बरेली, उत्तर प्रदेश: बरेली में एक दुखद घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया है। डेढ़ महीने के एक नवजात बच्चे की मौत उस समय हो गई जब उसके माता-पिता ने परंपरा के अनुसार उसका खतना करवाने का फैसला किया। यह हादसा तब हुआ जब स्थानीय नाई द्वारा खतना के दौरान गलत नस कट गई, जिससे नवजात की जान चली गई।
कैसे हुई यह घटना?
मामला तब सामने आया जब मुस्लिम दंपति अपने बेटे का खतना करवाने के लिए एक स्थानीय नाई के पास गए। प्रक्रिया के दौरान नाई ने लापरवाही बरती, जिससे बच्चे को गंभीर रक्तस्राव हुआ। नवजात को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उसे बचा नहीं सके।
परिवार ने दर्ज कराई शिकायत
दुखी परिवार ने इस हादसे के बाद स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने नाई के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन आरोपी नाई घटना के बाद से फरार है। पुलिस उसकी तलाश में जुटी है और जांच जारी है।
परंपरा पर उठे सवाल
इस घटना ने खतने जैसी प्राचीन परंपराओं पर फिर से बहस छेड़ दी है। कई सामाजिक और धार्मिक विचारक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ऐसी परंपराओं को आधुनिक शिक्षा और चिकित्सा विज्ञान की रोशनी में परखा जाना चाहिए।
कबीर साहेब के एक दोहे का उल्लेख करते हुए, धार्मिक विद्वानों ने कहा,
"जो तू तुर्क (मुसलमान) तुर्कनी जाया, तो अंदर से (गर्भ से) खतना क्यों नहीं लाया।"
इसका अर्थ यह है कि अगर प्रकृति ने इंसान को एक विशेष रूप में बनाया है, तो उसमें बदलाव करने की आवश्यकता क्यों है।
समाज में जागरूकता की आवश्यकता
ऐसी घटनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि हमें अपनी परंपराओं और धार्मिक रीति-रिवाजों को पुनः परखने की जरूरत है। जो रीति-रिवाज किसी की जान के लिए खतरा बनें, उन पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
इस दुखद घटना ने समाज में एक बड़ा सवाल खड़ा किया है:
"क्या हमें अपने बच्चों की जान को परंपराओं के नाम पर जोखिम में डालना चाहिए?"
बरेली की यह घटना समाज को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या परंपराओं और धार्मिक रीतियों का पालन विवेक और आधुनिक दृष्टिकोण से किया जा सकता है। इस त्रासदी से सबक लेकर जागरूकता फैलाना और इन परंपराओं के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है।