गौतम बुद्ध नगर जिले के रबूपुरा क्षेत्र में दलित समाज के खिलाफ हिंसा और धमकियों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में भीकमपुर गांव में दलित समाज के लोगों पर की गई फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। इस घटना की जांच और कार्यवाही पूरी भी नहीं हुई थी कि कलूपुरा गांव में एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है।
कलूपुरा गांव में आयोजित एक पंचायत के दौरान जातिवादी तत्वों ने रबूपुरा थाना प्रभारी (SHO) और पुलिस अधिकारियों के सामने खुलेआम दलित समुदाय के लोगों को जान से मारने की धमकियां दीं। धमकी देने वाले व्यक्ति ने कहा, "हम लॉरेंस बिश्नोई की तरह खुलेआम मारेंगे और हमें न पुलिस का डर है, न कमिश्नर का।"
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में हुआ, लेकिन उन्होंने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। घटना स्थल पर मौजूद पुलिस प्रशासन को मूकदर्शक बनकर बैठा देखा गया।
दलित समाज में भय और आक्रोश
इस घटना के बाद दलित समाज में भारी रोष और असुरक्षा की भावना है। समुदाय के लोगों का कहना है कि जब पुलिस के सामने ऐसी धमकियां दी जा रही हैं और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है, तो न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
भीकमपुर गांव में हुई फायरिंग की घटना की जांच में भी अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। अब, कलूपुरा में खुलेआम दी गई धमकियों ने प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
गौतम बुद्ध नगर में पुलिस अधिकारियों के सामने जातिवादियों का गुंडाराज देखिए
— Jitu Rajoriya (@jitu_rajoriya) November 22, 2024
रबूपुरा के भीकम पुर गांव में हुई दलित समाज के लोगों पर फायरिंग में जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई, अभी उस मामले में कार्यवाही भी पूरे ढंग से नहीं हुई कि कलूपुरा गांव में पंचायत करके पुलिस SHO रबूपुरा… pic.twitter.com/Jk9y19bpFs
प्रशासन पर सवाल
स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने पुलिस और प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कानून व्यवस्था बनाए रखने में उनकी विफलता साफ झलकती है।
क्या कहता है प्रशासन?
पुलिस अधिकारियों से संपर्क करने पर उन्होंने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि मामले की जांच की जा रही है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, अब तक किसी ठोस कार्रवाई की खबर नहीं है।
सामाजिक न्याय की मांग
घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए, सामाजिक संगठनों ने सरकार और प्रशासन से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि जातिगत हिंसा को रोकने के लिए सख्त कदम नहीं उठाए गए तो समाज में तनाव और बढ़ सकता है।
यह देखना बाकी है कि प्रशासन इन घटनाओं पर कैसे प्रतिक्रिया देता है। क्या दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी, या यह मामला भी अन्य घटनाओं की तरह अनदेखा रह जाएगा?
इस स्थिति ने एक बार फिर भारत में जातिगत भेदभाव और हिंसा के मुद्दे को उजागर किया है, जो न्याय और समानता के संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है।