नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर चर्चित लेखक और विचारक दिलीप मंडल ने हाल ही में एक पोस्ट में फातिमा शेख की ऐतिहासिक उपस्थिति पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लिखा कि फातिमा शेख, जिन्हें भारतीय शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में एक अग्रणी व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, का नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर के 17 खंडों वाले साहित्य में कहीं भी उल्लेखित नहीं है।
मंडल के अनुसार, फातिमा शेख के योगदान को लेकर जो कथा बनाई गई है, वह इतिहास में ठोस प्रमाणों पर आधारित नहीं है। उन्होंने दावा किया कि अगर फातिमा शेख का अस्तित्व वास्तव में था और उनका योगदान महत्त्वपूर्ण था, तो बाबा साहब के लेखन और भाषणों में उनका नाम ज़रूर आता।
डॉ. अंबेडकर ने महात्मा फुले को अपना गुरु मानते हुए अपनी पुस्तक "शूद्र कौन थे" को फुले को समर्पित किया है। मंडल ने सवाल उठाया कि क्या पुणे, मुंबई और सातारा जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रहे बाबा साहब को "फातिमा शेख" जैसी महत्वपूर्ण शख्सियत की जानकारी नहीं होती?
फातिमा शेख को महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के सहयोगी और भारत की पहली महिला शिक्षक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने जाति और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में फुले दंपति का साथ दिया था। हालांकि, मंडल का कहना है कि फातिमा शेख का कोई स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
लापता लेडी!
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) January 9, 2025
फ़ातिमा शेख की जो कथा बनाई गई उसके हिसाब से उनको 1900 में मरना बताया गया है। यानी बाबा साहब के स्कूल में एडमिशन के भी बाद।
अगर तथाकथित फ़ातिमा शेख का काम थोड़ी भी अहमियत रखता या वे सचमुच होतीं तो क्या बाबा साहब के 17 खंडों के विशाल रचना संसार में उनका नाम एक बार भी… pic.twitter.com/2QLnUldHCr
उन्होंने यह भी लिखा कि फातिमा शेख के कथित निधन का समय 1900 बताया गया है, जो बाबा साहब के स्कूल में दाखिले के बाद का है। इसके बावजूद, डॉ. अंबेडकर के विशाल साहित्य में उनका नाम नदारद है।
मंडल के इस बयान पर इतिहासकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की राय बंटी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि मंडल ने ऐतिहासिक साक्ष्यों की कमी की ओर सही ध्यान आकर्षित किया है। वहीं, अन्य लोग इसे एक ऐतिहासिक चरित्र के महत्व को नकारने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं।
एक इतिहासकार ने कहा, "फातिमा शेख का नाम डॉ. अंबेडकर के साहित्य में नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनका अस्तित्व ही नहीं था। हो सकता है कि उनके योगदान को पर्याप्त रूप से दर्ज नहीं किया गया हो।"
मंडल की पोस्ट पर सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के बीच बहस छिड़ गई है। कुछ लोग उनके सवालों को वैध मानते हुए गहराई से जांच की मांग कर रहे हैं, जबकि अन्य उनकी टिप्पणियों को एक ऐतिहासिक महिला के योगदान को छोटा करने की कोशिश बता रहे हैं।
फातिमा शेख के अस्तित्व और उनके योगदान को लेकर यह चर्चा भारतीय इतिहास के गुमनाम नायकों और नायिकाओं के प्रति हमारी सामूहिक दृष्टि को फिर से परिभाषित करने का मौका देती है। इतिहास की खोज और साक्ष्यों की सत्यता की परख इस बहस का अगला कदम हो सकती है।