मेरी जमीन कब्जाई, मुझे पीटा, बहन को किया अधमरा
अशोक मेघवाल का परिवार सिराणा गांव में रह रहा था, जब उनकी जमीन पर कब्जा करने का प्रयास हुआ। विरोध करने पर कथित आरोपियों—गांव के ठाकुर हुकुम सिंह और उनके साथियों—ने न केवल अशोक को पीटा, बल्कि उसकी गर्भवती बहन के पैर तोड़ दिए। मां के सिर पर गंभीर चोट आई। पूरे परिवार को हिंसक हमले का शिकार होना पड़ा।
घटना के दौरान 30 मिनट का वीडियो भी रिकॉर्ड किया गया, जिसमें स्पष्ट रूप से परिवार पर हुए अत्याचार दिखाई देते हैं। लेकिन जब अशोक ने पुलिस से न्याय की गुहार लगाई, तो उसकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया। पुलिस ने न तो आरोपियों को हिरासत में लिया और न ही वीडियो को सबूत के तौर पर रिकॉर्ड में दर्ज किया।
पुलिस का रवैया और टूटती उम्मीदें
अशोक ने शिकायत दर्ज करवाई, जिसमें केस नंबर 72 और 77 के तहत कार्रवाई होनी थी। परंतु, पुलिस अधिकारियों की जांच में लगातार लापरवाही बरती गई। एफआईआर में आरोपियों के नाम तक नहीं जोड़े गए। यहां तक कि एसीपी देवेंद्र शर्मा ने जांच का रुख बदल दिया।
इस दौरान आरोपियों का भय इतना बढ़ गया कि अशोक को गांव छोड़कर जोधपुर शिफ्ट होना पड़ा। धमकियों के कारण वह और उसका परिवार मानसिक रूप से परेशान रहने लगा।
इन रिपोर्टों को जरूर पढ़ा जाए,कैसे जातिवादी आरोपी राजपूत लोगो ने मेरे केस में खेला करने हेतु झूठ बोला।
— Ashok Meghwal (@AshokMeghwal_) January 19, 2025
🙏
मेरे केस के पहले जांच अधिकारी RPS श्रवण जी संत थे,
आप बहुत ईमानदार और कड़क अधिकारी है।
जब आपने 6 जातिवादी आरोपियों को मेरे गांव से आधी रात को गिरफ्तार किया तो पूरे गांव में… pic.twitter.com/0fG8xhSokl
जब टंकी पर चढ़ना पड़ा
हर दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब न्याय नहीं मिला, तो अशोक ने 15 जनवरी 2025 को पानी की टंकी पर चढ़कर अपनी बात जनता और प्रशासन के सामने रखने का फैसला किया। इसके बाद, पुलिस और उच्च अधिकारी हरकत में आए। आईजी जयनारायण शेर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए जांच का जिम्मा एएसपी हिमांशु जांगिड़ और एएसपी पाली प्रवीण लोनावत को सौंपा।
अशोक ने बताया कि न्याय पाने की उसकी उम्मीदें धुंधली हो चुकी थीं। "पुलिस की लापरवाही ने मेरे परिवार को तोड़ दिया है। अगर समय पर कार्रवाई होती, तो आज हम सुरक्षित रहते," अशोक ने कहा।
भूखंड विवाद: दो पक्ष, एक दर्दनाक अंत
यह मामला सिराणा गांव में लंबे समय से चल रहे भूखंड विवाद का हिस्सा है। मार्च 2021 में जमीन विवाद को लेकर दोनों पक्षों में मारपीट हुई। पहले दिन कब्जाधारियों ने अशोक के निर्माण कार्यों को तोड़ दिया। इसके दो दिन बाद, अशोक की मां और गर्भवती बहन को घर से खींचकर बेरहमी से पीटा गया।
दोनों महिलाएं गंभीर रूप से घायल हो गईं। उनकी चीखें सुनने के बावजूद कोई उनकी मदद को आगे नहीं आया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो के बाद पुलिस ने हरकत में आकर घटनास्थल का निरीक्षण किया।
SC/ST Act में पुलिस जांच पेंडिंग है। 4 आरोपी लोगो की गिरफ्तारी भी बाकी है।
— Ashok Meghwal (@AshokMeghwal_) January 19, 2025
लेकिन SC/ST न्यायालय पाली ने मारपीट के वीडियो की FSL रिपोर्ट भी पेंडिंग होने के उपरांत 10 जनवरी को 4 जातिवादी आरोपियों को चार्ज बहस में बरी कर दिया ?
यह फैसला मेरे लिए काफी हतोत्साहित करने वाला है।… pic.twitter.com/rPhhbW1873
सिस्टम की नाकामी और न्याय की उम्मीद
अशोक मेघवाल के मामले ने प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था की खामियों को उजागर किया है। एक तरफ, एफआईआर में आरोपियों के नाम तक नहीं जोड़े गए, वहीं दूसरी ओर, मारपीट के वीडियो की फॉरेंसिक जांच (FSL) तीन साल से लंबित है।
अशोक ने कहा, "जब न्यायालय भी FSL रिपोर्ट के बिना आरोपियों को बरी कर देता है, तो हमें न्याय की उम्मीद किससे करनी चाहिए?" उन्होंने राजस्थान सरकार और पुलिस प्रशासन से SC/ST एक्ट के तहत लंबित जांचों को समय पर पूरा करने और पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने की अपील की।
आईजी की जांच का भरोसा, लेकिन कब होगा न्याय?
आईजी जयनारायण शेर ने आश्वासन दिया है कि इस मामले की जांच गहराई से होगी। उन्होंने पुलिस अधिकारियों की लापरवाही के खिलाफ भी कार्रवाई का भरोसा दिया।
परंतु, सवाल यह उठता है कि क्या अशोक मेघवाल और उसका परिवार न्याय पा सकेगा? क्या दोषियों को सजा मिलेगी? यह केवल एक परिवार का संघर्ष नहीं, बल्कि उन सभी पीड़ितों का प्रतीक है, जो अन्याय के खिलाफ लड़ रहे हैं।
यह घटना केवल अशोक मेघवाल की कहानी नहीं, बल्कि उस लड़ाई की मिसाल है, जो एक आम आदमी को न्याय पाने के लिए लड़नी पड़ती है। उम्मीद है, अशोक का संघर्ष न केवल न्याय दिलाएगा, बल्कि सिस्टम में सुधार का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।