पंजाब के युद्धक्षेत्र में यूनानी सम्राट सिकंदर ने बहादुरी से लड़े सम्राट पोरस को पराजित किया। यह पराजय भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक इतिहास का एक अहम अध्याय बनी। जैसे ही पोरस की पराजय की खबर मगध साम्राज्य के महान सम्राट धननंद तक पहुँची, उन्होंने यूनानी सेनाओं के खतरे का जवाब देने के लिए अपनी विशाल और शक्तिशाली सेना के साथ सिंध-पंजाब की ओर कूच करने का निर्णय लिया।
नंद साम्राज्य की शक्ति का प्रदर्शन
धननंद ने अपने साम्राज्य की शक्तिशाली सेना को तैयार किया, जिसमें शामिल थे:
- 2,00,000 पैदल सैनिक – अनुशासित और कुशल, ये सैनिक मगध की सैन्य शक्ति का मूल आधार थे।
- 20,000 घुड़सवार सैनिक – युद्ध में तेज और कुशल घुड़सवारों की टुकड़ी, जिनकी उपस्थिति युद्ध के समीकरण बदलने में सक्षम थी।
- 3,000 युद्ध हाथी – प्राचीन भारतीय युद्धकला में हाथियों का प्रयोग दुश्मन की रक्षापंक्ति तोड़ने के लिए किया जाता था।
- 2,000 रथ – युद्ध के मैदान में तेज़ी से रणनीति बदलने और दुश्मन को घेरने के लिए आवश्यक।
सम्राट धननंद के नेतृत्व में यह सेना शाही राजमार्ग से पश्चिमोत्तर की ओर बढ़ी। इस मार्ग से मगध साम्राज्य की सैन्य शक्ति और रणनीतिक प्रभुत्व का प्रदर्शन हुआ।
सम्राट पोरस को यूनानी सम्राट सिकंदर ने पंजाब में पराजित कर दिया. इस पराजय की खबर नंद वंश के महान सम्राट धननंद को मिलते ही उन्होंने अपनी विशाल सेना.
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) November 4, 2024
2,00,000 पैदल सैनिक
20,000 घोड्सवार सैनिक
3,000 हाथी
2,000 रथ
लेकर सिकंदर से मुकाबला के लिए शाही राजमार्ग से सिंध-पंजाब की ओर… pic.twitter.com/2smv7nEKff
सिकंदर का सामना और वापसी
सिकंदर, जिसे आधुनिक पश्चिमी इतिहासकार वीर और अजेय मानते हैं, इस विशाल भारतीय सेना की खबर सुनते ही चिंता में पड़ गया। जब उसने देखा कि नंद साम्राज्य की अपार सैन्य शक्ति उसकी ओर बढ़ रही है, उसके लिए मुकाबला करना असंभव हो गया। अंततः, वह अपने सैनिकों के साथ वापस लौट गया। विदेशी इतिहासकारों ने इस घटना को दबाने के लिए तर्क दिए कि सिकंदर बीमार था और उसकी सेना थक चुकी थी। यह दावा एक लंबे समय से प्रश्नों के घेरे में है।
नंद साम्राज्य का बुनियादी योगदान
नंद साम्राज्य न केवल सैन्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध था बल्कि उसके समय में कई बुनियादी ढांचागत विकास हुए। इस दौरान, एक महान सड़क का निर्माण हुआ जिसने तक्षशिला से गंगा नदी के मुहाने तक समस्त क्षेत्र को जोड़ा। इस सड़क ने भारतीय उपमहाद्वीप को एकसूत्र में पिरोया और महान शिक्षा केंद्र तक्षशिला और नालंदा को एक साथ जोड़ दिया। यही सड़क कालांतर में ग्रैंड ट्रंक रोड के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसे बाद में शेरशाह सूरी द्वारा भी सुधारित बताया गया।
बौद्ध सम्राटों के योगदान की अनदेखी
नंद वंश, सम्राट अशोक, कनिष्क, और हर्षवर्धन जैसे बौद्ध सम्राटों के योगदानों को अक्सर इतिहास में अनदेखा किया गया। आधुनिक युग के कुछ इतिहासकारों द्वारा इन्हें कम करके आँका गया, जिससे उनके प्रभावशाली कार्य और योगदान जनता तक सही रूप से नहीं पहुँचे। यह आवश्यक है कि भारत के इस गौरवशाली अतीत को नए दृष्टिकोण और निष्पक्षता के साथ देखा जाए।
समय आ गया है कि हम इतिहास के सच्चे अध्यायों को उजागर करें और उन महान शासकों की विरासत को सही पहचान दिलाएँ जिन्होंने भारतीय सभ्यता को ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
(लेखक: क्रांति कुमार)