2 जनवरी 2025: भारत के बिहार राज्य में स्थित 2300 साल पुराने केसरिया स्तूप को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। साइंस जर्नी के एक पोस्ट के अनुसार, यह एशिया का सबसे बड़ा स्तूपों में से एक है, जो लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहा है। इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए किए गए प्रयासों के बावजूद, अब मंदिर निर्माण और सुरक्षा के मुद्दों को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है।
केसरिया स्तूप परिसर में एक मंदिर का निर्माण जारी है, और इस दौरान पूजा, यज्ञ, और हवन भी चल रहे हैं। हालांकि, परिसर की बाउंड्री कई जगहों पर टूटी हुई है, और पहले की तरह बुद्ध की गर्दन कटी सैकड़ों मूर्तियां अब दिखाई नहीं दे रही हैं। इसके बजाय, हजारों की संख्या में लोग स्तूप के ऊपर चढ़े हुए नजर आ रहे हैं, जो कम से कम 2 जनवरी 2025 की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार सत्यापित किया गया है।
2300 साल पुराने एशिया के सबसे बड़े स्तूपों में से एक केसरिया स्तूप जो लगातार उपेक्षा का शिकार रही है #ProtectKesariastupa
— Science Journey (@ScienceJourney2) January 3, 2025
परिसर में मंदिर खोल पूजा यज्ञ हवन चल रहे है, बाउंड्री कई जगहों टूटी हुई है । कुछ वर्ष पहले तक बुद्ध के गर्दन कटी सैकड़ो मूर्ति खंडित रूप में थी जो अब नहीं… pic.twitter.com/DpwPVEQnMI
सुरक्षा और निर्माण को लेकर सवाल उठाए गए हैं। एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के बोर्ड पर लिखा है कि परिसर में 400 मीटर के भीतर और उसके बाद के 200 मीटर में कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता। लेकिन सवाल ये है कि मंदिर निर्माण के लिए अनुमति केवल 10 मीटर के भीतर कैसे दी गई है?
इसी संदर्भ में, यह भी कहा जा रहा है कि स्तूप के ईंटों का चुराया जाना और उनकी मिसिंग स्थिति ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इसके अलावा, यह सवाल भी उठ रहा है कि मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल किए गए ईंटों की जांच की गई है या नहीं। स्तूप के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर ईंटों को उखाड़ने के संकेत मिले हैं, जो ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान पहुंचाने का संकेत हो सकता है।
सबसे गंभीर आरोप यह है कि केसरिया स्तूप पर लोग चढ़े हुए हैं, जबकि इसके ऊपर चढ़ने पर एएसआई द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है। यह कदम न केवल ऐतिहासिक धरोहर के सम्मान को चुनौती देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रशासन और सरकारी एजेंसियों की इस धरोहर के प्रति संवेदनशीलता में भारी कमी है।
क्या यह हमारे देश के बुद्ध और उनके ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति सरकार और एएसआई की जिम्मेदारी को दर्शाता है? क्या भारतीय संस्कृति और धरोहर की रक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं?
यह सवाल अब उठ खड़ा हो गया है, और इसके लिए स्पष्ट कार्रवाई की आवश्यकता है।