भारत में बिस्किट का नाम आते ही सबसे पहले जो नाम दिमाग में आता है, वो है पारले-जी। यह ब्रांड न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कैसे एक छोटी सी कंपनी ने इतनी बड़ी सफलता हासिल की? आइए जानते हैं पारले-जी की सफलता के पीछे का रहस्य।
एक सदी पुरानी कहानी
पारले-जी की शुरुआत 1929 में मोहनलाल दयाल ने की थी। उस समय स्वदेशी आंदोलन जोरों पर था और लोगों में विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करने की भावना थी। मोहनलाल दयाल ने इसी भावना को समझते हुए भारत में ही बिस्किट बनाने का फैसला किया। शुरुआत में कंपनी ने कैंडी का उत्पादन किया लेकिन बाद में बिस्किट बनाने पर ध्यान केंद्रित किया।
कैसे बना पारले-जी दुनिया का सबसे बड़ा बिस्किट ब्रांड?
स्वदेशी भावना: पारले-जी का जन्म स्वदेशी आंदोलन के दौरान हुआ था। इसने भारतीयों के दिलों में एक खास जगह बना ली।
सस्ती कीमत: पारले-जी को हर वर्ग के लोगों के लिए किफायती बनाया गया।
गुणवत्ता: पारले-जी हमेशा अपनी गुणवत्ता के लिए जाना जाता रहा है।
विज्ञापन: पारले-जी ने हमेशा ही प्रभावशाली विज्ञापन दिए हैं।
बदलते समय के साथ बदलाव: पारले-जी ने समय के साथ खुद को बदलते हुए रखा है।
व्यापक वितरण नेटवर्क: पारले-जी का वितरण नेटवर्क देश के कोने-कोने में फैला हुआ है।
पारले-जी का सफलता का मंत्र
पारले-जी की सफलता का सबसे बड़ा कारण है इसकी सादगी और गुणवत्ता। यह बिस्किट हर उम्र के लोगों को पसंद आता है। इसके अलावा, पारले-जी ने हमेशा ही ग्राहकों की जरूरतों को समझा है और उसी के अनुसार अपने उत्पादों में बदलाव किए हैं।