राजस्थान में जातिवाद का काला साया: जिसने नर्क नहीं देखा वो राजस्थान में दलितों का जीवन देख लो

भरतपुर, राजस्थान — राजस्थान के भरतपुर जिले के जघीना गांव में एक बार फिर जातिवादी भेदभाव का दर्दनाक उदाहरण सामने आया है। 12 नवंबर 2024 को इस गांव में दलित समाज की एक बारात में जातीय तनाव और दबाव का माहौल देखने को मिला। 

खबरों के मुताबिक, जघीना गांव में दलित समाज के लोगों को उनकी शादी में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की तस्वीर नहीं ले जाने की धमकी दी गई। गाँव के बहुसंख्यक जाट समुदाय के कुछ लोगों ने दलितों को चेतावनी दी कि यदि बारात में आंबेडकर जी की तस्वीर नजर आई तो पूरी बारात पर हमला किया जाएगा। इस धमकी के डर से दलित समाज ने बाबा साहेब की तस्वीर को बारात में शामिल नहीं किया।

शादी के दौरान कुछ युवकों ने उपद्रव करने की कोशिश की, लेकिन दलित समाज ने पूरी सहनशीलता से काम लिया और किसी तरह हाथ जोड़कर शांति बनाए रखी। शादी समारोह बड़ी कठिनाइयों के साथ शांतिपूर्वक संपन्न हुआ।

इस तरह की घटनाएं राजस्थान के दलित समाज पर हो रहे अत्याचार की केवल एक झलक मात्र हैं। जघीना ही नहीं, राजस्थान के कई इलाकों में दलित समाज के लोगों को शादी-ब्याह जैसे निजी अवसरों पर भी सामाजिक नियमों के तहत कई प्रकार के प्रतिबंधों और धमकियों का सामना करना पड़ता है। विवाह के दौरान घोड़ी पर चढ़ने, अपनी पसंद के गीत बजाने, और आंबेडकर की तस्वीर रखने जैसी साधारण चीजों पर भी उन्हें अक्सर विरोध का सामना करना पड़ता है।

ऐसा कहा जा रहा है कि जघीना के जाट समुदाय के कुछ लोग दलित समाज की बहन-बेटियों से भी अभद्रता करते हैं। मगर दलित समाज इतने दबाव में है कि वे किसी प्रकार की शिकायत दर्ज कराने से भी डरते हैं। इस प्रकार की घटनाओं में, यदि कोई मामला सामने आ भी जाता है, तो इसे पंचायत द्वारा सुलझाने का दबाव बनाकर मामले को शांत कर दिया जाता है। 

जघीना में जो हुआ, वह दुर्भाग्य से इस बात का प्रतीक है कि राजस्थान में जातिवाद का भेदभाव आज भी गहराई से मौजूद है। यहां तक कि कुम्हेर हत्याकांड जैसी घटनाएं अभी भी राजस्थान के दलित समाज के लिए एक स्थायी घाव हैं। स्थानीय सांसद, जो स्वयं दलित हैं, के होते हुए भी दलितों पर अत्याचार की घटनाएं नहीं थम रही हैं।

राजस्थान में जातीय संघर्ष की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। कुम्हेर में 1992 में हुए हत्याकांड में भी जातिवादी हिंसा का कड़वा चेहरा सामने आया था, जब जाट समाज के कुछ लोगों ने दलित समाज के लोगों पर क्रूरता दिखाई थी। आज भी इन घटनाओं की छाया से राजस्थान का दलित समाज पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया है। 

राजस्थान के दलित समाज को अब यह उम्मीद है कि सरकार और प्रशासन ऐसी घटनाओं पर सख्ती से कार्यवाही करें और दलित समाज को उसके अधिकारों का संरक्षण प्रदान करें। हर नागरिक को समानता और सम्मान का अधिकार है, और इसके लिए समाज और प्रशासन का जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है।

यह घटना एक बार फिर से इस बात की ओर इशारा करती है कि भले ही कानूनी रूप से भारत में समानता का अधिकार सभी को दिया गया हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

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