ढाका, 27 नवंबर 2024: सोशल मीडिया पर क्रांति कुमार की एक पोस्ट ने इतिहास के पन्नों को फिर से खंगालते हुए वर्तमान हालातों पर तीखी चर्चा छेड़ दी है। 1971 में भारत की निर्णायक भूमिका और बांग्लादेश की आज़ादी की कहानी से लेकर 2024 में ISKCON के प्रचारक चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उनके वकील की संदिग्ध हत्या तक, यह पोस्ट एक गहरी चिंता का विषय बन गई है।
1971: बांग्लादेश की आज़ादी का संघर्ष
1971 में, बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों ने मानवता को झकझोर कर रख दिया था। क्रांति कुमार ने लिखा कि पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के नागरिकों पर असहनीय जुल्म किए—महिलाओं के साथ बलात्कार, मासूमों की हत्या, और पूरे गांव खाली हो गए। इस भयानक स्थिति में भारत ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हस्तक्षेप किया।
भारतीय सेना ने ऑपरेशन "मुक्ति वाहिनी" के तहत 2,50,000 सैनिक भेजकर बांग्लादेश को पाकिस्तानी दमन से मुक्त किया। इस युद्ध में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा, और 1525 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान न्योछावर की। यह भारत और बांग्लादेश के रिश्ते में एक ऐतिहासिक मोड़ था।
पाकिस्तानी सेना बांग्लादेशियों की हड्डी तोड़ रहे थे. महिलाओं का बलात्कार कर रहे थे. खाने को अन्न नही था, पीने को साफ पानी नही था और ना ही हगने को जगह नही थी.
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) November 27, 2024
पाकिस्तान सेना की अत्याचार से बचने के लिए लोग इधर उधर भाग रहे थे. गांव के गांव खाली हो रहे थे.
चारो तरफ कॉलेरा महामारी… pic.twitter.com/y8GYSz0lg4
2024: बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार
क्रांति कुमार ने बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने लिखा कि जिस देश को भारत ने पाकिस्तानी सेना से बचाया, उसी बांग्लादेश में आज हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है। हाल ही में, ISKCON के प्रचारक चिन्मय कृष्ण दास को अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने पर गिरफ्तार कर लिया गया। उनके वकील की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या ने मामले को और गंभीर बना दिया है।
बांग्लादेश की बदलती तस्वीर
आज बांग्लादेश में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक है, और उन पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह स्थिति भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर सवाल खड़े करती है। 1971 के संघर्ष की ऐतिहासिक भूमिका को याद करते हुए क्रांति कुमार ने लिखा, "एहसान फरामोश बांग्लादेश।"
समाज की जिम्मेदारी
यह पोस्ट एक चेतावनी के रूप में देखी जा रही है कि बांग्लादेश को अपने इतिहास से सबक लेना चाहिए और अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। भारतीय सेना द्वारा बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने की कहानी न केवल गर्व का विषय है, बल्कि मानवता और न्याय का भी प्रतीक है।
इस पोस्ट के बाद कई सामाजिक और राजनीतिक संगठन चिन्मय कृष्ण दास की रिहाई की मांग कर रहे हैं। यह देखना बाकी है कि बांग्लादेश सरकार इस मामले पर क्या कदम उठाती है।
(फोटो 1: 1971 में ढाका में पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण, फोटो 2: 2024 में चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद की तस्वीर)