हाल ही में क्रांति कुमार ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में भारतीय समाज में बाल विवाह और उससे जुड़े कुरीतियों के इतिहास पर एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने लिखा, "ब्रिटिश राज के दौरान इंडिया में अधेड़ उम्र के पुरुषों द्वारा बच्चियों से विवाह किया जाता था, जिसे बलात्कार ही कहा जाना चाहिए। बालिकाओं की उम्र कई बार 9, 10 या 12 वर्ष से भी कम होती थी और कई बार यह सहवास उनके लिए जानलेवा साबित होता था।"
इस बयान में उन्होंने 9 वर्षीय फूलमोनी की दिल दहलाने वाली घटना का भी जिक्र किया, जिसका विवाह एक 32 वर्षीय व्यक्ति से हुआ था। सहवास की पहली रात ही फूलमोनी की मृत्यु हो गई थी। यह घटना 19वीं सदी के भारतीय समाज की जटिलताओं और कुरीतियों को उजागर करती है, जहां सामाजिक रूढ़िवादिता बालिकाओं की ज़िंदगियों पर भारी पड़ती थी।
ब्रिटिश राज इंडिया : बाल विवाह के नाम पर अधेड़ उम्र के पुरुष बच्चियों से विवाह के नाम पर बलात्कार करते थे. लड़कियों की उम्र 9, 10 या 12 साल से भी कम होती थी.
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) November 11, 2024
कई लड़कियां सहवास के दौरान ही दम तोड़ देती थीं. बंगाल में 9 वर्षीय फूलमोनी का विवाह 32 वर्षीय पुरूष के साथ हुआ. सहवास की… pic.twitter.com/lgafgQXN0l
ब्रिटिश सरकार ने 1891 में ऐसी घटनाओं को देखते हुए 'एज ऑफ कंसेंट एक्ट 1891' लाने का प्रयास किया, जिसके तहत लड़कियों की विवाह सहमति आयु 9 से बढ़ाकर 14 वर्ष करने का प्रस्ताव रखा गया। हालांकि, इस सुधार का विरोध कई हिन्दूवादी नेताओं ने किया, जिनमें प्रमुख नाम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का था। तिलक का मानना था कि अंग्रेजों को हिन्दू संस्कृति में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
काफी बहस और विरोध के बाद, अंततः 1891 में सहमति की आयु को 11 वर्ष पर तय किया गया। फिर भी समाज में बाल विवाह का प्रचलन बना रहा और इस कानून का पालन हर जगह नहीं किया गया। इसके बाद भी 1925 में आयु को बढ़ाकर 13 वर्ष किया गया, 1949 में इसे 15 वर्ष और अंततः 1978 में इसे 18 वर्ष की उम्र तक बढ़ा दिया गया।
क्रांति कुमार ने यह भी चेताया कि बालिकाओं के प्रति विकृत मानसिकता का खतरा समाज में आज भी मौजूद है। उन्होंने लिखा, "ऐसे लोग कहीं भी हो सकते हैं – आपके परिवार में, दफ्तर में, पड़ोस में, राजनीति, मीडिया या फिल्म जगत में। हमें सतर्क और सावधान रहना है और अपनी बच्चियों की सुरक्षा पर ध्यान देना है।"
कुमार का यह बयान न केवल इतिहास की एक गंभीर सच्चाई को उजागर करता है, बल्कि आज के समाज को बालिकाओं की सुरक्षा के प्रति सचेत रहने का संदेश भी देता है।