वाराणसी: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने जात-पात के खिलाफ दिए जा रहे नारों और उनकी राजनीतिक व्याख्या पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने हाल ही में कहा कि "जात पात की करो विदाई, हिंदू भाई-भाई" जैसे नारे वास्तव में सनातन धर्म की मूल पहचान को कमजोर करने का प्रयास हैं।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जाति और वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज की परंपरा और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। स्वामी जी का कहना है कि हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था को पूरी तरह खत्म करना हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मिटाने जैसा होगा। उन्होंने कहा, "हमारी परंपरा में वर्णाश्रम का विचार है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी को नीचा दिखाया जाए। हमें एकता के साथ रहना चाहिए, पर अपनी मूल पहचान को खत्म करके नहीं।"
जात-पात के विरोध का राजनीतिक एजेंडा?
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आरोप लगाया कि जात-पात के खिलाफ दिए जा रहे नारे का उद्देश्य धर्म की एकता स्थापित करना नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ हासिल करना है। उन्होंने कहा, "यह नारा वास्तव में हिंदुओं को एकजुट करने के नाम पर थोक वोट बटोरने का एक साधन है। जब जातियों में विभाजन होता है, तो कुछ वोट इधर जाते हैं और कुछ उधर। अब यह लोग चाहते हैं कि हिंदू वोट पूरी तरह उनके पास आ जाए।"
उन्होंने आगे कहा कि जात-पात के खिलाफ दिए जा रहे नारों को सनातन धर्म के सिद्धांतों से जोड़ने का कोई आधार नहीं है। उनके अनुसार, यह पूरी कवायद एक "राजनीतिक खेल" का हिस्सा है, जिसमें धर्म का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने के लिए किया जा रहा है।
"वर्ण व्यवस्था को खत्म करना, सनातन धर्म को नष्ट करना"
स्वामी जी ने चेतावनी दी कि जात-पात को पूरी तरह खत्म करने की बात सनातन धर्म के लिए विनाशकारी हो सकती है। उन्होंने कहा, "यदि जात-पात को खत्म कर दिया गया, तो हमारी सांस्कृतिक पहचान समाप्त हो जाएगी। जब पहचान ही नहीं बचेगी, तो सनातनी कैसे रहेंगे?"
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सुधार की जरूरत जरूर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पूरी प्रणाली को खत्म कर दिया जाए। उन्होंने कहा, "आंदोलन इस बात पर होना चाहिए कि वर्ण व्यवस्था को मानते हुए किसी को नीचा न दिखाया जाए और न ही किसी के साथ भेदभाव हो।"
राजनीतिक एजेन्डे पर हमला
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने नारा लगाने वाले लोगों पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि वे "धर्म के एजेंट" के रूप में काम कर रहे हैं और इन नारों के पीछे धार्मिक एकता नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ छिपा है। उन्होंने कहा, "जो लोग सड़क पर उतरकर यह नारा लगा रहे हैं, वे जनता के बीच राजनीतिक एजेंडा लागू करने के लिए उतारे गए हैं। इसका सनातन धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।"
हिंदू समाज में एकता का संदेश
स्वामी जी ने अंत में कहा कि हिंदू समाज को आपसी एकता और सद्भाव बनाए रखना चाहिए, लेकिन इसके लिए अपनी सांस्कृतिक पहचान को मिटाना कोई समाधान नहीं है। उन्होंने अपील की कि सनातन धर्म की समृद्ध परंपराओं को बचाने और इसे समर्पण के साथ आगे बढ़ाने के लिए सभी को मिलकर काम करना चाहिए।
स्वामी जी के इस बयान ने धार्मिक और राजनीतिक हलकों में बहस को नई दिशा दे दी है। उनके विचारों पर समर्थक और विरोधी दोनों पक्ष प्रतिक्रिया दे रहे हैं, जिससे यह मुद्दा आने वाले दिनों में और गरमा सकता है।