हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म '72 हूरे' चर्चा का विषय बनी हुई है। फिल्म का मुख्य विषय यह है कि कैसे युवाओं को गुमराह किया जाता है और 72 हूरों के ख्वाब दिखाकर आतंकवाद के रास्ते पर ले जाया जाता है। हालांकि फिल्म को लेकर विवाद और बहसें तेज़ हो गई हैं, लेकिन यह भी एक सवाल उठता है कि इस्लाम में "72 हूरों" का क्या अर्थ है? क्या कुरान या इस्लामिक ग्रंथों में इसका ज़िक्र है, और आतंकवादी क्यों इस विचार को प्रचारित करते हैं?
72 हूरों की अवधारणा और सच्चाई
इस मुद्दे पर हमने इस्लामिक स्कॉलर डॉ. मुजाहिदुद्दीन गांधी से चर्चा की। उन्होंने बताया कि "72 हूरों" का जिक्र कुछ हदीसों में हुआ है, लेकिन इसे गलत संदर्भ में पेश किया गया है। उन्होंने कहा:
"जन्नत का मतलब एक ऐसी जगह है जहां इंसान को उसकी हर मनचाही चीज़ मिलती है। लेकिन यह अच्छे कर्मों और नेक इरादों के लिए है, न कि किसी अपराध या आतंकवाद के लिए।"
उन्होंने स्पष्ट किया कि जिहाद और आतंकवाद में बड़ा फर्क है।
- जिहाद: इसका अर्थ है संघर्ष, जो किसी अत्याचार या अन्याय के खिलाफ हो सकता है। यह एक आध्यात्मिक और नैतिक कर्तव्य है।
- आतंकवाद: यह इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है। इसमें निर्दोष लोगों की हत्या करना, भय फैलाना, और समाज को अस्थिर करना शामिल है।
डॉ. गांधी ने यह भी कहा कि कुछ लोगों ने इस्लामिक ग्रंथों की व्याख्या को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है।
"जो व्यक्ति आतंकवाद फैलाता है, वह इस्लाम के अनुसार एक पापी है। उसे जन्नत नहीं, बल्कि सजा मिलेगी।"
युवाओं को गुमराह करने की साजिश
फिल्म के माध्यम से यह दिखाया गया है कि कैसे युवाओं को भ्रमित किया जाता है और जिहाद के नाम पर उन्हें आतंकवाद की तरफ धकेला जाता है। लेकिन असली जिहाद आत्म-सुधार और समाज में शांति स्थापित करने का है।
डॉ. गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि "आज दुनिया में इस्लामोफोबिया और गलतफहमियां बढ़ रही हैं। कुछ तत्व इस्लाम के नाम पर युवाओं को गुमराह कर रहे हैं।"
क्या कहता है इस्लाम?
इस्लाम के मूल सिद्धांत शांति, प्रेम और इंसाफ पर आधारित हैं। कुरान में स्पष्ट रूप से निर्दोष लोगों की हत्या को पाप बताया गया है। पैगंबर मोहम्मद ने भी कहा है कि
"जो दूसरों के साथ अन्याय करता है, वह जन्नत का हकदार नहीं।"
फिल्म '72 हूरे' ने एक गंभीर मुद्दे को उजागर किया है। हालांकि इस पर विवाद हो रहा है, लेकिन यह सवाल उठाने का सही समय है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले विचारों को क्यों और कैसे फैलाया जा रहा है।
युवाओं को गुमराह करने वालों को रोकना और इस्लाम की सही शिक्षा को सामने लाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।