बाड़मेर, राजस्थान — राजस्थान के शुष्क रेगिस्तानी क्षेत्र बाड़मेर में, दिनेश नामक एक दृढ़ निश्चयी युवा लड़के की कहानी छुपी हुई है, जो हर दिन 10 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाता है। उसकी यह यात्रा ग्रामीण भारत में बच्चों द्वारा झेली जाने वाली चुनौतियों को उजागर करती है और दूरदराज के इलाकों में शैक्षिक ढांचे की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाती है।
दर्दनाक वास्तविकता
दिनेश की कठिन यात्रा देखकर सहानुभूति और चिंता का गहरा अहसास होता है। ऐसे युग में जब देश के कई हिस्सों में शैक्षिक पहुंच में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, दिनेश जैसी कहानियां यह याद दिलाती हैं कि प्रगति अब भी असमान है। एक समय था जब स्कूल जाने के लिए लंबी पैदल यात्रा भारत के बच्चों के लिए आम बात थी। तब स्कूल कम होते थे, और शिक्षा पाने की इच्छा का अर्थ कठिन परिस्थितियों का सामना करना होता था। उन बच्चों में से कई, जो कभी धूल भरी सड़कों पर स्कूल बैग लेकर चलते थे, आज देश के विकास में विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
ये बाड़मेर के दिनेश की कहानी है । वो आज भी 10KM पैदल चलकर स्कूल जाता है। देखकर पीड़ा हुई। एक समय था जब स्कूल बहुत कम थी हर दूसरा तीसरा बच्चा ऐसे ही थैला लेकर पैदल स्कूल जाता था उनमें से हजारों आज बड़े अधिकारी कर्मचारी बन गए हैं बहुत स्कूल bhee खुल गई हैं लेकिन बाड़मेर आज भी… pic.twitter.com/0BiJnXK8e5
— Prem lilawat (Meghwal) (@Plilawat) December 22, 2024
स्कूल बढ़े हैं, लेकिन हर जगह नहीं
भारत ने शैक्षिक पहुंच का विस्तार करने में सराहनीय प्रगति की है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में हजारों स्कूल स्थापित किए गए हैं। लेकिन बाड़मेर जैसे क्षेत्र अब भी पीछे छूट गए हैं। आसपास स्कूलों की कमी के कारण दिनेश जैसे बच्चों को शारीरिक रूप से थकाने वाली यात्राएं करनी पड़ती हैं, जो कई अन्य बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने से हतोत्साहित कर सकती हैं।
कार्यवाही की आवश्यकता
स्थानीय नेताओं और सरकारों से इस गंभीर मुद्दे को हल करने का आह्वान किया जा रहा है। गांवों में पर्याप्त स्कूलों की कमी न केवल बच्चों की शिक्षा में बाधा डालती है, बल्कि गरीबी और असमानता के चक्र को भी बनाए रखती है। एक चिंतित स्थानीय व्यक्ति कहते हैं, "किसी भी बच्चे को शिक्षा पाने के लिए 10 किलोमीटर पैदल चलने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। अब समय आ गया है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि हर गांव में एक स्कूल हो, ताकि दिनेश जैसे बच्चों को शिक्षा पाने के लिए संघर्ष न करना पड़े।"
फासला पाटने की पहल
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रामीण शिक्षा के बुनियादी ढांचे में निवेश करना बेहद जरूरी है। अधिक स्कूल खोलना, परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराना और वंचित छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, और इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना सभी स्तरों के नीति निर्माताओं की प्राथमिकता होनी चाहिए।
दिनेश की कहानी केवल एक बच्चे की कठिनाइयों की नहीं है, बल्कि ग्रामीण शिक्षा में प्रणालीगत खामियों का प्रतिबिंब है। उसकी दृढ़ता सराहनीय है, लेकिन किसी भी बच्चे की शिक्षा पाने की कोशिश इतनी कठिन नहीं होनी चाहिए। नेताओं और समुदायों को एकजुट होकर ऐसा भविष्य बनाने की आवश्यकता है जहां हर बच्चा, चाहे वह कहीं भी रहता हो, बिना किसी बाधा के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सके।
हर दिन अपने 10 किलोमीटर के सफर के साथ, दिनेश का संघर्ष एक मजबूत संदेश देता है: शिक्षा का वादा कभी भी पहुंच से बाहर नहीं होना चाहिए।