भारत जैसे बहुधर्मी और बहुभाषीय देश में, जहां विविधता के साथ-साथ धार्मिक आस्थाओं की गहरी जड़ें हैं, महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों पर अक्सर प्रतिबंध लगाए जाते हैं। ये प्रतिबंध विशेष रूप से धार्मिक रीति-रिवाजों और कुरीतियों के माध्यम से और अधिक सख्त हो जाते हैं। इन प्रथाओं में मुस्लिम समाज में मौजूद "हलाला" जैसी कुप्रथाएं भी शामिल हैं, जो महिलाओं के शोषण का एक दुखद उदाहरण हैं।
हलाला: एक विवादित प्रथा
हलाला इस्लामी समाज में एक ऐसी प्रथा है जिसमें तलाकशुदा महिला को अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है। इस शादी के दौरान उस व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद वह महिला को तलाक देता है, ताकि वह अपने पहले पति से पुनः निकाह कर सके। यह प्रथा न केवल महिलाओं के सम्मान और स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि इसे आज के आधुनिक समाज में अमानवीय और अप्रासंगिक भी माना जा रहा है।
शोषण का नया रूप
हलाला के नाम पर कई महिलाओं का मानसिक और शारीरिक शोषण किया जा रहा है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, इस प्रथा में शामिल कई मौलाना महिलाओं के साथ जबरन संबंध बनाते हैं और इसके बदले में मोटी रकम वसूलते हैं। यह राशि 20 हजार रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक हो सकती है। इसके अलावा, मौलाना इस प्रक्रिया का इस्तेमाल न केवल आर्थिक लाभ के लिए करते हैं, बल्कि इसे अपने यौन सुख का साधन भी बना लेते हैं।
गोपनीयता में छुपा शोषण
दिल्ली के जामिया नगर जैसे इलाकों से आई रिपोर्टों के अनुसार, कुछ मौलाना हलाला के नाम पर ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं। एक मौलाना, जिसकी दो पत्नियां हैं, यह दावा करता है कि वह हलाला के बहाने कई महिलाओं के साथ संबंध बनाता है। उसकी पत्नियों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं होती, क्योंकि वे मानती हैं कि वह दूसरी पत्नी के साथ है।
समाज और न्याय की जरूरत
हलाला जैसी कुप्रथा न केवल इस्लाम के मूल्यों को बदनाम करती है, बल्कि यह महिलाओं के अधिकारों और गरिमा के साथ खिलवाड़ भी करती है। यह आवश्यक है कि धार्मिक नेताओं और समाज के जागरूक नागरिक इस मुद्दे को गंभीरता से लें और ऐसी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए कदम उठाएं।
सरकार और न्यायपालिका को भी इस दिशा में कड़े कानून बनाने चाहिए ताकि महिलाओं को इस तरह की प्रथाओं से मुक्ति मिल सके। समाज में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने से ही ऐसी कुप्रथाओं का अंत हो सकता है। महिलाओं को समानता और गरिमा का अधिकार दिलाने के लिए हर स्तर पर प्रयास करना आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
(लेखक का उद्देश्य समाज में जागरूकता फैलाना है। सभी विचार विमर्श का हिस्सा हैं और किसी समुदाय विशेष को ठेस पहुंचाने का मकसद नहीं है।)