लखनऊ- हाल ही में समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव की राजनीतिक गतिविधियों को लेकर नई चर्चाएं सामने आई हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय पवन ने 'X' पर एक पोस्ट साझा किया जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय को कुछ विचार करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, "मुस्लिम समुदाय के लोगों को यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए व मनन-चिन्तन भी करना चाहिए।"
पिछले एक साल से सीतापुर जेल में बंद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान से अखिलेश यादव ने न मुलाकात की, न ही सपा का कोई बड़ा नेता वहां गया। अब अचानक उप-चुनाव की आहट के साथ ही अखिलेश यादव को आजम खान और उनका परिवार याद आने लगे हैं। राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि चुनाव के समय ही सपा के अध्यक्ष को आजम खान की याद क्यों आती है?
"मुस्लिम समुदाय के लोगों को यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए व मनन-चिन्तन भी करना चाहिए।" ---------------
— पवन (@Voiceofpavan) November 11, 2024
पिछले एक साल से न तो अखिलेश यादव आजम खान से सीतापुर जेल में मिलने गए थे और न ही समाजवादी पार्टी का कोई बड़ा नेता।
समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव को चुनाव के समय ही आजम खान याद क्यों… pic.twitter.com/TO721crpuF
दरअसल, हाल ही में नगीना से सांसद चंद्रशेखर ने हरदोई जेल में बंद आजम खान के बेटे, अब्दुल्ला आजम से मुलाकात की। इस मुलाकात ने समाजवादी पार्टी में हलचल मचा दी, और इसके बाद ही अखिलेश यादव ने मुरादाबाद में आजम खान के परिवार से मिलने का निर्णय लिया। विश्लेषकों का मानना है कि आगामी विधानसभा उप-चुनाव के मद्देनजर सपा की यह रणनीति मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में करने का एक प्रयास है।
हालांकि, पवन की पोस्ट के अनुसार, सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी मर्जी से आजम खान के परिवार से मिलने नहीं जा रहे हैं बल्कि वे मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं। राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए यह कदम उठाया गया है ताकि पार्टी मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल कर सके।
एक और बात जिसने सपा की रणनीति पर सवाल खड़े किए हैं, वह यह है कि अखिलेश यादव ने आजम खान को झारखंड चुनाव के लिए स्टार प्रचारक के रूप में नियुक्त किया है। जबकि सच्चाई यह है कि आजम खान सीतापुर जेल में बंद हैं और उनके जल्दी बाहर आने की कोई संभावना नहीं दिखती। इस फैसले को कई लोग मात्र एक राजनीतिक चाल बता रहे हैं, जिसमें मुस्लिम वोट बैंक को हासिल करने के लिए आजम खान का नाम उपयोग किया गया है।
अखिलेश यादव की यह रणनीति अब सवालों के घेरे में है कि क्या यह वास्तव में मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए है या केवल वोट पाने का एक तरीका है?