आज हम एक महत्वपूर्ण और अक्सर विवादित विषय पर बात करेंगे, जिसे लेकर समाज में कई भ्रांतियाँ फैली हुई हैं। यह विषय है "खतना", जिसे कुछ लोग सजा के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक परंपरा का हिस्सा मानते हैं। इस चर्चा के केंद्र में इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों में खतना का महत्व और इसकी शुरुआत के बारे में है।
गैर-मुस्लिम समुदायों की ओर से अक्सर दावा किया जाता है कि मुसलमान लड़कों के लिए खतना एक प्रकार की सजा है। इस दावे को लेकर दुनियाभर में कई तरह की धारणाएँ और गलतफहमियाँ फैली हुई हैं। कुछ मुसलमानों का यह मानना है कि खतना एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम से जोड़ा जाता है। उन्हें यह आदेश एक धार्मिक परीक्षा के रूप में मिला था, और यह अनुष्ठान इस्लाम में आज तक जारी है। यहूदियों और ईसाइयों की पवित्र पुस्तकों में भी हज़रत इब्राहीम का उल्लेख मिलता है, लेकिन इन धार्मिक ग्रंथों में कुछ तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
इस्लाम में खतना की शुरुआत हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम से मानी जाती है। सही मुस्लिम शरीफ और बुखारी शरीफ की हदीसों में उल्लेख मिलता है कि हज़रत इब्राहीम ने अल्लाह के हुक्म के तहत खुद अपना खतना 80 साल की उम्र में किया था। इसके बाद यह परंपरा उनके बेटे हज़रत इस्माइल अलैहि सलाम के लिए भी लागू हुई, जब उनका खतना 13 साल की उम्र में किया गया। इस्लामी इतिहास में खतना को धार्मिक कर्तव्य के रूप में अपनाया गया, न कि किसी सजा या यातना के रूप में।
हालांकि, कुछ यहूदी और ईसाई धार्मिक कथाएँ यह दावा करती हैं कि हज़रत इब्राहीम का खतना उनकी पत्नी ने सजा के रूप में किया था। यह कहानी सिर्फ एक अफवाह और गलतफहमी पर आधारित है। इस वाकये का इस्लामिक मान्यताओं में कोई ठोस आधार नहीं है। इस मनगढ़ंत कहानी का मकसद मुसलमानों की धार्मिक प्रथाओं को गलत ढंग से पेश करना है, ताकि इसे अपमानजनक सजा के रूप में दिखाया जा सके। असलियत यह है कि हज़रत इब्राहीम ने खतना अल्लाह के आदेश पर किया था और इस परंपरा को धार्मिक विश्वास के रूप में अपनाया गया।
आधुनिक समय में, यूरोपीय देशों में खतना पर विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस विवाद का मुख्य कारण 2012 में जर्मनी की एक अदालत का फैसला था, जिसमें कहा गया था कि बच्चों का खतना उनके शरीर को नुकसान पहुंचाता है। यह फैसला बेहद विवादास्पद रहा और कई धार्मिक समूहों ने इसका विरोध किया। लेकिन अमेरिकी समाज, खासकर चिकित्सा विज्ञान की नई खोजों के आधार पर, इस प्रथा को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मानने लगा है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का हालिया बयान यह दर्शाता है कि नवजात बच्चों में खतना करने से कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। शोध से यह साबित हुआ है कि खतना पुरुषों को कई गंभीर बीमारियों से बचाता है, जिसमें यौन संचारित रोग और कैंसर का खतरा शामिल है।
अमेरिका में 1999 से 2004 के बीच हुए सर्वे के अनुसार, 80% पुरुषों ने अपना खतना करवाया था। 1999 में अमेरिका में 65% नवजात शिशुओं का खतना किया गया था। इसका मतलब यह है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से समृद्ध परिवारों में खतना एक सामान्य प्रथा है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के शोध में यह भी बताया गया है कि खतना पुरुषों में मूत्र मार्ग के संक्रमण और अन्य यौन रोगों से बचाव में मददगार है।
इस्लाम में खतना को एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में माना जाता है, और यह परंपरा आज भी जारी है। मुसलमान खतना को अल्लाह के हुक्म की तामील के रूप में देखते हैं। इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, अल्लाह ताला का हर आदेश मानवीय भलाई के लिए होता है, चाहे इंसान को उसकी पूरी हिकमत मालूम हो या नहीं। खतना भी इसी आदेश का हिस्सा है, जो शारीरिक और आध्यात्मिक स्वच्छता का प्रतीक है।
आखिर में, यह स्पष्ट है कि खतना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इसके कई स्वास्थ्य लाभों को मान्यता दे रहा है। मुसलमान सदियों से इस्लामी शिक्षा के तहत अपने बच्चों का खतना करते आ रहे हैं और यह परंपरा भविष्य में भी जारी रहेगी।
लेख: मोहम्मद आसीन खान की बातों पर आधारित हैं।