प्रयागराज, जनवरी 2025 – हर रोज़ लाखों श्रद्धालुओं को आस्था में डुबकी लगाने वाला महाकुंभ मेला 2025, इस बार आस्था और विवाद का संगम बन गया है। चर्चित आध्यात्मिक व्यक्तित्व हर्षा रिछारिया, जो महाकुंभ में अपनी विशिष्ट उपस्थिति के लिए जानी जाती हैं, अब एक भावुक वीडियो के कारण सुर्खियों में हैं।
हर्षा रिछारिया का महाकुंभ छोड़ने का ऐलान
हर्षा रिछारिया, जो खुद को निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंदगिरि महाराज की शिष्या बताती हैं, ने महाकुंभ छोड़ने की घोषणा की है। इस बात का खुलासा उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किए गए एक भावुक वीडियो में किया। इस वीडियो में हर्षा रोते हुए कह रही हैं कि महाकुंभ में उनके साथ ऐसा बर्ताव किया गया कि उन्हें मजबूर होकर कुंभ छोड़ना पड़ रहा है।
“एक लड़की जो धर्म से जुड़ने आई थी, सनातन संस्कृति को समझने आई थी, उसे यहां ऐसा माहौल दिया गया कि वह महाकुंभ में टिक ही नहीं पाई। यह कुंभ जो हमारे जीवन में सिर्फ एक बार आता है, मुझसे छीन लिया गया,” हर्षा ने आंसुओं के बीच कहा।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो
हर्षा रिछारिया का यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। उनके समर्थकों और प्रशंसकों ने उनके लिए सहानुभूति जताई और उनके साथ हुए व्यवहार की कड़ी आलोचना की। लोग इस मामले की गहराई से जांच की मांग कर रहे हैं, वहीं कुछ ने इसे धार्मिक आयोजनों में महिलाओं की भूमिका और उनके साथ होने वाले व्यवहार पर सवाल खड़ा करने वाला मामला बताया।
स्वामी आनंद स्वरूप पर लगाए गंभीर आरोप
हर्षा ने अपने वीडियो में शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप पर ऐसे हालात पैदा करने का आरोप लगाया, जिनकी वजह से उन्हें महाकुंभ छोड़ने का फैसला लेना पड़ा। यह विवाद निरंजनी अखाड़े की पेशवाई के दौरान उत्पन्न हुआ, जब हर्षा को रथ पर बैठाया गया था। स्वामी आनंद स्वरूप ने इस पर नाराज़गी जाहिर की थी, जिसके बाद से यह विवाद बढ़ता गया।
यही सत्य है
— Harsha (@Host_harsha) January 16, 2025
जब जब एक महिला अपने जीवन में कुछ अलग करती है तो समाज के कुछ लोग बढ़ने नहीं देते
बाकी प्रभु इच्छा
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जनता और साधु-संतों की प्रतिक्रिया
इस घटना ने धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार पर बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर कई लोग हर्षा के समर्थन में आए हैं, वहीं कुछ का मानना है कि इस तरह के विवादों को अखाड़ों के भीतर ही सुलझाया जाना चाहिए।
आस्था की यात्रा अधूरी
हर्षा रिछारिया का महाकुंभ छोड़ना एक ऐसे आयोजन में गहरा क्षण बन गया है, जिसे एकता और आध्यात्मिक सद्भाव का प्रतीक माना जाता है। उनकी विदाई भरी बात, "24 घंटे इस कमरे में पड़े रहने से बेहतर है कि मैं महाकुंभ से चली जाऊं," उनकी निराशा और इस अनुभव के मानसिक प्रभाव को दर्शाती है।
जैसे-जैसे महाकुंभ अपनी पूरी भव्यता के साथ आगे बढ़ रहा है, यह विवाद यह सवाल खड़ा करता है कि धार्मिक आयोजनों के भीतर अनुशासन और सम्मान का स्तर कितना संतुलित है। फिलहाल, हर्षा के प्रशंसक और समर्थक आगे की स्थिति पर नज़रें टिकाए हुए हैं, जबकि महाकुंभ में आस्था, उल्लास और मानवीय संघर्ष का संगम जारी है।