नागपुर, 27 दिसंबर 2024 – नागपुर में हाल ही में एक ऐतिहासिक घटना हुई जब करीब 5500 लोगों ने सामूहिक रूप से हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाया। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में भारी संख्या में लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते हुए देखा जा सकता है। यह घटना देशभर में चर्चा का विषय बन गई है, और सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में लोग हिंदू धर्म का त्याग क्यों कर रहे हैं।
धार्मिक असंतोष के कारण
धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों ने अपने बयान में बताया कि वे लंबे समय से सामाजिक भेदभाव और पाखंड से परेशान थे। उन्होंने जाति-आधारित शोषण और हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों का हवाला दिया। उनका कहना है कि बौद्ध धर्म उन्हें समानता, करुणा और सामाजिक न्याय का रास्ता दिखाता है।
मनुवाद और पाखंडवाद पर निशाना
धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों का मानना है कि हिंदू धर्म में जाति प्रथा जैसी कुरीतियां आज भी जीवित हैं। दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को सामाजिक और धार्मिक स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कई धर्मांतरण करने वालों ने कहा कि हिंदू धर्म में बदलाव की आवश्यकता है, और जब तक यह नहीं होगा, लोग धर्म परिवर्तन जारी रख सकते हैं।
नागपुर में सामूहिक रूप से 5500 लोगों ने हिन्दू धर्म का त्याग किया है।
— Inderjeet Barak🌾 (@inderjeetbarak) December 25, 2024
लोग पाखंडवाद और मनुवाद से बाहर आ रहे हैं।। pic.twitter.com/MRsPBYWRFw
हिंदू धर्म के ठेकेदारों पर सवाल
धर्म परिवर्तन की इस घटना ने हिंदू धर्म के नेताओं और शंकराचार्यों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। लोग पूछ रहे हैं कि ऐसी समस्याएं क्यों हो रही हैं जो लोगों को अपना धर्म छोड़ने के लिए मजबूर कर रही हैं। क्या हिंदू धर्म के ग्रंथों और परंपराओं में सुधार की जरूरत है?
ऐतिहासिक महत्व
यह पहली बार नहीं है जब इतने बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन हुआ हो। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी 1956 में नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। यह घटना उसी परंपरा की याद दिलाती है और सामाजिक न्याय की मांग को पुनः जीवित करती है।
आगे की राह
धर्मांतरण की इस घटना ने समाज और धर्म दोनों के लिए गहन आत्ममंथन की आवश्यकता को रेखांकित किया है। धर्मगुरुओं और सामाजिक नेताओं को यह समझने की जरूरत है कि धर्म की प्रासंगिकता तब तक बनी रहेगी जब तक वह समानता और न्याय की गारंटी दे सके।
हिंदू धर्म छोड़ने वाले इन 5500 लोगों का यह कदम केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि एक सामूहिक सामाजिक संदेश है, जो पाखंड, भेदभाव और असमानता के खिलाफ आवाज उठाने का प्रतीक बन चुका है।