मथुरा: द्वारका-शारदापीठ एवं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ पीठ में महिला शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि महिलाएं भले ही राजनीति और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, लेकिन सनातन धर्म के धार्मिक पदों, जैसे शंकराचार्य, के लिए वे उपयुक्त नहीं मानी जा सकतीं।
स्वामी स्वरूपानन्द ने अखिल भारतीय विद्वत परिषद पर भी तीखा प्रहार करते हुए इसे 'नकली शंकराचार्य गढ़ने वाली संस्था' बताया। उन्होंने कहा कि परिषद ने हाल ही में नेपाल में पशुपतिनाथ के नाम से एक नई पीठ की स्थापना कर दी, जो पहले से अस्तित्व में नहीं थी। इस पीठ पर एक महिला को शंकराचार्य के पद पर नियुक्त करने का फैसला किया गया, जिसे उन्होंने परंपराओं के खिलाफ बताया।
स्वामी स्वरूपानन्द ने अपने वक्तव्य में कहा, "आदि शंकराचार्य ने स्वयं इस बात का विधान किया था कि महिलाएं शंकराचार्य पद पर नहीं बैठ सकतीं। यह नियम और परंपरा धर्म की मर्यादा को बनाए रखने के लिए है।" उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति में महिलाओं की भूमिका का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन धार्मिक नेतृत्व के मामलों में पारंपरिक व्यवस्थाओं का पालन होना चाहिए।
शंकराचार्य स्वरूपानन्द का यह बयान उस समय आया है जब धार्मिक समुदायों में आधुनिकता और परंपरा के बीच संघर्ष गहरा होता जा रहा है। उनका कहना है कि धर्म के नियम और संरचनाएं एक देश से दूसरे देश में समान रूप से नहीं लागू हो सकतीं, इसलिए ऐसे धार्मिक निर्णय सतर्कता से लेने चाहिए।
स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के इस बयान से एक नई बहस शुरू हो गई है कि धार्मिक नेतृत्व में महिलाओं की भागीदारी किस हद तक स्वीकार्य है। यह विषय आगे चलकर सनातन परंपराओं और आधुनिक समाज के बीच संतुलन की चुनौती को रेखांकित करता है।