तीन तलाक पर बहस और चर्चा के बीच, लंदन से लौटी इकरा का एक बयान सुर्खियों में है। जब उनसे पूछा गया कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक को समाप्त किए जाने पर उनके दिल और दिमाग में क्या विचार आते हैं, तो उन्होंने तकनीकी और तार्किक दृष्टिकोण से अपनी बात रखी।
इकरा ने कहा, “तीन तलाक एक सिविल मामला था और इसे सिविल मामला ही रहना चाहिए था। इसे आपराधिक कानून का हिस्सा बनाना सही नहीं है। इसका असली उद्देश्य महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाना था, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसका इस्तेमाल केवल एक खास समुदाय के पुरुषों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है।”
इकरा ने आगे बताया कि उन्होंने खुद ऐसे कई मामलों को देखा और सुना है जहां महिलाओं को तीन तलाक के बावजूद वांछित लाभ नहीं मिला। उन्होंने कहा, “बीजेपी दावा करती है कि यह कानून महिलाओं को सशक्त करेगा, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा नहीं दिख रहा है। मैंने व्यक्तिगत रूप से ऐसे मामले देखे हैं जहां महिलाएं अभी भी वित्तीय अस्थिरता और अनिश्चितता से जूझ रही हैं।”
इकरा ने यह भी कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की प्रक्रिया काफी कठिन है, और इससे कई महिलाएं प्रभावित होती हैं। “कई बार, महिलाओं को इस प्रक्रिया के कारण मानसिक और सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है। तलाक के कानूनों में स्पष्टता की कमी के कारण स्थिति और भी जटिल हो जाती है। इससे न केवल महिलाओं की वित्तीय स्थिति खराब होती है, बल्कि उनके वैवाहिक और पारिवारिक जीवन पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है।”
तीन तलाक के आपराधिककरण पर उन्होंने कहा, “इस कानून के लागू होने के बाद हालात बेहतर होने की बजाय और खराब हो गए हैं। अब कोई स्पष्टता नहीं है कि कौन किससे शादीशुदा है, उनकी स्थिति क्या है, और उनका आर्थिक भविष्य कैसा होगा। यह कानून सिर्फ एक राजनीतिक कदम लग रहा है, जिसमें महिलाओं की भलाई से ज्यादा एक समुदाय को टारगेट किया गया है।”
इकरा के इस बयान ने एक बार फिर तीन तलाक कानून पर बहस को तेज कर दिया है। जहां कुछ लोग उनके विचारों से सहमत हैं, वहीं कई लोगों ने इसे गैरजिम्मेदाराना बयान करार दिया है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विषय पर समाज और सरकार का अगला कदम क्या होता है और क्या महिलाओं को वास्तव में इस कानून का फायदा मिल रहा है या नहीं।