नई दिल्ली: लेखिका और सामाजिक चिंतक मिशा इशी ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर एक विचारोत्तेजक पोस्ट साझा किया, जिसमें उन्होंने समाज में भय और लोभ के जरिए शोषण के गहरे तंत्र पर सवाल उठाए। उनकी इस पोस्ट ने विचारकों और आम जनता के बीच एक नई बहस छेड़ दी है।
मिशा इशी ने अपनी पोस्ट में लिखा, "मुस्लिम का भय दिखाकर उनको अपनी जेब भरनी है, जो अनपढ़ है उनको नर्क का, भूत चुड़ैल का भय दिखाया जाता है। जो डरपोक हैं उन्हें काल्पनिक शत्रु का भय दिखाया जाता है।" उनका इशारा इस बात की ओर था कि कैसे समाज में भय का उपयोग करके अलग-अलग वर्गों का शोषण किया जाता है।
भय और लोभ का शासन: समाज में शोषण के साधन
इशी ने आगे लिखा, "चालाक का शासन दो कंधों पर चलता है—भय और लालच।" उनका मानना है कि गरीब और वंचित वर्ग अक्सर इन दोनों कारकों का शिकार होते हैं। वे कहती हैं कि चालाक वर्ग इन भावनाओं का फायदा उठाकर वंचितों को उनके अधिकारों से वंचित करता है।
"करोना का भय दिखाया और दुनिया की कुछ फार्मेसी फर्म्स पैसा कमा कर निकल गई," यह बयान इशी के उस दृष्टिकोण को दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर भी भय का इस्तेमाल आर्थिक लाभ के लिए किया गया।
मुस्लिम का भय दिखाकर उनको अपनी जेब भरनी है , जो अनपढ़ है उनको नर्क का , भूत चुड़ैल का भय दिखाया जाता है । जो डरपोक हैं उन्हें काल्पनिक शत्रु का भय दिखाया जाता है ।
— Misha ishi (@shellykiran7) December 23, 2024
करोना का भय दिखाया दुनिया की कुछ फार्मेसी फर्म्स पैसा कमा कर निकल गई ।
चालाक का शासन दो कंधों पर चलता है भय और…
स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का संदेश
मिशा इशी ने मनुष्य को स्वतंत्र बनने के लिए भय और लोभ दोनों का त्याग करने की सलाह दी। उन्होंने लिखा, "इंसान यदि मृत्यु को शाश्वत सत्य स्वीकार कर ले और उसके बाद जीवन की संभावना भी नकार दे तो उसे कोई नहीं डरा सकता है। लोभ को त्याग दे तो उसे कोई नहीं खरीद सकता।" उनका कहना है कि स्वतंत्रता तभी संभव है जब व्यक्ति अपने डर और लालच से ऊपर उठ सके।
हिंसा नहीं, समाधान का नया रास्ता
उन्होंने यह भी कहा कि समाज में हिंसा की जड़ें व्यक्ति की मानसिक पीड़ा और दुविधा से जुड़ी हैं। "हिंसा मानसिक पीड़ा और दुविधा से बचने का एक फौरी तरीका है, लेकिन यह समस्या का स्थायी हल नहीं है। समस्या का स्थायी हल है लोभ और डर दोनों का त्याग," इशी ने लिखा।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
मिशा इशी की इस पोस्ट पर सोशल मीडिया पर व्यापक प्रतिक्रिया मिल रही है। कुछ लोगों ने उनके विचारों की सराहना की, जबकि अन्य ने इसे आदर्शवादी दृष्टिकोण बताया। एक उपयोगकर्ता ने लिखा, "उनकी बातों में गहराई है। समाज को इन मूलभूत मुद्दों पर सोचना चाहिए।" वहीं, कुछ ने यह भी सवाल उठाया कि क्या व्यावहारिक जीवन में ऐसा संभव है।
मिशा इशी की सोच: प्रेरणा या चुनौती?
मिशा इशी की यह पोस्ट हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में अपने डर और लोभ से ऊपर उठ सकते हैं। यह न केवल समाज के कमजोर वर्गों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चुनौती है।
उनकी यह पोस्ट हमें यह भी याद दिलाती है कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल भौतिक बंधनों से मुक्त होना नहीं है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक बंधनों से भी आजादी पाना है।