप में पुनर्परिभाषित करने का प्रयास किया है। यह प्रयास विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक एजेंडों के तहत हो सकता है, जो ऐतिहासिक सच्चाईयों को तोड़कर अपने हित में परिवर्तित करने की कोशिश कर रहे हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इतिहास को ऐसे रूप में प्रस्तुत करना न केवल अनुचित है बल्कि यह समाज में विभाजन को भी बढ़ावा देता है।

समाज और जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया विभाजित है। कई लोग इसे इतिहास की पुनर्लेखन की कोशिश मानते हैं और शौर्य दिवस के महत्व को बरकरार रखने का पक्ष लेते हैं। वे तर्क देते हैं कि इस दिन को गद्दार दिवस के रूप में प्रस्तुत करना न केवल असत्य है बल्कि यह उन वीरों की बलिदान को भी अपमानित करता है जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे।

वहीं, कुछ लोग इस ट्रेंड के पक्ष में भी बोलते हैं, यह दावा करते हुए कि इतिहास में हर घटना के कई पहलू होते हैं और उन्हें विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जाना चाहिए। हालांकि, यह दृष्टिकोण व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया जा रहा है, क्योंकि यह शौर्य दिवस के वास्तविक अर्थ को कम करता है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया

राजनीतिक नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की है। कई महाराष्ट्र के नेता इस प्रयास की कड़ी निंदा कर रहे हैं और इसे समाज में फूट डालने वाला मान रहे हैं। वहीं, कुछ केंद्र सरकार के नेताओं ने भी इसे इतिहास की धृष्टता का मामला बताया है और इसे सही ठहराने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की मांग की है।

इतिहासकारों की नजर

इतिहासकारों का कहना है कि भीमा कोरेगांव की लड़ाई एक ऐतिहासिक घटना है जिसे सही संदर्भ में समझना चाहिए। वे इस प्रकार की गलतफहमी को रोकने के लिए शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की सलाह दे रहे हैं। कई विशेषज्ञों ने कहा है कि सोशल मीडिया पर इतिहास को सही ढंग से प्रस्तुत करना अत्यंत आवश्यक है ताकि भविष्य की पीढ़ियां अपने अतीत से सीख सकें।

भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस को गद्दार दिवस के रूप में ट्रेंड करना न केवल गलत है बल्कि यह समाज में सांप्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा देता है। इतिहास को उसकी वास्तविकता में समझना और उसका सम्मान करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही ऐसी गलत धारणाओं को रोकने के लिए सरकार, समाज और शिक्षा संस्थाओं को मिलकर प्रयास करना चाहिए। शौर्य दिवस के वास्तविक अर्थ को बनाए रखना और उसे सही तरीके से मनाना ही समाज की एकता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है।


Rangin Duniya

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