साइंस जर्नी: क्या प्रयाग में पंडों ने बुद्धिज़्म के इतिहास से छेड़छाड़ की? जाने चौंकाने वाला सच

 


अलेक्जेंडर कार्निंघम ने जब इलाहाबाद (जिसे शाहजहाँ ने 'प्रयाग' नाम दिया था) का इतिहास खोजना शुरू किया, तो उन्हें एक दिलचस्प और चौंकाने वाली जानकारी मिली। यह बात सामने आई कि संगम स्थल पर तीर्थयात्रियों को पंडे एक झूठी कहानी सुनाते थे, जिसमें संगम किला, जिसे अकबर ने बनवाया था, का नाम प्रयाग बताया गया था। यह कथा पंडों ने इस शर्त पर गढ़ी थी कि संगम किले के निर्माण के लिए ब्राह्मण को अपनी बलि देनी पड़ी थी, और इसे 17वीं सदी की घटना बताया जाता था।

कार्निंघम के अनुसार, यह पूरी कहानी निरर्थक और झूठी थी। वह बताते हैं कि यह कथा इलाहाबाद के बारे में प्रचारित क्यों की जा रही थी, जबकि 629 ईस्वी में चीनी यात्री ह्यूएनसंग ने पहले ही संगम स्थल के बारे में 'प्रयाग' शब्द का प्रयोग किया था। ह्यूएनसंग ने विस्तार से बताया था कि हर साल राजा अपने पुरखों की तरह संगम पर आकर अपनी संचित संपत्ति भिक्षुओं, विद्वानों और वंचितों में बांटते थे, और इस दान की शुरुआत बुद्ध की मूर्ति स्थापित कर की जाती थी।

इससे यह सवाल उठता है कि क्या पंडों ने बुद्ध धम्म की संगम महादान भूमि को कब्जा कर ब्राह्मण से जोड़ने के लिए इस झूठी कथा का निर्माण किया था और क्या यही कारण है कि वे तीर्थयात्रियों को लगातार इस तरह की झूठी जानकारी दे रहे थे? कार्निंघम ने यह भी प्रश्न उठाया कि जब प्रयाग नाम पहले से मौजूद था, तो पंडों ने इसे झूठी कहानी में क्यों बदला और क्या यही उनकी आदत बन गई है?

इसके अतिरिक्त, यह सवाल भी उठता है कि क्या पंडों ने पूरे भारत में बुद्धिज़्म के तीर्थ स्थलों, महाविहारों और स्तूपों पर कब्जा कर के ऐसी ही काल्पनिक कथाओं का निर्माण किया था और लोगों को लगातार ब्रेनवॉश किया? यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि यह न केवल इतिहास को विकृत करता है, बल्कि संस्कृति और धार्मिक धरोहरों के साथ भी खिलवाड़ करता है।

सवाल यह भी है कि पंडों को सही इतिहास से इतनी नफ़रत क्यों है? क्या उन्हें यह डर है कि सत्य उजागर होने से उनकी सत्ता और प्रभाव को खतरा हो सकता है?

इन सवालों के जवाब खोजने के लिए और भारतीय इतिहास की सच्चाई को उजागर करने के लिए हमें और अधिक गहराई से शोध करना होगा। क्या इतिहास को सही तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा, या फिर फिर से इसे एक नई कहानी में बदल दिया जाएगा? यह आने वाले समय में देखने लायक होगा।

संदर्भ: ह्यूएनसंग की यात्रा का विवरण, कार्निंघम के ऐतिहासिक अध्ययन

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