झारखंड: देश में 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हैं। विपक्षी गठबंधन, जिसे अब "INDIA गठबंधन" के नाम से जाना जाता है, ने भाजपा पर बड़ा हमला बोला है। एक बयान में दावा किया गया कि अगर चुनाव बैलट पेपर से कराए जाते, तो गठबंधन को कम से कम 75 अतिरिक्त सीटों का फायदा होता।
झारखंड में भाजपा के खिलाफ आक्रोश
झारखंड में भाजपा के 11 साल के शासन को लेकर जनता में गहरी नाराजगी है। इस नाराजगी का प्रमुख कारण क्षेत्रीय विकास में कमी और जनता की बुनियादी मांगों की अनदेखी बताया जा रहा है। राज्य में स्थानीय मुद्दों को लेकर विरोध काफी समय से बढ़ रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि झारखंड में जनता भाजपा से इस कदर नाराज है कि इस चुनाव में विपक्षी पार्टियों को यहां मजबूत समर्थन मिल सकता है। झारखंड के कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने भाजपा पर "तानाशाही शासन" चलाने का आरोप लगाया है।
भाजपा से 1.36 लाख करोड़ की मांग
झारखंडियों का यह भी कहना है कि अगर भाजपा को राज्य में अपनी राजनीतिक वापसी की संभावनाओं को जीवित रखना है, तो उसे झारखंड का बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपये तुरंत लौटाना चाहिए। यह राशि राज्य के विकास और बुनियादी ढांचे के लिए अत्यधिक आवश्यक है।
अगर बैलट पेपर से चुनाव हुए होते तो INDIA गठबंधन कम से कम 75 सीटें जीतती।
— Jharkhand Mukti Morcha (@JmmJharkhand) November 27, 2024
झारखंड में भाजपा के 11 साल के तानाशाही शासन के ख़िलाफ़ झारखंडियों में काफ़ी आक्रोश है जिसका अंदाज़ा भाजपा नहीं लगा पा रही है।
अगर उन्हें झारखंड में अब वापसी की सोचनी भी है तो जल्द से जल्द हम झारखंडियों…
बैलेट पेपर की वापसी पर चर्चा
हाल के चुनावों में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर विपक्ष ने सवाल खड़े किए हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि ईवीएम की जगह बैलट पेपर से चुनाव कराना अधिक पारदर्शी और भरोसेमंद होगा। "INDIA गठबंधन" ने यह दावा किया है कि बैलट पेपर प्रणाली से चुनाव होने पर भाजपा की हार और बड़ी होती।
राजनीतिक भविष्य पर नजरें
झारखंड की जनता का यह आक्रोश क्या 2024 के चुनावों में भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा? क्या विपक्षी गठबंधन इसे अपने पक्ष में भुना पाएगा? और क्या भाजपा झारखंड की जनता की नाराजगी को समझकर कोई ठोस कदम उठाएगी? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में साफ होंगे।
झारखंड में भाजपा के प्रति जनता का आक्रोश और INDIA गठबंधन का बैलट पेपर चुनाव को लेकर दिया गया बयान चुनावी राजनीति का नया मोड़ दे सकता है। अब देखना यह होगा कि राजनीतिक दल इन मुद्दों को कैसे संभालते हैं और जनता के विश्वास को कैसे जीतते हैं।