जातिवाद का कहर: दलित ने चढ़ाया प्रसाद, जिस जिस ने खाया सरपंच संतोष तिवारी ने उसका किया समाज से बहिष्कार

 


छतरपुर, मध्य प्रदेश: जातिवाद और छुआछूत की कुप्रथाओं ने एक बार फिर इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। छतरपुर जिले के सई थाना क्षेत्र के ग्राम अंतरा में एक दलित व्यक्ति द्वारा मंदिर में प्रसाद चढ़ाने और बांटने के बाद गांव के सरपंच ने तुगलकी फरमान जारी करते हुए प्रसाद चढ़ाने वाले और उसे खाने वाले लोगों को समाज से बहिष्कृत कर दिया।

घटना का विवरण

20 अगस्त 2004 को जगत अहिरवार नामक दलित व्यक्ति ने हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर उसे श्रद्धालुओं में बांटा। यह घटना गांव के सरपंच संतोष तिवारी को नागवार गुजरी। सरपंच ने इस घटना को लेकर करीब दर्जनभर लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। बहिष्कृत लोगों को गांव में सार्वजनिक स्थानों और सामुदायिक कार्यों से दूर रखा गया।

प्रभावित लोगों की शिकायत

सामाजिक बहिष्कार के कारण मानसिक रूप से प्रताड़ित जगत अहिरवार और अन्य पीड़ित मंगलवार को जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाया कि बहिष्कार के कारण उन्हें गांववालों ने बातचीत और दैनिक आवश्यकताओं तक से वंचित कर दिया है। जगत अहिरवार ने कहा कि अगर पुलिस प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की तो वे आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर होंगे।

सरपंच की सफाई

जब सरपंच संतोष तिवारी से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह शिकायत एक व्यक्तिगत दुश्मनी का परिणाम है। सरपंच ने दावा किया कि उनका किसी को बहिष्कृत करने का कोई इरादा नहीं था। हालांकि, ग्रामीणों और पीड़ितों की शिकायत सरपंच के बयान से मेल नहीं खाती।

प्रशासन का रुख

पुलिस अधीक्षक ने घटना की गंभीरता को देखते हुए मामले की जांच का आश्वासन दिया है। उनका कहना है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और गांव में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे।

जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत

यह घटना मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में जातिवाद और छुआछूत की कुप्रथाओं की गहरी जड़ों को उजागर करती है। जबकि संविधान हर नागरिक को समानता और सम्मान का अधिकार देता है, ऐसी घटनाएं हमारे समाज को पीछे धकेलती हैं।

यह सवाल उठता है कि क्या आधुनिक समाज में जातिवाद के नाम पर इस तरह का सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव स्वीकार्य है? इस घटना ने न केवल जातिवाद की भयावहता को दिखाया, बल्कि यह भी साबित किया कि अभी भी सामाजिक सुधार की कितनी आवश्यकता है।

"क्या हम इन कुप्रथाओं को जड़ से खत्म कर सकते हैं, या समाज इसी तरह जातिगत भेदभाव का शिकार रहेगा?"

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