नई दिल्ली: मोदी सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ (वन नेशन, वन इलेक्शन) विधेयक को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी है। सूत्रों के अनुसार, सरकार इसे आगामी शीतकालीन सत्र में संसद के पटल पर रख सकती है। यह विधेयक देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने की योजना से जुड़ा है।
सपा नेता ने जताई असहमति
समाजवादी पार्टी (एसपी) के नेता और पूर्व सांसद एसटी हसन ने इस विधेयक पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने कहा, “जमीनी हकीकत कुछ और है। अगर किसी राज्य की सरकार गिर जाती है, तो क्या पूरे देश में फिर से चुनाव होंगे? यह योजना संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए नुकसानदायक है।" उन्होंने आगे कहा कि “यह हमें विविधताओं से दूर ले जाकर तानाशाही की ओर ले जाएगा।"
सभी दलों से लिए जाएंगे सुझाव
सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि विधेयक पर चर्चा के लिए सबसे पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाएगा। यह समिति सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से सुझाव लेगी और सामूहिक सहमति बनाने पर जोर देगी। इससे पहले, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपी थीं।
विधेयक का समर्थन और विरोध
इस कदम पर राजनीतिक दलों के बीच मतभेद उभर कर सामने आए हैं। जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) जैसी विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया है, वहीं एनडीए के सहयोगी दल, जैसे जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी, ने इसका समर्थन किया है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यह विधेयक केंद्र सरकार को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लाया जा रहा है।
एक साथ चुनाव कराने की योजना
वर्तमान में देश में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। यदि यह विधेयक कानून बनता है, तो पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। सरकार का मानना है कि इससे चुनावी खर्च और समय की बचत होगी।
सरकार का यह फैसला राजनीतिक और संवैधानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इसे संसद में कितना समर्थन मिलता है और इससे भारतीय लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है।