देश की राजधानी दिल्ली, जिसे "निर्भया कांड" के बाद से महिलाओं की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाने का दावा किया गया था, एक बार फिर से एक भयावह घटना का गवाह बनी है। पिछले एक दशक में कई कानून बने, सुरक्षा उपायों की घोषणा की गई, और महिला सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई, लेकिन ये सब दिखावटी साबित हो रहे हैं। महिलाएं आज भी सड़कों पर सुरक्षित नहीं हैं, और अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे खुलेआम महिलाओं के साथ दरिंदगी करने से भी नहीं चूकते।
दिल्ली के आईटीओ इलाके में 6 नवंबर को एक 34 वर्षीय महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म की दर्दनाक घटना सामने आई है। यह स्थान दिल्ली पुलिस के पुराने मुख्यालय से मात्र कुछ ही दूरी पर है, लेकिन फिर भी अपराधियों ने निर्भीक होकर इस घटना को अंजाम दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस घटना में तीन अपराधियों का हाथ है जिन्होंने पीड़िता के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और उसके बाद उसे बेसहारा छोड़ दिया।
गंभीर रूप से घायल महिला को बाद में ऑटो चालक द्वारा राजघाट के पास गांधी स्मृति सर्विस रोड पर ले जाया गया, जहां उसने पीड़िता के साथ फिर से दुष्कर्म किया। पुलिस के मुताबिक, पीड़िता की हालत बेहद खराब थी और वह मानसिक रूप से आघात में थी। इस घटना ने दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं और एक बार फिर से "महिला सुरक्षा" को लेकर सरकारी व्यवस्था की असलियत सामने आई है।
पुलिस को पीड़िता की जानकारी तब मिली जब सराय कालेखां इलाके में नौसेना के एक अधिकारी ने महिला को अर्धनग्न हालत में देखा और तुरंत पुलिस को सूचित किया। अधिकारी ने बताया कि महिला लाल कुर्ता पहने हुए थी और उसके गुप्तांगों से खून बह रहा था। पुलिस के अनुसार, यह घटना 11 अक्टूबर की रात को लगभग साढ़े नौ बजे की है। इस दर्दनाक अवस्था में, पीड़िता किसी तरह पैदल सराय कालेखां पहुंची और स्थानीय लोगों की मदद से उसे एम्स में भर्ती कराया गया।
एम्स अस्पताल में पीड़िता का तत्काल ऑपरेशन किया गया और फिलहाल वह एम्स के मनोरोग विभाग में भर्ती है, जहां उसकी मानसिक स्थिति पर नजर रखी जा रही है। उसकी हालत गंभीर बनी हुई है, और वह मानसिक रूप से भी इस आघात से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही है। यह स्पष्ट है कि यह घटना उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल चुकी है।
इस मामले में पुलिस ने तेजी से जांच शुरू की और दक्षिण-पूर्वी जिले की पुलिस ने आरोपी ऑटो चालक प्रभु, कबाड़ी प्रमोद और शमशुल को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस उपायुक्त रवि कुमार सिंह ने इस गिरफ्तारी की पुष्टि की है। इस अपराध की तह तक जाने के लिए एसीपी ऐश्वर्या सिंह के नेतृत्व में एक विशेष जांच टीम का गठन किया गया। महिला कांस्टेबल संगीता ने भी समाजसेवी बनकर पीड़िता से मुलाकात की ताकि मामले की संवेदनशीलता को समझा जा सके।
पुलिस ने इस घटना की गहन जांच के लिए 700 से अधिक सीसीटीवी फुटेज खंगाली और 150 से अधिक ऑटो-रिक्शा की जांच की। कम से कम 10 पुलिस टीमों को विभिन्न संभावित जगहों पर तैनात किया गया ताकि अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके। आखिरकार, पुलिस ने गांधी स्मारक सर्विस रोड से पीड़िता की खून से सनी सलवार भी बरामद कर ली, जिससे घटना के प्रमाण और पुख्ता हो गए। फिलहाल, मामले की जांच अभी भी जारी है और पुलिस अन्य पहलुओं की भी जांच कर रही है।
यह घटना एक बार फिर से निर्भया कांड की याद दिलाती है, जब 2012 में एक युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। उस घटना के बाद जनता में आक्रोश बढ़ा, और सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए कई बड़े कदम उठाने का आश्वासन दिया था। सख्त कानून बने, महिला सुरक्षा के लिए विशेष बजट आवंटित किया गया, और जगह-जगह पुलिस चौकियां बनाई गईं। लेकिन इस घटना से साफ है कि ये उपाय केवल कागजों तक ही सीमित रहे हैं, और जमीनी स्तर पर उनकी प्रभावशीलता बेहद कम है।
दिल्ली की सड़कों पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई बार गश्त बढ़ाने, सीसीटीवी कैमरे लगाने, और आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर जारी करने का दावा किया गया, लेकिन ऐसे मामलों में गिरावट देखने को नहीं मिल रही। निर्भया फंड जैसे योजनाएं बनाई गईं, जिनका मुख्य उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा पर खर्च करना था, लेकिन इस घटना ने इन दावों की पोल खोल दी है।
इस घटना ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा किया है कि आखिर कब तक महिलाएं सुरक्षित महसूस कर पाएंगी? क्या केवल कड़े कानून बनाने से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी आएगी, या इसके लिए समाज और प्रशासन दोनों को मिलकर जिम्मेदारी निभानी होगी? इस मामले में सिर्फ कानून ही नहीं बल्कि समाज के नजरिये में भी बदलाव की आवश्यकता है। महिलाओं के प्रति नजरिये को बदलना होगा और उन्हें एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करना होगा।
दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को कड़े कदम उठाने होंगे। समाज के हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि महिलाओं की सुरक्षा उनकी खुद की जिम्मेदारी भी है और प्रशासन का सहयोग करना भी आवश्यक है। समाज के साथ-साथ प्रशासन को भी महिला सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि भविष्य में ऐसी भयावह घटनाएं न हो।
दिल्ली में हुई इस घटना ने एक बार फिर से महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को प्रमुखता से उजागर किया है। निर्भया कांड के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है और महिलाएं अभी भी असुरक्षित हैं। सरकार, प्रशासन और समाज के हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा केवल कानूनों और कागजों में नहीं बल्कि असल जीवन में बदलाव लाने से हल होगा। यदि हम सभी मिलकर कदम उठाएं तो ही एक सुरक्षित समाज का निर्माण संभव है।