सोशल मीडिया पर “हिंदूराष्ट्र” की चर्चा: क्रांति कुमार के पोस्ट ने खड़े किए सवाल, क्रांति कुमार ने कहा हिंदूराष्ट्र में RSS प्रमुख का होगा शासन

नई दिल्ली: हाल ही में, सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है जिसमें कथित तौर पर एक काल्पनिक “हिंदूराष्ट्र” की संरचना का विवरण दिया गया है। यह पोस्ट लेखक और एक्टिविस्ट क्रांति कुमार ने साझा की है, जिसमें उन्होंने अपने विचारों से यह संदेश दिया है कि भारत में कुछ वर्गों के उद्देश्य और उनकी भविष्य की योजनाओं पर प्रश्न उठाए जाने चाहिए।

 "हिंदूराष्ट्र" की संरचना: विचारणीय बिंदु

क्रांति कुमार ने अपने पोस्ट में "हिंदूराष्ट्र" के संभावित स्वरूप पर विचार प्रस्तुत किया है। इसमें प्रमुख बिंदु हैं कि आरएसएस के सरसंघचालक को "सुप्रीम लीडर" का दर्जा दिया जाएगा, जिन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च नेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। गवर्निंग बॉडी, जिसे पोस्ट में "गार्जियन काउंसिल" का नाम दिया गया है, इसमें 90% सदस्य ब्राह्मण होंगे और इनकी नियुक्ति का अधिकार सुप्रीम लीडर के पास होगा। यह काउंसिल संसद से भी अधिक शक्तिशाली मानी जाएगी।

विधायिका एवं संवैधानिक ढांचा

क्रांति कुमार के अनुसार, हिंदूराष्ट्र में बनने वाले कानून का प्रारूप सबसे पहले गार्जियन काउंसिल के पास जाएगा। इसके बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा। इसके अलावा, चुनाव आयोग, सेना, परमाणु हथियार, विदेश नीति, और रेडियो के नियंत्रण का अधिकार भी सीधे सुप्रीम लीडर के पास होगा, और प्रधानमंत्री के पास सीमित शक्तियां होंगी।

सामाजिक ढांचे में वर्ण व्यवस्था की वापसी

पोस्ट के अनुसार, मनुस्मृति के नियमों के अनुसार सामाजिक संरचना तैयार की जाएगी, जिसमें रेलवे डिब्बे वर्ण व्यवस्था के अनुसार विभाजित होंगे। अगड़ी और पिछड़ी जातियों के लिए अलग-अलग सार्वजनिक टॉयलेट, पार्क की बेंच, और वेटिंग रूम भी होंगे। स्कूलों के भी वर्ण व्यवस्था के अनुसार विभाजित होने की संभावना है।

 क्रांति कुमार का प्रश्न

क्रांति कुमार ने अपने पोस्ट के अंत में एक गहन प्रश्न पूछा है, जिसमें उन्होंने कहा कि क्या लोग इस तरह की संरचना का समर्थन करेंगे। उनका तर्क है कि ऐसे वर्ग, जो जातिवादी व्यवस्था का समर्थन करते हैं और सामाजिक समानता का विरोध करते हैं, "हिंदूराष्ट्र" की पैरवी कर रहे हैं।

इस पोस्ट ने लोगों में गहरी सोच और बहस का माहौल उत्पन्न किया है। कुछ लोगों ने इसे एक चेतावनी के रूप में देखा है, जबकि कुछ का मानना है कि यह एक संभावित परिदृश्य नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के विचार समाज को पीछे की ओर धकेल सकते हैं, जबकि कुछ लोग इसे विचारधाराओं की लड़ाई मानते हैं। 

क्रांति कुमार का यह पोस्ट हमें याद दिलाता है कि भारत का संविधान सामाजिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देता है। इस पोस्ट पर प्रतिक्रियाओं के चलते यह स्पष्ट है कि ऐसे विचारों पर लोगों में मतभेद और चिंतन की आवश्यकता है ताकि सभी को एकजुट करने वाले मूल्यों को संजोया जा सके।

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