पाली जिले के सिराणा गांव के अशोक मेघवाल के संघर्ष की कहानी एक पूरे सिस्टम की विफलता की गूंज है। यह घटना न्याय पाने के लिए एक आम व्यक्ति की आवाज़, उसकी पीड़ा और उसकी अदम्य जिजीविषा का प्रतीक है। अशोक ने अपनी जमीन पर कब्जे और अपने परिवार पर हुए अत्याचारों के खिलाफ जब न्याय की उम्मीद खो दी, तो उसने अपने दर्द को प्रशासन और जनता तक पहुंचाने के लिए एक अप्रत्याशित कदम उठाया—वह पानी की टंकी पर चढ़ गया।
घटना की शुरुआत
अशोक मेघवाल का परिवार सिराणा गांव में शांति से जीवन व्यतीत कर रहा था, जब उनकी जमीन पर कब्जा करने का प्रयास किया गया। विरोध करने पर, गांव के ठाकुर हुकुम सिंह और उनके साथियों ने न केवल अशोक को पीटा, बल्कि उसकी गर्भवती बहन के पैर तोड़ दिए और उसकी मां के सिर पर गंभीर चोटें पहुंचाईं। इस हिंसक हमले में पूरा परिवार बुरी तरह घायल हुआ।
न्याय के लिए संघर्ष और पुलिस की उदासीनता
अशोक ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उसकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया। एफआईआर में आरोपियों के नाम तक दर्ज नहीं किए गए। घटना का 30 मिनट का वीडियो, जो परिवार पर हुए अत्याचारों का स्पष्ट प्रमाण था, पुलिस ने रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया। इसके बजाय, पुलिस ने मामले की जांच में लापरवाही बरती, जिससे अशोक और उसका परिवार गहरे मानसिक तनाव में आ गया।
15 जनवरी 2025 को, जब न्याय पाने की सारी उम्मीदें टूट गईं, तो अशोक ने मजबूर होकर पानी की टंकी पर चढ़कर अपनी आवाज उठाने का साहसिक कदम उठाया। यह कदम प्रशासन और जनता का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा। घटना के बाद आईजी जयनारायण शेर ने मामले की जांच का जिम्मा एएसपी हिमांशु जांगिड़ और एएसपी पाली प्रवीण लोनावत को सौंपा।
मै सिर्फ अपना दुख बता सकता हू,
— Ashok Meghwal (@AshokMeghwal_) January 19, 2025
बाकी मैं न्याय हेतु लड़ भी रहा हू और हर वर्ग के गरीब,पीड़ितों के लिए अपनी ✍️ से लिखता हू। आपने आज अशोक मेघवाल की आंखों में आंसू है।
मेरी 7 महीने की गर्भवती बहिन और मां को मारा पीटा गया था।
अभी तक तो टूटा नहीं हू। आगे का पता नहीं।
जय भीम 🙏😌 pic.twitter.com/0sBXrzoce0
प्रशासन की नाकामी और समाज के सवाल
यह मामला केवल एक परिवार का नहीं, बल्कि एक व्यवस्था की खामियों का प्रतीक बन गया है। एफआईआर में आरोपियों के नाम न होना, तीन साल से लंबित फॉरेंसिक जांच, और पुलिस की निष्क्रियता ने न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अशोक ने राजस्थान सरकार और पुलिस प्रशासन से SC/ST एक्ट के तहत लंबित जांचों को समय पर पूरा करने और पीड़ितों को न्याय दिलाने की अपील की। उन्होंने कहा, "जब न्यायालय भी FSL रिपोर्ट के बिना आरोपियों को बरी कर देता है, तो हमें न्याय की उम्मीद किससे करनी चाहिए?"
अशोक मेघवाल की यह कहानी केवल उसकी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं है, बल्कि न्याय की उम्मीद में संघर्षरत उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, जो सिस्टम की विफलताओं से जूझ रहे हैं। यह घटना प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था के सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है। अब देखना यह है कि क्या अशोक और उसका परिवार न्याय पा सकेगा और क्या यह घटना सिस्टम में बदलाव की प्रेरणा बनेगी।