नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं, इस पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाएगा। यह निर्णय चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात जजों की संविधान पीठ द्वारा लिया जाएगा, जो उनके रिटायरमेंट से ठीक पहले आने वाला अंतिम बड़ा निर्णय है। CJI चंद्रचूड़ का 10 नवंबर को रिटायरमेंट है, और आज उनके कार्यकाल का अंतिम वर्किंग-डे है। इस ऐतिहासिक फैसले पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं, विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय और शैक्षिक संस्थानों के संदर्भ में इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
यह मुद्दा साल 2005 में उठाया गया था, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने AMU को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन UPA सरकार और AMU ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उस समय केंद्र सरकार ने यह माना था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलना चाहिए, ताकि मुस्लिम समुदाय को उच्च शिक्षा में विशेष अवसर मिल सकें। हालाँकि, साल 2016 में जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार आई, तो उसने इस याचिका को वापस ले लिया, जिससे AMU का अल्पसंख्यक दर्जा अधर में लटक गया।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट आज महत्वपूर्ण फैसला सुनाएगी।
— Sachin Gupta (@SachinGuptaUP) November 8, 2024
CJI डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। आज उनका आखिरी वर्किंग-डे है। CJI की अध्यक्षता वाली 7 जजों की पीठ फैसला सुनाएगी।
साल-2005 में… pic.twitter.com/PSgziOSfHd
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देता है, तो यह भारत के मुस्लिम समुदाय के लिए एक बड़ा समर्थन होगा, और यह अल्पसंख्यक संस्थानों को उनकी विशिष्ट पहचान के आधार पर शिक्षा प्रदान करने का अधिकार सुनिश्चित करेगा। दूसरी ओर, यदि कोर्ट इसे बरकरार नहीं रखता है, तो इससे न केवल AMU पर बल्कि अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी असर पड़ सकता है जो इसी तरह की मान्यता प्राप्त करना चाहते हैं।
CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में आने वाला यह अंतिम फैसला उनके कार्यकाल के एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने अपने समय में कई बड़े फैसले दिए हैं, और उनका यह आखिरी फैसला न्यायिक इतिहास में एक विशेष स्थान बना सकता है। यह मामला संवैधानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी शैक्षिक स्वतंत्रता से सीधे जुड़ा हुआ है।
सभी की नजरें इस ऐतिहासिक निर्णय पर टिकी हैं, जो यह निर्धारित करेगा कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक AMU अपनी अल्पसंख्यक संस्था की पहचान बनाए रख सकेगा या नहीं।