नई दिल्ली। हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार दिलीप मंडल ने एक ऐसा खुलासा किया है, जिसने इतिहास और राजनीति में चल रही कथित 'कहानियों' की प्रामाणिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मंडल ने यह दावा किया है कि 'फातिमा शेख' नामक महिला, जिन्हें देश की पहली मुस्लिम शिक्षिका बताया जाता है, का अस्तित्व कभी था ही नहीं।
दिलीप मंडल का बयान
दिलीप मंडल ने X पर पोस्ट करते हुए लिखा कि "फातिमा शेख" का नाम उन्होंने खुद गढ़ा था। यह कहानी उनके मुताबिक, एक खास राजनीतिक उद्देश्य को साधने के लिए बनाई गई थी। उन्होंने कहा, "मैंने एक मनगढ़ंत कैरेक्टर बनाया था- फातिमा शेख। कृपया मुझे माफ करें। सच्चाई यह है कि कोई फातिमा शेख कभी थी ही नहीं। मैंने यह सब जानबूझकर किया था।"
मंडल के इस कबूलनामे के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। उनके दावे के अनुसार, 'फातिमा शेख' का उल्लेख 2006 से पहले कहीं नहीं मिलता। न ही ब्रिटिश काल के दस्तावेजों में, न ही सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले के लेखन में, और न ही उनकी जीवनी में।
फातिमा शेख को देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका बताया गया है, जिन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया। पिछले कुछ वर्षों में यह नाम कई बार विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों द्वारा महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के योगदान का उदाहरण देते हुए दोहराया गया।
दिलीप मंडल को कोई एहसास-ए-कमतरी ज़रूर है तभी इसे बताना होता है कि दुनिया मूर्ख है और यह इतना विद्वान और महान है कि फ़ातिमा शेख़ जैसा काल्पनिक चरित्र इसने गढ़ा जिसका 2006 से पहले कोई ज़िक्र भी नहीं था. मैं सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग से 1986 में छपी किताब… pic.twitter.com/7N8EYOlNGU
— Sujata (@Sujata1978) January 9, 2025
हालांकि, दिलीप मंडल के दावे के बाद यह कहानी संदिग्ध हो गई है। कई इतिहासकारों का कहना है कि अगर फातिमा शेख जैसी कोई महिला वास्तव में मौजूद होतीं और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया होता, तो उनका नाम ऐतिहासिक दस्तावेजों और लेखन में जरूर दर्ज होता।
मंडल के इस कबूलनामे के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह नाम केवल एक राजनीतिक नैरेटिव बनाने के लिए गढ़ा गया था। विश्लेषकों का मानना है कि इस कहानी का उद्देश्य दलित और मुस्लिम समुदायों के बीच एक कृत्रिम गठजोड़ स्थापित करना हो सकता है।
इतिहास में यह पहली बार नहीं है कि किसी काल्पनिक नाम या कहानी का इस्तेमाल कर एक खास राजनीतिक एजेंडा स्थापित करने की कोशिश की गई हो। उदाहरण के तौर पर, मशहूर लेखक जावेद अख्तर ने दावा किया था कि 'जोधा बाई' नामक कोई रानी अकबर के समय में अस्तित्व में नहीं थी।
सुजाता ने दिया प्रमाण
फातिमा शेख़ के अस्तित्व को लेकर हाल ही में शुरू हुए विवाद में अब एक नया मोड़ आ गया है। प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार दिलीप मंडल के उस दावे के बाद, जिसमें उन्होंने फातिमा शेख़ को एक "काल्पनिक चरित्र" बताया था, सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनके खिलाफ प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। सुजाता सहित कई लोगों ने मंडल को X (पूर्व में ट्विटर) पर चुनौती दी और ऐतिहासिक दस्तावेजों के जरिए उनके दावे को खारिज करने की कोशिश की।
सुजाता का प्रतिवाद
सुजाता ने X पर एक लंबी पोस्ट करते हुए दावा किया कि फातिमा शेख़ का नाम ऐतिहासिक रूप से प्रामाणिक है और उनके योगदान का उल्लेख पहले से मिलता है। उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग से 1986 में छपी पुस्तक "क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले" के कुछ पन्नों को साझा करते हुए कहा कि यह दस्तावेज़ फातिमा शेख़ के अस्तित्व को साबित करता है।
सुजाता ने लिखा, "दिलीप मंडल को एहसास-ए-कमतरी ज़रूर है, तभी इन्हें बार-बार यह साबित करना होता है कि दुनिया मूर्ख है और यह स्वयं इतने विद्वान हैं। फातिमा शेख़ को काल्पनिक बताने वाले मंडल को मैं यह प्रमाण पेश कर रही हूँ। अगर उन्हें समझ आता हो तो इसे देख लें, वरना इसे उनके फर्जी दावों के सामने फेंक देना चाहिए।"
दिलीप मंडल ने हाल ही में X पर एक पोस्ट में लिखा था कि फातिमा शेख़ का कोई ऐतिहासिक उल्लेख नहीं है और यह नाम उन्होंने 2006 में गढ़ा था। उन्होंने इसे एक राजनीतिक नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश के रूप में स्वीकारा। उनके बयान ने इतिहासकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम जनता के बीच बहस छेड़ दी।
मंडल का कहना था कि इतिहास में ऐसे कई नाम और कहानियां गढ़ी जाती रही हैं, जिनका उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों के बीच गठजोड़ स्थापित करना होता है। उन्होंने दावा किया कि फातिमा शेख़ का नाम भी ऐसी ही एक "मनगढ़ंत" कहानी है।
मंडल के बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। सुजाता सहित कई यूजर्स ने प्रमाण साझा करते हुए उनके दावे को खारिज करने की कोशिश की।
एक यूजर ने लिखा, "इतिहास को गढ़ने का दावा करना अपने आप में घमंड का परिचायक है। सावित्रीबाई फुले और उनके संघर्ष का अपमान करना बंद करें।"
वहीं, कुछ यूजर्स ने मंडल के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि इतिहास को पुनः जांचने और प्रामाणिकता सुनिश्चित करने की जरूरत है।
यह विवाद केवल फातिमा शेख़ तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सावित्रीबाई फुले और महिलाओं की शिक्षा के ऐतिहासिक योगदान को लेकर भी नई बहस शुरू हो गई है।
इतिहासकारों का मानना है कि इस विवाद को तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर सुलझाया जाना चाहिए, न कि इसे सोशल मीडिया पर एक दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत हमलों तक सीमित रखा जाए।
दिलीप मंडल के बयान और सुजाता द्वारा पेश किए गए प्रमाणों ने फातिमा शेख़ के अस्तित्व पर एक नई चर्चा छेड़ दी है। जहां मंडल इसे एक गढ़ा हुआ नाम बताते हैं, वहीं सुजाता और अन्य इस दावे को प्रमाणों के साथ खारिज कर रहे हैं। इस विवाद का समाधान तभी संभव है, जब ऐतिहासिक साक्ष्यों का निष्पक्ष रूप से विश्लेषण किया जाए।
आने वाले दिनों में इस विषय पर इतिहासकारों और विशेषज्ञों की राय महत्वपूर्ण होगी, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि फातिमा शेख़ वास्तव में ऐतिहासिक चरित्र थीं या केवल एक गढ़ी गई कहानी।