नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने हाल ही में मीडिया डिबेट्स और उनकी अंदरूनी राजनीति को लेकर अपनी बात खुलकर रखी। उन्होंने एक घटना का जिक्र किया, जो 2016 में घटित हुई थी, जब वे राज्यसभा सदस्य नहीं थे।
मीडिया डिबेट का पर्दाफाश
राकेश सिन्हा ने बताया कि एक राष्ट्रीय टीवी चैनल ने उन्हें डिबेट में हिस्सा लेने के लिए बुलाया था। उन्होंने कहा, "जब चैनल का फोन आया, तो मैं खुश हुआ। लगा कि थोड़ा महत्व मिल रहा है। डिबेट शुरू होने से पहले मुझे बताया गया कि मुझे क्या बोलना है। लेकिन जैसे ही मैंने अपनी बात रखने की कोशिश की, मुझे ज्यादा बोलने का मौका ही नहीं मिला।"
उन्होंने आगे कहा कि डिबेट का एजेंडा पहले से तय था। "चैनल ने मेरे मित्र अंसार रजा जी से बात कर ली थी और उनके लिए पहले से तय कर दिया था कि उन्हें क्या बोलना है।"
टीआरपी और विवाद की राजनीति
सिन्हा ने बताया कि डिबेट के दौरान बार-बार उन्हें निर्देश दिए गए कि वे उग्र हो जाएं। "मुझसे कहा गया कि अगर आप थोड़ी गर्मजोशी दिखाएंगे और दोनों पक्ष झगड़ेंगे, डिबेट के दौरान “मुसलमानों” को “दाढ़ी-टोपी” को लेकर अपशब्द बोलना है. तो डिबेट हिट हो जाएगी। चैनल की टीआरपी बढ़ेगी, और आप भी ट्रेंड करेंगे। लेकिन मैंने इसे अस्वीकार कर दिया।"
उन्होंने कहा कि इस तरह की लोकप्रियता के पीछे के खेल को उन्होंने समझा और ऐसे माहौल से खुद को दूर रखा। "मैंने महसूस किया कि यह सब नाटक और दिखावा है। मैंने फैसला किया कि मैं इस तरह की हल्की लोकप्रियता के लिए अपना आत्मसम्मान गिरने नहीं दूंगा।"
गोदी मीडिया का सच सुनिए 👇👇
— Anika Pandey (@Anika_Pan) January 18, 2025
आपको डिबेट के दौरान “मुसलमानों” को “दाढ़ी-टोपी” को लेकर अपशब्द बोलना है.
मैं बीच-बचाव का नाटक करूँगा, और मेरी TRP बढ़ेगी.
RSS नेता राकेश सिन्हा ने अपनी जुबानी यह बात बताई. pic.twitter.com/ZPe3ltVZYN
स्वयंसेवक की जिम्मेदारी
राकेश सिन्हा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े अपने मूल्यों पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "मैं आरएसएस का स्वयंसेवक हूं। मैं किसी की दाढ़ी उखाड़ने या टोपी उतारने के लिए नहीं हूं। मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं और समाज को जोड़ने का काम करता हूं।"
सिन्हा ने यह भी बताया कि उन्होंने इस घटना के बाद से मीडिया चैनलों पर अपनी उपस्थिति कम कर दी। "मैंने तय किया कि मैं ऐसे डिबेट्स का हिस्सा नहीं बनूंगा, जहां असली मुद्दों की बजाय सिर्फ विवाद पैदा करना उद्देश्य हो।"
सिन्हा का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। उनकी इस बात ने न केवल मीडिया के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाए हैं, बल्कि समाज को भी यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं।
उनके इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग उनकी ईमानदारी की सराहना कर रहे हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक बयान मान रहे हैं।
राकेश सिन्हा के इस अनुभव ने राष्ट्रीय मीडिया की कार्यप्रणाली और दर्शकों की भूमिका पर एक नई बहस को जन्म दिया है।